गांव के जमींदार थे राधेबिहारी लाल। उनके अत्याचार एवं शोषण से ग्रामीण त्रस्त थे। किसी की जमीन पर कब्जा कर लेना, बहु-बेटियों पर कुदृष्टि रखना - इसे जमींदार साहब अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे।
युवक मधुकर समझने लगा था कि स्थानीय जनता किस कदर डरी-सहमी हुई है।लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि गरीबों की चुप्पी का अर्थ क्या है? क्या जमींदार ताकतवर है,इसलिए जनता डरी हुई है या जनता कमजोर है,इसलिए जमींदार ताकतवर दिख रहा है? आखिर जमींदार की शक्ति का क्या स्रोत है?जमींदार के खिलाफ स्थानीय जनता के दिल में आग सुलग रही थी, लेकिन बाहर सिर्फ धुआं नजर आता था!
धुआं-धुआं माहौल में एक दिन मधुकर के संगी-साथियों की टोली जमींदार की कोठी पर पहुंची। निमूंछे युवकों को देख जमींदार साहब बिफर उठे। उनका पारा चढ़ गया। वह बच्चों से सुलह-सफाई की बात करें,जिनके अभी तक दूध के दांत नहीं टूटे? बित्ते भर के छोकरे उन्हें समझाने आये हैं? वह उनकी बात सुनने की बजाय उन्हें तरह-तरह से धमकाने लगे, बात-बात में जान से मारने की धमकी भी दे डाली।
जमींदार के अपमानजनक व्यवहार से क्षुब्ध लड़के गांव लौटे। सलाह-मशविरा किया। गांव के लोगों को स्थितियां समझायीं। गांव के तमाम युवकों को ललकारा - गरीब गरीब क्यों है? इसलिए नहीं कि दुश्मन मजबूत है। इसलिए कि गरीब खुद अंदर से कमजोर है। कोई समाज अंदर से कब और कैसे कमजोर होता है? जब वह अपनी बेइज्जती के लिए अपनी गरीबी को दोष देने लगता है।
गरीब भी इंसान है। उसके पास भी इज्जत होती है। वह उसके भी अस्तित्व का आधार है। जिंदा रहने भर के लिए गरीब जब उस आधार को खुद पोला (खोखला) कर लेता है,तभी वह दरिद्र बनता है - याचक बन जाता है।
यहीं से उसकी गुलामी शुरू होती है। गरीब समाज का खुद आत्महीन बनना और गुलामी कबूल करना जमींदार के शासक और शोषक बनने और बने रहने की ताकत का आधार है। जमींदार कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो,उसके पास कितने भी हरबो-हथियार क्यों न हों,उसकी ताकत तभी तक असरदार है,जब तक गरीब समाज अपनी इज्जत ताक पर रख कर जमींदार की इज्जत करता है।
गरीब अपनी जिंदगी के लिए जमींदार की इज्जत अपने सर पर ढोना कबूल करता है। यानी आत्महीन गरीब का डर जमींदार की इज्जत का आधार है। गरीब जान बचाने के लिए इज्जत गंवाता है। वह जिस दिन इज्जत के लिए जान गंवाने को तैयार हो जायेगा,समझो जमींदार की इज्जत का आधार खिसक गया।
एक दिन गांव के तमाम गरीब एकजुट हुए। मधुकर की रहनुमाई में जमींदार के घर पर धावा बोल दिया। जनता ने उस दिन और कुछ नहीं किया - सिर्फ जमींदार का मकान घेरा। समवेत स्वर में नारेबाजी की –‘जमींदार होश में आओ…।’
इतना ही काफी साबित हुआ। जमींदार के होश उड़ गये।मधुकर पर मुकदमा ठोंका। उसमें उसे प्रथम अभियुक्त बनाया। पुलिस से बचने के लिए वह कई दिनों तक गांव की सीमा वाले जंगल-झाडि़यों में छुपा रहां, पेड़ों पर चढ़ा रहां ; कई-कई दिन वहीं गुजारे। राजनीति की भाषा में वह ‘अंडरग्राउंड’ हो गया। पुलिस-प्रशासन ने उसे ‘फरार’ करार दिया।
लेकिन इस बीच मुकदमा के बहाने जमींदार ने गांव छोड़ने का इंतजाम किया जनता की भीड़ और आक्रोश के तेवर देख चुपके से शहर भाग खड़े हुए। सूबे में सत्ता-राजनीति के खेल में धूम मचानेवाली पार्टी में शामिल हुए। कुछ ही समय में उन्होंने गांव की अपनी जमीन ठेके पर चढा दी। कुछ जमीन बेच दी, अपनी कोठी भाड़े पर लगा दी और शहर में बसने का पुख्ता इंतजाम किया।
कुछ दिन बाद मधु का नाम और फोटो अखबारों में छपा – “सबसे कम उम्र का लड़ाकू युवा नेता! तब मधुकर खुले में आया। गांव में आजादी का जश्न मनाया जाने लगा। मधुकर को सामूहिक विरोध एवं प्रतिकार की रणनीति और उसमें निहित ताकत समझ में आने लगी। वह उसके जीवन की पहली घटना थी। पहली ऐसी घटना,जो किसी भी युवक के वयस्क बनने का संकेत करती है। ऐसा युवक,जो होश के नाम पर अपने जोश को जब्त रखने का कायल नहीं जो कोई भी फैसला खुद करना चाहता है,कोई भी रिस्क लेने को तैयार रहता है।
अखबारी कतरन लिये कुछ नेता टाइप के लोग गांव आये। उसे राजधानी ले गये। सूबे के मुख्यमंत्री से मिलवाया। सारे मुकदमे क़ानून की लम्बी यात्रा पर रवाना कर दिये गये। मधुकर गांव लौटा। देखा, गांव की सीमा पर गांव के तमाम लोग उसके स्वागत में पलक-फांवड़े बिछाए खड़े हैं। उनके बीच में हैं जमींदार साहब! उसके पहुंचते ही उसे फूलों के हारों से लाद दिया गया, ढोल-नगाड़े बजे, भोज-भात हुआ। नारे लगे – “इन्किलाब जिदाबाद, हमारा नेता कैसन हो, जवान मधुकर जैसन हो। सभा हुई। गीत बजा – ‘हम लोग हैं ऐसे दीवाने, दुनिया को बदलकर मानेंगे’, ‘लहू का रंग एक है, अमीर क्या गरीब क्या…‘।
जमींदार साहब ने नया ज़माना-नयी जवानी पर लम्बा भाषण दिया और अंत में कहा – “मुझे ऊपर से आदेश प्राप्त हुआ है कि मैं इस सभा में पार्टी हाईकमान के एक फैसले की घोषणा करूं। मैं खुशी से घोषणा करता हूं – ‘आगामी विधानसभा चुनाव में मधुकर हमारी पार्टी के प्रत्याशी होंगे’।”
भीड़ ने खूब तालियां बजाई। जमींदार साहब ने मधुकर को गले लगाते हुए कहा – “सब लोग मिलकर नारा लगाएं – ‘मधुकर तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं’, ‘तुम्हारी जीत, हमारी जीत’! पूरी भीड़ ने दम लगा कर नारा लगाया। यह सुनते ही अभिभूत मधुकर उठा, अपने गले में पड़े सब हार उतार कर जमींदार साहब के कदमों में डालने के लिए झुका! भीड़ ने समवेत नारा लगाया – “हाथी, घोड़ा, पालकी, जय राधेबिहारी लाल की।” और, फिर तीखी आवाज में गाने का रिकॉर्ड बजने लगा – “छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे, मिलकर नयी कहानी। हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी…।।’’