प्रश्न : आपने अपना अंतिम जन्म दिवस कब मनाया? आपको याद है? आपने उसे कैसे मनाया, उसके बारे में कुछ बताएंगे?

गांधी : अक्तूबर, 1947 की 2 तारीख मेरे पार्थिव जीवनकाल में मनाया जाने वाला अंतिम जन्म-दिवस था। मैंने अपना जन्म-दिन हमेशा की तरह उपवास, प्रार्थना और विशेष कताई करके मनाया। उपवास आत्म-शुद्धि के लिए और कताई द्वारा मैंने ईश्वरीय सृष्टि के सबसे दीन-हीन लोगों की सेवा में जीवन अर्पण करने के अपने प्रण को दोहराया। चरखा अहिंसा का द्योतक था। वह प्रतीक समाप्त-सा हो गया था। मगर इस आशा से कि शायद चरखे के सं‹देश के प्रति निष्ठावान कुछ थोड़े से लोग जहां-जहां हो सकते हैं, मैंने यह आयोजन बंद नहीं किया था।

सुबह साढ़े आठ बजे स्नान के बाद जब मैं अपने कमरे में प्रविष्ट हुआ। और शुरू में ही एक मजेदार बात हो गयी। कई लोग मेरा अभिवादन करने आ गये। उनमें से एक ने कहा – “बापूजी, हम अपने जन्म दिन पर अन्य लोगों से चरण छूकर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं, लेकिन आपके मामले में बात इसके बिल्कुल विपरीत होती है। क्या यह उचित है?” मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं खुलकर हंसते हुए बोला – “महात्माओं के तरीके भिन्न होते हैं। इसमें मेरा कोई दोष नहीं। आपने मुझे महात्मा बना दिया, हालांकि बोगस महात्मा, इसलिए आप लोगों को सजा तो भुगतनी पड़ेगी।” कुछ अतरंग साथी प्रतीक्षा कर रहे थे - पंडित नेहरू, सरदार पटेल, घनश्यामदास बिड़ला और बिड़ला परिवार के समस्त सदस्यगण शामिल थे। मीरा बहन ने मेरे बैठने के लिए बिछे आसन के सामने रंग-बिरंगे फूलों से कलापूर्ण ‘क्रॉस’, ‘हे राम’ और ‘ऊं’ लिखकर खूबसूरती से सजाया था। एक संक्षिप्त प्रार्थना हुई, जिसमें सबने भाग लिया। उसके बाद मेरी एक प्रिय अंग्रेजी भजन ‘WhenI survey the wondrous Cross” गाया गया। साथ ही एक और प्रिय हिंदी भजन ‘हे गोविंद राखो शरण’ का भी गायन हुआ।

सारे दिन अपनी श्रद्धांजलि अर्पण करने के लिए आगंतुकों एवं मित्रों का तांता लगा रहा। राजदूतावासों के प्रतिनिधिगण भी आये, उनमें से कुछ अपनी सरकार की ओर से मेरे लिए शुभकामना-संदेश लेकर आये। अंत में लेडी माउंटबैटन अपने साथ पत्रों और तारों का पुलिंदा लेकर आईं। मैंने सब लोगों से अनुरोध किया : आप इस बात की प्रार्थना करें कि ईश्वर या तो देश में जारी अग्निदाह (conflagration)को शांत कर दे अथवा मुझे उठा ले। मैं कतई नहीं चाहता कि आग से जलते भारत में मेरी दूसरी वर्षगांठ आये।”

मैं सरदार से बोला : “मैंने ऐसा कौन-सा पाप किया था कि जो ईश्वर ने मुझे इस सारे संत्रास का साक्षी बनने के लिए जीवित छोड़ रखा है?”

