“आप जानते हैं हमारे देश में गंगा-जमुनी संस्कृति की गंगा कहां बहती है?” उसने आते ही सवाल ठोक दिया।

हम सब चुप! अरे, ये भी कोई सवाल हुआ? हिमालय से उतर कर सागर में जो समाती है, उसी गंगा से न गंगा-जमुनी संस्कृति का जन्म हुआ? फिर इसमें पूछना क्या है कि वह गंगा कहां बहती है? फिर भी हमने पूछा – “वह गंगा कहीं और है क्या? आप ही बता दीजिए वह कहां बहती है?”

उसने दावा करने के लहजे में जवाब दिया – “बिहार में। सिर्फ बिहार देस में!”

“सिर्फ बिहार में? आप ऐसा कैसे कह सकते हैं?”

हमारे इस सवाल पर वह गंगा की विस्तार से चर्चा करने लगा – “यह सही है कि उद्गम से लेकर समुद्र में समाने तक गंगा की कुल लंबाई 2525 किलोमीटर है। गंगा भारत की प्रमुख नदी है। यह बिहार की भी सबसे बड़ी नदी है। इस प्रदेश में जितनी भी नदियां बहती हैं, उनमें सर्वाधिक लंबा प्रवाह-मार्ग गंगा का ही है। गंगा जहां से बिहार को छूती है, वहां से उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बीच वह 72 किलोमीटर तक सीमा बनाकर चलती है। फिर सिर्फ बिहार से होते हुए और इसके बीचों-बीच से बहती है, तब झारखंड और बंगाल की 64 किलोमीटर सीमारेखा बनकर गुजरती है। करीब 400 किलोमीटर तक तो गंगा सिर्फ बिहार से होकर बहती है….।”

“लेकिन इससे गंगा-जमुनी संस्कृति को क्या …?”

उसने हमें टोकने से रोक दिया – “हां, हां, यही तो हम बता रहे हैं। पहले समझिए तो। आपने गंगा को देखा है? नक्शा में नहीं। गंगा के किनारे जाकर देखिएगा, तभी समझिएगा। हिमालय के आंगन में गंगा छोटी नटखट बच्ची की तरह खेलती-कूदती नजर आती है। ऋषिकेश और हरिद्वार के पास वह चंचल किशोरी-सी इठलाती है। प्रयाग में वह सुंदर-सुशील कन्या सी मुस्कराती है। काशी पहुंच कर वह यौवन की दहलीज पर खड़ी होती है। और बिहार पहुंचकर गंगा पूरी तरह से जवान हो उठती है। अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति सजग जवान गंगा! बिहार आकर ही गंगा का भव्य ‘मातृ-सरिता रूप’ प्रकट होता है। आप ठीक से देखिए, यही गंगा बंगाल पहुंच कर कुछ बूढ़ी- सी थरथराती चलती है। है कि नहीं? हमारे कहने का ई मतलब है कि कोई लड़की जब जवान होती है तभी जननी बनती है। लेकिन इतने से वह मां नहीं बन जाती। और, जननी जब मां बनती है, तभी कोई संस्कृति पैदा होती है, मां की गोद में पलती-बढ़ती है और सदियों जिंदा रहती है।”

हम भकुवाये से उसको सुनते रहे। उसने कहना जारी रखा - “अभी भी बात समझ में नहीं नू आयी है! तो यूं समझिए। ये तो आप भी जानते हैं और इतिहासकार भी कहते हैं कि गंगा के तटों पर भारत की सभ्यता और संस्कृति का चरम विकास हुआ। इसी के किनारे बड़े-बड़े नगरों और राज्यों का उदयास्त हुआ है। इसीके तटों पर भारतीय इतिहास ने आंखमिचौनी का अपना खेल किया। बिहार के लेखक हैं हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय’। उन्होंने यह लिखा भी है। (‘बिहार की नदियां: ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सर्वेक्षण’)

