रोज़गार और पुलिस पारधी के बीच के रिश्ते हम समझने की कोशिश करेंगे, तो हमें एक अलग तरह की कहानी मालूम पड़ेगी. अब देखिये हमारे इस रोज़गार में पुलिस की दिलचस्पी कैसे और क्यों है.19 वर्षीय शेखर पारधी समाज का एक युवक है. वह कहता है कि हमारे पास रोज़गार
के नाम पर कचड़ा बीनना, चुनना और उसी से कमा कर खाना है. पुलिस द्वारा हमें अरेस्ट करने को वही रटा हुआ जुमला ख़ास भूमिका निभाता है कि तुम्हारा तो चोरियों का पुराना इतिहास रहा है. तुम ये कबाड़ की आड़ में किस— किस के यहाँ से क्या—क्या भर लाते
हो? फिर तहकीकात करने का कह कर थाने ले जाते हैं, और कहते है कि बताओ वो फलां केस के बारे में ये जो चोरी हुई थी वो किसने की थी और फिर वो चोरी को क़बुलवाने के लिए अलग अलग तरह से मारपीट करते हैं.
इससे दो प्रकार के फायदे पुलिस को होते हैं. एक तो यह की जब तक वे तलाशी के नाम पर बच्चे\बड़े लोगों को थाने में रखे होते हैं, तब तक माँ— बाप को पैसे देकर छुड़ा के ले
जाने के लिए मजबूर करते हैं. इनमें भी लोगो को थाने से रिहा करने के अलग अलग रेट हैं. जिसमे 10 साल के बच्चे के 500 से 1000, युवा और वयस्कों की राशि 10,000 तक भी होती है. जिसमें ये धड़ल्ले से अच्छी खासी कमाई कर रहे होते हैं.
अब सवाल ये है कि पुलिस को देने के लिए इतना पैसा आता कंहा से है. 20 वर्षीय नंदिशना ने बताया कि अपने लोगो को थाने से निकालने के लिए हम साहूकार से उधार पैसा लाकर थाने में देते. उधार भी उन को ही मिलता है जिस घर में बीनने वाले ज्यादा हैं. ऐसे छोटी उधारी वाले को कबाड़ी उधार पर पैसा देता है. फिर उसको रोज़ बीनकर कबाड़ जमा करना होता, जब तक की वह अपना सारा क़र्ज़ न चुका दे. उस पर दुहरी कमाई का भार आ जाता है, जिसको पूरा करने के लिए पहले की अपेक्षा और भी ज्यादा कचड़ा बीनना पड़ता है. शेखर बताता है कि
जिस घर परिवार के इंसान को पुलिस बीच सड़क, घर से उठाकर ले जा रहा होता है, उस समुदाय समाज और लोगो के बीच पारधी को देखने का बिलकुल अपराधी नजरिया होता है. मैंने खुद भी इतनी गाली खाया हूँ कि कोई आस पास की बस्ती का भी गाली दे जाए तो लगता है की ठीक है, ये तो हमारा नसीब ही है. आये दिन सबके सामने जैसे पुलिस ने कभी भी गाली देकर, कॉलर पकड़ कर उठाया है, उससे अब तो शर्म ही नहीं आती. लगता है कि हमारी तो कोई इज्ज़त है ही नहीं.
इसके अलावा, जब कहीं पर हुई चोरी जैसी वारदात में अपराधी को पकड़ने में पुलिस असफल होती है, तब वे ज़बरन उनपर दबाव बनाकर अपराध उनसे कबूल करवाने की भी कोशिश करते हैं. जो उनको कानून की फाइल में आधी ज़िन्दगी अपराधी होने का एहसास कराती रहती है. जिसके चलते इस समुदाय के लोग पीढ़ी दर पीढी अपराधी बने चले आ रहे हैं.
70 वर्ष की कैलाशी दीदी कहती है कि इस जनम में तो नहीं लगता की हमें पुलिस से और अपराधी होने के कलंक से आजादी मिलेगी.
अगले अंक में आत्महत्या को प्रेरित पारधी समुदाय