मुलाकाती लौटने लगे तभी मुझे खांसी का एक और दौरा आया। मैं बूढ़ा ठहरा, मन ही मन बोलने लगा - बड़बड़ाने लगा – “यदि प्रभुनाम मेरे लिए सब रोगों की रामबाण दवा सिद्ध नहीं होता, तो मैं इस शरीर को छोड़ देना अधिक पसंद करूंगा। एक भाई द्वारा दूसरे भाई की हत्या का इस सतत जारी सिलसिला के कारण सवा सौ वर्ष जीने की मेरी इच्छा बिल्कुल नहीं रह गयी है। मैं इन हत्याओं का असहाय साक्षी बनकर नहीं रहना चाहता…।” तभी किसी ने बीच में कहा - “तो आप सवा सौ वर्ष से शून्य पर उतर आये?

“हां, अगर यह दावानल शांत नहीं हो…।”

उस दिन आकाशवाणी पर मेरा जन्म दिन मनाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम प्रसारित करने का आयोजन किया गया था। मुझसे

पूछा गया – “क्या आप अपवाद-स्वरूप सिर्फ एक बार रेडियो का विशेष कार्यक्रम नहीं सुनेंगे?”

मैंने कहा – “नहीं, मुझे रेडियो के बजाय रेंटियो (गुजराती में चरखे को रेंटियो कहते हैं) ज्यादा पसंद है। चरखे की गूंज मुझे अधिक मीठी लगती है। उसमें मुझे मानवता का शांत और करुणापूर्ण संगीत सुनाई देता है।” मैंने ने विश्व के सभी भागों से मेरे जन्मदिन पर आये बधाई संदेशों, तारोंऔर पत्रों को प्रकाशनार्थ जारी करने से इनकार कर दिया। मुसलमान मित्रों से और पाकिस्तान से भी मुझे अनेक आकर्षक सं‹देश प्राप्त हुए, लेकिन मैंने महसूस किया कि जब आम जनतामें सत्य और अहिंसा के प्रति, कम-से-कम फिलहाल, अविश्वास नजर आता है तो यह वक्त इन पत्रों को प्रकाशित करने का नहीं है।

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प्रश्न : हमने पढ़ा-सुना कि आप 125 वर्ष का ‘एक्टिव’ जीवन जीना चाहते थे और वह भी इस दावे के साथ कि आप इसे संभव कर दिखाएंगे।

गांधी : हां, यह बात सही है। लेकिन उसी दौरान एक और वाकया हुआ।उस समय देश आजाद हो रहा था। मैं कलकत्ता-नोआखाली-पटना-बिहार और दिल्ल्री के बीच भटक रहा था।एक पत्रकार ने लिखा – “गांधीजी के आदर्श तथा उनके मुताबिक आचरण के बल पर हिंदोस्तान अपनी आज की स्थिति प्राप्त कर सका है। परन्तु हम जिस सीढ़ी की मदद से इतना ऊंचे चढ़ सके, उसे ही लात मार रहे हैं। क्या कांग्रेस के नेताओं ने गांधीजी को जिंदा ही दफना नहीं दिया?”

तब मैंने तत्काल एक लेख लिखा - “जिंदा दफनाया?” उसमें मैंने कहा – “अभी मुझे जिंदा दफनाया नहीं है। सामान्य जनता ने मेरे आदर्शों में से श्रद्धा नहीं गंवाई है ;उस मान्यता पर मैं यह आशा कर रहा हूं। जनता ने श्रद्धा गंवा दी, ऐसा साबित होगा तब वह भारी संकट में आ जावेगी और तब मुझे जिंदा दफनाया गया है, ऐसा कहा जावेगा। परन्तु मेरी श्रद्धा की ज्योति तब तक जैसी की तैसी चमकती रहेगी। मुझे आशा है कि मैं अकेला रह जाऊं तो भी वह चमकती ही रहेगी - तब तक कब्र में पड़े हुए भी मैं जिंदा रहूंगा और विशेष तो यह कि मैं बोलता रहूंगा। मैं मरने के बाद भी अपनी श्रद्धा की घोषणा करता रहूंगा और कब्र से भी अपनी बात सुनाता रहूंगा।” ++