जनतांत्रिक प्रक्रिया यही है कि सरकारों के ऊपर निगरानी राखी जाय. निगरानी रखना एक सकारात्मक काम है. सरकार के स्वागत का नागरिक तरीका यही है, कि उसके कामकाज से मतलब रखा जाय. यही तो है निगरानी की भावना. निगरानी का काम ज्यादा सार्थक तब होता है जब लोग/ हम सकारात्मक विपक्ष की भूमिका लें. विपक्षी दल अक्सर सत्ता में जाकर जो करने का अरमान रखते हैं, उस बात के लिए सत्तापक्ष की निन्दा करते हैं. जैसे “ चौकीदार चोर है “ का नारा.

कांग्रेस ने जी एस टी लाने का प्रयास किया था, आधार पहचान की पहल ली थी, बाजार को बढ़ावा दिया था. अदानी, अनिल अंबानी, मुकेश अंबानी को प्रोत्साहन दिया. विजय माल्या बिहार में तब भी आदर के साथ बुलाए गए थे, जब आरजेडी नितीश सरकार में साझा कर रहे थे. इत्यादि. यह सब लिखने की बात नहीं. यह काम भाजपा भी कर रही थी.

फिर भी भाजपा ज्यादा खतरनाक थी.

क्योंकि कांग्रेस की सरकार का एक्सटेंशन / विस्तार होने के अलावा यह सहिष्णुता, सद्भावना सेकुलर भावना, के खिलाफ खड़े लोगों की सरकार है. यही इनका इतिहास है.

जिन गलतियों का परिणाम स्वरूप २०१४ की यह बीजेपी की सरकार बनी थी, उनके खिलाफ पुराने खेमे, पुराने सत्ता समीकरण का समर्थन लेने की भी अभिलाषा, हम लोगो में थी. २०१९ के चुनाव तक आते हुए कांग्रेसवाद का समर्थन लेने की लकीर खास तौर पर खिंच गई थी.

इस चुनाव से तीन साल पहले मानवीय एकता, राष्ट्रनिर्माण और विविधता की संस्कृति के मसले को समकालीन परिप्रेक्ष्य प्रदान करना, मेरी समझ से एक जरूरी या उचित भूमिका थी. इसको फिर से संकल्पित करने का यह वक्त है.

सबक

मैं अभी आये चुनाव परिणाम से सबक लेना चाहता हूं. पहली सबक एक राज्य बिहार के लिए है. इस राज्य के विपक्ष को ठुकरा दिया गया. यह मुझे उतना अस्वाभाविक भी नहीं लगा है. यूपीए बिहार में एक अपवित्र गठबंधन है. इसने एनडीए के वोट के बिखराव को रोकने में सहयोग किया है.

पर बिहार में एनडीए गठबंधन भी खास कर हमारे सूबे के लिए अपवित्र गठबंधन हैं. नितीश बिहार के दुर्भाग्य की इबारत लिखने में लगे हैं. ये लगातार अवसरवादी नेता बने हुए हैं. इनके शासन में बने रहने से नौकरशाही, स्वेच्छाचारी हो गई है.

परन्तु इस चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हो गया है कि बिहार में महागठबंधन की विश्वसनीयता नहीं बची है. नितीश को सन २०२० के नवंबर में सत्ता से हटाने लायक विकल्प बिहार में है ही नहीं. अब यह भ्रम नहीं रहे कि महागठबंधन पर निर्भर करना है. बल्कि बिहार के लिए विकास, और न्याय की पूरी योजना के साथ नैतिक और संसदीय विकल्प बनाने में हम आज से लग जाएं.

भारत की अपनी पुरतांता भी थी, सभ्यता संस्कृति भी थी, भारत का अपना नक्शा भी था. यूरोप के कई देशों की तरह यह नक्शा बनता बिगड़ता था। राष्ट्र के रूप में भारत के इतिहास की पुरातन परम्परा, उल्लेखनीय थी. भारत के इतिहास को लेकर अंग्रेजों से भ्रमित ना हों. भारत के इतिहास के प्रति अतिरेक गौरव भी नहीं रखें.