प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 नवम्बर,सोमवार, 2018 को अपने संसदीय क्षेत्र बनारस पहुंचे। इनलैंड वाटर हाइवे-1 (वाराणसी-हल्दिया) के बनारस टर्मिनल का लोकार्पण किया और लोगों को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में लोगों को भोजपुरी में छठ पूजा की बधाई दी और कहा कि अब से कुछ देर पहले ‘मां गंगा’ के दर्शन किए। उन्होंने कहा कि काशी के लिए, पूर्वांचल के लिए, पूर्वी भारत के लिए, पूरे भारतवर्ष के लिए, आज का ये दिन बहुत ‘ऐतिहासिक’ है। आज वाराणसी और देश, विकास के उस कार्य का गवाह बना है, जो दशकों पहले हो जाना चाहिए था।
पीएम मोदी ने बनारस टर्मिनल (मल्टी मॉडल टर्मिनल) का जिक्र करते हुए कहा कि आज वाराणसी और देश इस बात का गवाह है कि संकल्प लेकर जो कार्य सिद्ध किए जाते हैं तो उसकी तस्वीर कितनी भव्य होती है। वाराणसी का सांसद होने के नाते मेरे लिए दोहरी खुशी का मौका है। आज जल, थल और नभ तीनों को ही जोड़ने वाली नई ऊर्जा का संचार इस क्षेत्र में हुआ है। आज मुझे 200 करोड़ रुपये से ज्यादा के बने ‘मल्टी मॉडल टर्मिनल’ का उद्घाटन करने का सौभाग्य मिला. इस कंटेनर के चलने के मतलब है कि पूर्वांचल अब बंगाल की खाड़ी के साथ जुड़ गया है। वाराणसी की सड़क, मां गंगा को प्रदूषण मुक्त करने वाले प्रयासों का शिलान्यास किया गया है। ढ़ाई हजार करोड़ से ज्यदा के प्रोजेक्ट बनारस को भव्य बनाएंगे। जलमार्ग से समय और पैसा बचेगा। सड़क पर भीड़ भी कम होगी। ईंधन का खर्च भी कम होगा और गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से भी राहत मिलेगी।
विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए उन्होंने यह भी कहा कि चार साल पहले इस प्रोजेक्ट का मजाक उड़ाया गया था। कलकत्ता से आये जहाज ने आलोचकों को खुद ही जवाब दिया है। यह प्रोजेक्ट सिर्फ ढुलाई की हिस्सा नहीं, ‘न्यू इंडिया’ का सबूत है। देश के संसाधनों और देश के सामर्थ्य पर भरोसा का सबूत है। यूपी, पूर्वांचल में फर्टिलाइडर समेत कितने भी कारखाने हैं वो सीधे पूर्वी बंदरगाह तक पहुंच जाएगा। वो दिन दूर नहीं जब वाराणसी में होने वाली सब्जी आदि इसी जलमार्ग से जाया करेगी। लघु उद्योग वालों और किसानों के लिए कितना बड़ा रास्ता खुलने जा रहा है! .
अंत में, उन्होंने लोगों से यह भी कहा कि आप अपनी ऊर्जा 2019 तक बचाकर रखें।
इस दौरान पीएम मोदी के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी 12 नवम्बर के पहले ही अपने ट्वीट में लिख चुके थे कि “ये इस सप्ताह में भारत की सबसे बड़ी खबर हो सकती है। आजादी के बाद ‘पहली बार’ अंतर्देशीय जलपोत पर कंटेनर आ रहा है। पेप्सिको कंपनी गंगा नदी के रास्ते जलपोत ‘एमवी आरएन टैगोर’ के जरिए अपने 16 कंटेनर को कोलकाता से वाराणसी ला रही है। ये बहुत बड़ी उपलब्धि है।”
यानी मुख्य ‘समाचार’ यह था कि कोलकाता से वाराणसी के लिए 28 अक्टूबर को चले ‘पेप्सीको’ के 16 कंटेनर 8-9 नवम्बर को बनारस टर्मिनल पर पहुंचे। 12 नंवबर को प्रधानमंत्री मोदी ने उस जलपोत को रिसीव किया और टर्मिनल को देश को समर्पित किया। यही जलपोत ‘एमवी आरएन टैगोर’ वाराणसी से इफ्को कंपनी का उर्वरक लेकर कोलकाता लौटेगा। लेकिन प्रधानमंत्री जी के भाषण से जाहिर हुआ कि 12 नवम्बर 2018 का ‘लोकार्पण’ उनकी ‘गंगा की सत्ता-राजनीति’ का हिस्सा था।
इस राजनीति का किसको कितना और क्या फ़ायदा या नुक्सान होगा, इसका अनुमान या आकलन 2019 के चुनाव के पूर्व ही करना हो, तो गंगा में 1620 किलोमीटर लंबे इलाहाबाद-हल्दिया जलमार्ग (वाटरवेज-1) की बरसों पुरानी परियोजना की गति-दुर्गति के ‘इतिहास’ की ‘खबर’ लेनी होगी। इसकी शुरुआत इन सवालों से की जा सकती है कि क्या बनारस टर्मिनल इलाहाबाद-हल्दिया के बीच प्रस्तावित जलमार्ग-1 के पांच टर्मिनल में से एक नहीं है? इलाहाबाद टर्मिनल का क्या हुआ कि बीच में बनारस टपक पड़ा? बाकी चार कहां-कहां बनने हैं या बन गए? इस परियोजना को ‘वर्ल्ड बैंक’ फंडिंग कर रहा है न? कितना फंडिंग करने को वह राजी हुआ है? फंडिंग का माने क्या है? कर्ज या कि और कुछ? फंडिंग की शर्तें क्या हैं? क्या इस परियोजना को इस आधार पर मंजूरी मिली कि इसके तहत नदी के ‘पर्यावरण’ को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा? कि उसके बहाव को प्रभावित नहीं किया जाएगा? कि पानी का संग्रह नहीं होगा? कि सभी जहाजों में साफ ईंधन, जैसे एलपीजी, का इस्तेमाल होगा? कि ये जहाज जीरो डिस्चार्ज की नीति का पालन करेंगे? यानी कचरा वगैरह पानी में नहीं छोड़ेंगे? किसी ‘जलजीव अभयारण्य’ के पास से गुजरते हुए 5 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड रखेंगे? नदी-तली को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे?
इससे दीगर सवाल पर्यावरण के जानकार लोगों की आशंका से जुड़ा है। उनका कहना है कि भारत की नदियों में जब बाढ़ का मौसम होता है, उस समय जहाज का परिवहन मुश्किल हो जाएगा। गर्मियों के सीजन में अधिकतर नदियों में पानी इतना नहीं रह जाता कि उनमें नाव या बड़े जहाज चल सकें। उस समय नदियों के जल से सिंचाई और पीने के पानी जैसी दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति तक करना मुश्किल हो जाता है।
तो 12 नवम्बर को हमारे ‘इतिहास पुरुष’ प्रधानमंत्री ने जो स्वप्निल ‘दावा’ किया, उससे उक्त आशंकाओं को ‘गंगा-लाभ’ मिल गया?