पिछले गए कुछ सालो में वंचित समाज खासतौर पर पारधी समुदाय में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिसके प्रमाण हैं हाल के वर्षों में हुई आत्महत्या की कई घटनाएं. यहाँ जिन घटनाओं का ज़िक्र किया जा रहा है, वे सिर्फ भोपाल शहर के एह्सान नगर व राजीवनगर बस्तियों में रहने वाले पारधी समुदाय के लोगो की हैं, जिनको वहीं के रहवासी युवाओं ने हमसे सांझा किया है.

इन घटनाओं से आपको उस त्रासद परिस्थितियों का एहसास होगा जिनसे वे गुजर रहे हैं.

कुछ वर्ष पूर्व बस्ती की टिनटी बाई ने आत्महत्या कर ली. 16 वर्ष की उम्र में कचड़ा बीनते हुए टीटी नगर थाना की पुलिस ने उन्हें उठाया और दो रात थाने में ही रखा. टिनटी बाई ने अपनी सहेलियों को बताया था कि वह जब थाने में थी, उसके साथ थाने में छेडछाड़ की घटनाएं हुई. उससे वे खुद को बेहद गन्दा महसूस कर रही थी. उसी रात टिनटी बाई ने फांसी लगाकर खुदखुशी कर ली . यह घटना 2010 के पूर्व की है.

राहुल पाल, उम्र 23 वर्ष, ने घर पर ही फांसी लगाकर खुदखुशी कर ली थी. वह खुदखुशी के कुछ माह पूर्व से अपने काम को लेकर काफी परेशान था. उसको मजदूरी पर भी काम नहीं मिल रहा था. कई दिनों तक घर में खाना भी नहीं बना था. अपनी मौत वाले दिन स्वयं भी भूखा था.

आशीष, उम्र 13 -14 वर्ष. आशीष की माँ दिनभर कचड़ा बीनने जाती, घर के सारे काम आशीष को ही करने पड़ते थे. एक दिन पुलिस ने उसके भाई को पकड़ लिया और थाने ले गई. आशीष की माँ उसे छुडाने थाने जा रही थी. आशीष ने अपनी माँ से जिद की मैं भी जाऊंगा. माँ ने कहा, मेरे पास किराए के पैसे नहीं हैं. आशीष इस बात से दुखी होकर इतना परेशान हो गया की उसने घर में ही फंदा बनाकर खुद को फांसी लगा कर खुदखुशी कर ली.

एसठ बाई, उम्र 64 – 65 वर्ष. अपने समुदाय के बाकि परिवारों की तरह ही आर्थिक स्थिति बदहाल थी. उनके बच्चो को अपने परिवार का पेट भरना ही मुश्किल होता, एसठ बाई पिछले कुछ दिनों से भूखी थीं, जब उन्हें बार बार भूखे सोना पड़ता, जिससे त्रस्त होकर उन्होंने भी खुदखुशी कर ली.

अभिषेकना, 16 वर्ष. घर की सारी ज़िम्मेदारी अभिषेकना पर ही थी. कमाई का एकमात्र ज़रिया था पन्नी बीनना. परिवार के लोगों के पास कमाने का कोई काम नहीं था. पन्नी बीन कर होने वाली कमाई से परिवार का खर्च पूरा नही पड़ता. अभिषेकना पढना चाहती थी, पर घर की जिम्मेदारियों से वह परेशान रहती जिसके चलते उसने फांसी लगाकर खुदखुशी कर ली.

बापू सिंह उम्र 60 – 62 वर्ष. पेरालेसिस ग्रस्त थे. वे अपनी बिमारी से ज्यादा इस बात से दुखी थे कि वे अपना इलाज नहीं करवा पा रहे थे. उनका पूरा परिवार बेरोजगार था जो अपनी आर्थिक स्थिति के चलते बापू सिंह का इलाज करने में असमर्थ था. सरकारी अस्पतालों के चक्कर काट कर बापू सिंह का परिवार पहले ही थक चूका था, पारधी होने के चलते वे अस्पतालों में गैरबराबरी की मार को पहले ही झेल चुके थे. बापूसिंह ने बीमारी, बेरोज़गारी और गैरबराबरी से तंग आकर फांसी लगाकर अपनी जान दे दी.

पिछले कुछ वर्षो में पारधी समुदाय में जिस प्रकार आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी है, वह पारधी समुदाय का जीवन समाज के हाशिये पर होने की कहानी कहता है. इन घटनाओं में आर्थिक मुश्किलें तो दिखाई देती हैं, परन्तु जो सबसे विकट व छुपी हुई समस्या है, पुलिस का पारधी समुदाय से अंधाधुंध रिश्वत लेना, जिसके चलते वे अपनी मूलभूत ज़रूरतें तो पूरी कर नहीं पाते

और पुलिस को रिश्वत देते देते वे जीवन से थक कर मौत को गले लगा लेते हैं. व्यवस्था व समाज का व्यवहार वंचित समुदाय की चिंता को गहरा रहा है, जिससे उनके जीवन में नाकरात्मकता का स्तर भी दिन ब दिन बढ रहा है.