‘भारत महान है’, ऐसा नारा दिया जाता है. यह नारा हम भारतवासी ही देते हैं. दूसरे देश के लोग हमें महान मानते हैं कि नहीं, पता नहीं. अपनी महानता को किन-किन रूपों में प्रदर्शित करते हैं, यह भी स्पष्ट नहीं, लेकिन हाल के दिनों में हमने मूर्तियों को गढ़ने में जो विशिष्टता दिखलाई है, वह तो भारत को महान दिखलाता ही है. अभी-अभी पटेल की एक विशाल मूर्ति का मोदीजी ने अनावरण किया और अब चर्चा है कि राम की एक विशाल मूर्ति भी बनाई जायेगी.

आजादी के बाद महात्मा गांधी की मूर्तियां कई शहरों में तथा गांवों तक में दिखीं. यह जरूरी नहीं है कि वे मूर्तियां 182 मीटर उंची हों. लोगों ने बिना किसी सरकारी मदद के भी महात्मा गांधी की छोटी-मोटी मूर्ति बनाकर उनके प्रति अपन श्रद्धा प्रकट की. उत्तर प्रदेश में मायावती ने अपने शासन काल में लखनउ तथा अन्य शहरों में अपने दल के आका कांशीराम, अपना तथा अपने दल का चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियों को बनवा कर खुद को अमर करना चाहा और अब तो मोदीजी ने गुजरात के सरदार सरोवर में पटेल की 182 मीटर उंची मूर्ति बनाकर मूर्तियों को बनवाने की प्रतियोगिता में अव्वल स्थानपर पहुंच गये हैं. भारत की महानता में थोड़ी और वृद्धि हो गई, क्योंकि यह विश्व की सबसे उंची मूर्ति है.

मोदीजी ने सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति बनवाकर इसके उद्देश्य को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है. मूर्ति का अनावरण करते हुए उन्होंने कहा कि लौह पुरुष पटेल देश की एकता के सूचक हैं. आजादी के बाद देश के साढ़े पांच हजार स्वतंत्र रियासतों को भारत राष्ट्र में मिला कर एक सशक्त भारत का निर्माण उन्होंने किया है. उनके इस कार्य की जितनी सराहना मिलनी चाहिए, उतना इतिहास में उन्हें नहीं दिया गया है. इसलिए इस मूर्ति का नाम ‘एकता की मूर्ति’ देकर इतिहास में उनको अमर कर दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि विश्व प्रसिद्ध उस मूर्ति को देखने देश विदेश के अनेक लोग आयेंगे, इसलिए इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित किया गया है. चैड़ी, पक्की साफ सुथरी सड़के बनवाई गई. ठहरने के लिए होटल तथा रिसाॅट बनाये गये. ये रिसाॅट भी सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त टेंटनुमा बनाये गये ताकि उंचा मूल्य देकर भी लोग टेंट में रहने का आनंद उठा सकें. सौ एकड़ की जमीन पर रंगबिरंगे फूलों का बगीचा लगा. इतनी उंची मूर्ति को देखने के लिए उंचा मंच भी बनाया गया.

तो, ये सारी सुविधाएं पर्यटकों के लिए हैं, लेकिन मुफ्त नहीं. तीन साल तक के बच्चों के लिए अवश्य निःशुल्क होगा. निश्चित रूप से पैसा खर्च कर पर्यटन का मजा लूटने तथा एकता का पाठ पढ़ने धनी लोग ही आयेंगे, जिससे देश का आर्थिक विकास होगा. ऐसा मोदीजी ने कहा और अब टीवी के विज्ञापन भी कह रहे हैं.

स्वर्ग में बैठे लौह पुरुष पटेल उनके प्रति दिखाई जा रही इस श्रद्धा को देख कर प्रसंन्न हो रहे हैं या दुखी, यह बताना कठिन है. पटेल अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति तथा कर्मठता के कारण प्रसिद्ध थे. सादा जीवन, उच्च विचार रखने वाले पटेल पूरा जीवन लोक कल्याण में लगाया, तीन हजार करोड़ रुपये खर्च कर 182 मीटर लोहे की मूर्ति बनी, तो यह अपव्यय देख कर उन्हें प्रसंन्नता तो नहीं ही हुई होगी. एकता की प्रेरणा किसी उंची मूर्ति से ही मिलेगी तो जीवन के हर मूल्य के लिए एक मूर्ति की जरूरत होगी. विडंबना यह भी कि एक तरफ तो ‘एकता की मूर्ति’ मोदीजी बनवा रहे हैं, दूसरी तरफ उनके संघ परिवार के ही लोग चारो तरफ फैली हिंसा, माॅब लिचिंग के द्वारा लोगों की हत्या, मस्जिद को तोड़ना या चर्च पर आक्रमण जैसी घटनाओं में संलग्न बताये जा रहे हैं. औरत, आदिवासी तथा दलित का शोषण तो उनकी शासन व्यवस्था के अनिवार्य हिस्सा मान लिया गया है. ऐसे में एकता की मूर्ति एकता बनाने में कितना कारगर होगा, यह कहना मुश्किल है.

दरअसल, नेहरु के प्रभामंडल से आक्रांत मोदीजी को एक उनसे बड़ा प्रभामंडल बनाने की जरूरत आन पड़ी है. पटेल में उन्हें यह संभावना दिखी. नेहरु और पटेल दोनों गांधी के शिष्य और अनुरागी थे. दोनों अहिंसा में विश्वास करते थे. बावजूद इसके दोनों की कार्यशैली में थोड़ा अंतर था. दोनों के बीच के उस थोड़े से दरार को ही एक विशाल खाई में बदलने की एक कोशिश है ‘एकता की मूर्ति.’ इससे मोदी का राजनीतिक हित भले ही कुछ सधे, देश का कोई भला नहीं होने जा रहा. क्योंकि देश को नेहरु की ‘भावुकता’ और पटेल की ‘कर्मठता’, दोनों की दरकार है.