आगामी लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी राजनीतिक माहौल गरम है और मुख्य विपक्षी राजनीतिक पार्टियाँ (काँग्रेस, JMM, JVM, RJD) भजपा को हराने के नाम पर महागठबंधन बनाने और बिगाड़ने का खेल आपस में खेल रही हैं.

वर्तमान में विपक्षी राजनीतिक पार्टियों के नेता सामाजिक संगठनों एवं जनांदोलनों के साझा मंच पर मंचासीन हो रहे हैं. सभी विपक्षी पार्टी झारखंड के जन सवालों से किनारा लेते हुए तथा झारखंडी जनता को विश्वास में लिए बिना संयुक्त रूप से भाजपा को हराने के लिए प्रतिबद्धता दिखा रही है.

साथ ही, सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के साझा मंच से ये विपक्षी पार्टियाँ ऐसा माहौल और दबाव बना रही हैं, जैसा कि मानो सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के लोगों के ऊपर ही भाजपा को हराने की पूरी जिम्मेदारी है, वह भी बिना किसी सवाल-जवाब के. या दूसरी तरह से यूँ कहें के इन्हीं जनसंगठनों की गलतियों की वजह से केंद्र और राज्य में भाजपा अपने विकराल रूप में आयी हो और इसलिए इन जनसंगठनों को ही भाजपा को हराने और विपक्षी पार्टियों को जिताने का काम बिना जनमुद्दों को उठाए मजदूर करना होगा.

दूसरी तरफ ये विपक्षी पार्टी तथा पार्टी के नेता अपने-अपने निजी स्वार्थ को प्राथमिकता देते हुए एक-एक सीट के लिए आपस में छीना-झपटी में लगी हुई हैं. और इन सबसे अलग इधर सामाजिक संगठन और जनांदोलन वाले लोग विपक्ष के द्वारा महागठबंधन के अंदर सीट के इस बंदर बाँट का खेल देखने के लिए मजबूर बने हुए हैं.

हमलोग झारखंड भ्रमण के दौरान तथा के तथ्यपरक राजनीतिक विशलेषण के बाद यह पाया कि आगामी लोकसभा चुनाव में आरएसएस-भाजपा जैसी फासीवादी, पूँजीवादी, जनविरोधी, सामाजिक न्याय विरोधी ताकत को हराने के लिए या यूँ कहें, समाज से आएसएस और सत्ता से भाजपा को बेदखल करने के लिए झारखंड में सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के लोगों को भी महागठबंधन में शामिल कर आगामी लोकसभा चुनाव में इनको भी प्रत्याशी बनाना चाहिए. सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को शामिल किए बिना तथा इनको चुनाव में प्रतिनिधित्व दिए बिना भाजपा को हराने के नाम पर विपक्षी पार्टियों द्वारा बनाया जाने वाला महागठबंधन महज एक दिखावा साबित होगा. झारखंडी जनता, जनसवालों, झारखंडी स्वाभिमान तथा जनता के लड़ाकू परंपरा के साथ बेईमानी होगी.

इन चार-पांच सालों में भाजपा के द्वारा दमन और लूट झारखंड में दो जगहों पर सबसे ज्यादा हुआ है. पहला खूँटी और दूसरा गोड्डा.और इसलिए हमलोगों का मानना है कि सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के लोगों को सिर्फ मूकदर्शक नहीं बने रहना चाहिए, बल्कि तमाम ज्वलंत जनसवालों को चुनाव का एजेंडा बनाने और आगामी लोकसभा चुनाव में खूँटी और गोड्डा लोकसभा सीट पर अपनी बात मुखर और निर्भीक होकर महागठबंधन के सामने रखनी चाहिए. साथ ही साथ विपक्षी पार्टियों को भी ये दो सीटें (खूँटी और गोड्डा) पर सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों के लोगों को स्वतंत्र रूप से प्रत्याशी बनाकर अपने जनपक्षधर होने का मिशाल पेश करना चाहिए. खूँटी और गोड्डा लोकसभा सीट सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को देना झारखंड में आरएसएस-भाजपा के खिलाफ सड़कों पर लड़ रही जनता को सम्मान देना जैसा होगा.

दूसरी बात गोड्डा लोकसभा सीट सामाजिक संगठनों तथा जनांदोलनों को देने से महागठबंधन के अंदर काँग्रेस और जेवीएम के बीच चल रही नूरा कुश्ती, रस्साकसी को भी विराम मिलेगा, जिससे महागठबंधन की सेहत पर भी अच्छा असर पड़ेगा तथा जनता के बीच भाजपा के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने का एक मजबूत संदेश भी जाएगा.