“उन्होंने लिखा है कि भारतीय सभ्यता-संस्कृति के विकास-प्रवाह और गतिशीलता का आकलन करना हो या फिर सत्ता के उत्थान-पतन का, उसका पूरा इतिहास वस्तुतः ‘गंगा’ से शुरू होता है और गंगा की धारा के अनुसार ही मुड़ता है। इस मामले में बिहार की गंगा की भूमिका ‘निर्णायक’ रही। मौर्य, शुंग, कुषाण तथा गुप्तकाल का भारतीय ‘इतिहास’ तो मुख्यतः उस गंगा के तट पर विकसित सत्ता-सभ्यता-संस्कृति की विराट गाथा है, जो चौसा (बिहार) से राजमहल (अब झारखंड में पड़ता है) तक जाती है। मुगल शासन से लेकर अंगरेजी शासन तक के उत्थान-पतन का मुख्य ‘इतिहास’ भी बिहार की गंगा ने लिखा। बाबर, हुमायूं और अकबर से लेकर जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के शासन के उत्थान-पतन की दिशा गंगा ने तय की। हुमायूं और शेरशाह का निर्णायक युद्ध इसी गंगा (चौसा) के मैदान में हुआ था। गंगा की मदद और उसके सहारे ने ही शेरशाह को दिल्ली के राज-सिंहासन तक पहुंचाया। शेरशाह तो मूलतः गंगा का बेटा था। इसीलिए राजा बनते ही उसने पूरे भारत की जमीन को कोलकाता से पेशावर तक - गंगा की तरह - एक सड़क से जोड़ दिया, जिसे आप जीटी रोड कहते हैं। और, वह युद्ध भी इसी गंगा की धार पर हुआ जो भारत में अंगरेजी राज की स्थापना के लिए निर्णायक सिद्ध हुआ।”

हमने उसे उकसाया – “इसका माने यही न हुआ कि गंगा की लहरों पर और उसके किनारे जो सभ्यता और संस्कृति विकसित हुई, वह जनता को गुलाम बनाने वाले राजाओं और शासकों की देन है। तो गंगा-जमुनी संस्कृति यही है क्या?”

वह बोला – “हम जानते थे कि आप पढ़े-लिखे लोग यही बात उठाएंगे और यहीं अटके रहेंगे। इतिहास को पत्थर-पहाड़ बनाएंगे, बहता पानी नहीं। बस, यही इतिहास बताएंगे कि पुराने जमाने में सत्ता का केंद्र गंगा के किनारे ‘पाटलिपुत्र’ (मगध साम्राज्य) में था, जो बाद में मुगल और ब्रिटिश काल में दिल्ली ‘शिफ्ट’ हुआ, जहां जमुना बहती है। सो सत्ता के केंद्र से जो राज-काज चला, वही सभ्यता और संस्कृति के रूप में फैला। आपका यही सीमित इतिहास-ज्ञान पटना से लेकर दिल्ली तक को डुबाए हुए है। इसी ज्ञान का नतीजा है कि दिल्ली में जमुना नदी गंदा नाला बन गयी। और, अब गंगा पर आफत है।”

“तो आप ही बताइए न गंगा-जमुनी संस्कृति, सत्ता की छीना-झपटी से अलग, जनता के द्वारा रची गयी संस्कृति कैसे है?”

हमारा सवाल सुनकर भी वह रुका नहीं। वह उठ गया – “ई हम कल बतावेंगे। अभी हम तो ‘मीतन घाट’ जा रहे हैं। सुना कि इस बार ‘उर्स’ में वहां के खानकाह में कोई पीर आये हैं। बिहार में गंगा किनारे सूफी-संत को क्या कहते हैं, आपको मालूम है? पीर जगजोत! यानी पीर वही, जो जग में जोत फैलाता है। हम उन्हीं के दर्शन कर अशीर्वाद लेने जा रहे हैं। आपके सवाल का जवाब कल होगा।”