हाल के दिनों में कई मीडिया रिपोर्टों में यह बात कही गयी है कि खूंटी में 10000 ‘अज्ञात’ लोगों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है. उनका आंकलन पत्थलगड़ी मामलों में दर्ज 19 प्राथमिकियों पर आधारित है. खूंटी पुलिस ने 21 नवम्बर को वक्तव्य जारी कर कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स पूरी तरह से गलत है और उनमें संख्या को काफी बढ़ाया गया है. उनके वक्तव्य के अनुसार 19 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें IPC का धारा 121 क / 124 क (राज्य के विरुद्ध युद्ध / देशद्रोह) 172 लोगों पर लगाया गया है. लेकिन उनके वक्तव्य में हजारों अज्ञात लोगों पर देशद्रोह के आरोप के मुद्दे का ज़िक्र भी नहीं है. 21 नवम्बर को झारखंड के मुख्य मंत्री रघुवर दास ने भी मीडिया रिपोर्ट को गलत बताया और कहा कि सरकार ने “देश-विरोधी कार्य करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्यवाई की थी”.

झारखंड जनाधिकार महासभा,जो कई जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मंच है, ने अगस्त 2019 को खूंटी के पत्थलगड़ी गावों में तथ्यान्वेषण किया था जिसका उद्देश्य था आदिवासियों द्वारा पत्थलगड़ी करने के कारणों व पत्थलगड़ी के विरुद्ध प्रशासन की कार्यवाई को समझना (रिपोर्ट संलग्न). तथ्यान्वेषण में पाए गए तथ्यों से ही झारखंड सरकार द्वारा फैलाए जा रही झूठ स्पष्ट हो जाती है. तथ्यान्वेषण दल के पास उपलब्ध 15 प्राथमिकियों के अनुसार, पुलिस ने लगभग 150 नामज़ाद लोगों और कम-से-कम 10000 अज्ञात लोगों पर राजद्रोह समेत कई आरोप दर्ज किए हैं (प्राथ्मिकियों का समेकन संलग्न). कम से कम तीन प्राथमिकियों (जिनके अंतर्गत कई गावों के लोगों को अभियुक्त बनाया गया है)में,अज्ञात अभियुक्तों की कुल संख्या न देकर यह लिखा हुआ है - “उपरोक्त गाँव के असंवैधानिक कार्य में शामिल अन्य महिला पुरुष”. इसका तत्पर्य सभी गाँव के सभी नागरिक भी हो सकते है.अगर इन्हें भी जोड़े, तो कुल अज्ञात अभियुक्तों, जिनपर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है, की संख्या 10000 से काफी ज़्यादा होगी.

खूंटी पुलिस के वक्तव्य में यह भी नहीं बताया गया है कि क्यों एक साल से भी पहले दर्ज प्राथमिकियों में हजारों अज्ञात अभियुक्तों पर देशद्रोह का आरोप अभी भी दर्ज है, जबकि पुलिस को इतने दिनों में भी उनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं मिले हैं.

पुलिस का कहना है कि वैसे ग्रामीण जो आरोपित नहीं हैं, उन पर 121क / 124 क धाराओं के अंतर्गत कार्यवाई करने की प्रक्रिया नहीं चलायी जा रही है. अगर ऐसा है, तो सवाल यह है कि पुलिस सभी अज्ञात लोगों के नाम दर्ज मामलों में क्लोज़र रिपोर्ट क्यों नहीं दायर कर रही है? उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि पत्थलगड़ी सम्बंधित मामलों में कुल कितनी प्राथमिकियां दर्ज की गयी हैं. यह भी गौर करने की बात है कि कुल नामजद अभियुक्तों में अनेक पारंपरिक ग्राम प्रधान भी हैं.

दल ने यह भी पाया था कि स्थानीय प्रशासन द्वारा पत्थलगड़ी आन्दोलन के विरुद्ध भयानक दमन और हिंसा की गई हैं. कई गावों के आदिवासियों को बेरहमी से पीटा गया है. कुर्की— ज़ब्ती के आड़ में कई घरों को तहस-नहस किया गया है. माल मवेशियों को क्षति पहुंचाई गयी है. घाघरा गाँव की आश्रिता मुंडा की, जो गर्भवती थी, पुलिस ने घर के अंदर घुसकर डंडे से पिटाई की.

आश्रिता ने एक शारीरक रूप से विकलांग बच्चे को जन्म दिया जिसके दोनो पैर अंदर की तरफ मुड़े हुए हैं. घाघरा के लोगों का कहना है कि पुलिस द्वारा 26 जून 2018 को गोली भी चलायी गयी थी जिसमें दो लोगों को गोली लगी थी. गोली से बिरसा मुंडा की स्थल पर ही मृत्यु हो गयी थी.

साथ ही, पुलिस ने बिना ग्राम सभा की सहमती के सरकारी विद्यालयों व सामुदायिक भवनों में छावनी लगा दी है. महासभा ने यह भी पाया है कि प्राथमिकियों में दर्ज आरोप और ग्रामीणों की गवाही व घटनाओं के विवरण में बहुत फर्क है.

इस हिंसा और दमन के कारण लोगों में भय और अविश्वास है. जब भी पुलिस गाँव आती है तो ग्रामीण डर जाते हैं कि कहीं उन्हें भी इन अज्ञात लोगों के नाम पर गिरफ्तार कर देशद्रोह का आरोप लगा दिया जाएगा. तथ्यान्वेषण दल ने पाया कि अनेक लोग, जिनपर प्राथमिकी दर्ज की गयी है या जिन्हें पुलिस अचानक उठा कर ले जाती है, उन्हें पता भी नहीं कि उन पर कौन-कौन सी धाराएं लगायी गयी है.

महासभा ने ज़िला प्रशासन, पुलिस विभाग और मुख्य सचिव को कई बार इन मुद्दों से अवगत कराया है और रिपोर्ट जमा की है, लेकिन मुद्दों को समझने और सुलझाने के लिए उनकी ओर से किसी प्रकार की कार्यवाई नहीं की गयी है.

महासभा पिछले एक साल से लगातार किए जा रहे मांगों को फिर से दोहराती है:

• खूंटी के हजारों अज्ञात आदिवासियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के आरोप पर की गई प्राथमिकियों में तुरंत क्लोज़र रिपोर्ट दायर किया जाए. जितने नामजाद लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है, उसकी समयबद्ध तरीके से न्यायिक जांच करवाई जाए. किस सबूत के आधार पर इन मामलों को दर्ज किया गया है और जांच में क्या प्रमाण मिलें, सरकार इसे तुरंत सार्वजानिक करे.

• घाघरा व अन्य गावों में सुरक्षा बलों द्वारा की गई हिंसा की न्यायिक जांच हो और हिंसा के लिए जिम्मेवार पदाधिकारियों पर दंडात्मक कार्यवाई हो.साथ ही, पीड़ित और क्षतिग्रस्त परिवारों को मुआवज़ा दिया जाए.

• सभी नौ विद्यालयों व दो सामुदायिक भवनों में लगाई गई पुलिस छावनियों को तुरंत हटाया जाए – अदरकी, कोचांग, कुरुँगा, बिरबांकी (अर्की); किताहातु, केवरा (मुर्हू); हूट (खूंटी)

• सरकार पत्थलगड़ी किए गाँव के लोगों, आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों व संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ पत्थलों पर लिखे गए प्रावधानों की व्याख्या पर वार्ता करे.

• सरकार पांचवी अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू करे.