रात के अंधेरे में रेप पीड़िता का शव हाथरस में ही जला कर पुलिस- प्रशासन वहां शांति कायम करने में सफल रहा. इसके लिए उन्हें यही करना पड़ा कि अंतिम समय में मां बाप को बेटी का मुंह देखने से रोकना पड़ा, उनको सारे रिश्तेदारों सहित घर में बंद कर देना पड़ा. ऐसा कर यदि उन्होंने कानून-व्यवस्था को कायम रखा तो यह उनकी बहादुरी ही होगी. औरत का रेप करना, उसको मार देना या तरह-तरह की मानसिक और शारीरिक यातनाएं देना कोई नई बात नहीं है. हमारे पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्र इसके उदाहरण हैं. वे बताते हैं कि किस तरह स्त्री पुरुष के अहंकार, उसके बदले की भावना और उसके गौरव के लिए बलि चढ़ती आयी है.
इस तरह हर समय, हर युग में औरत के साथ होने वाले अत्याचारों के पीछे पुरुषवादी समाज उसके अहंकार की पोषक व्यवस्था तथा राजनीति रही है. पिछले वर्ष जम्मू में आठ साल की गुर्जर लड़की को नशीले पदार्थ खिला कर उसके साथ रेप कर मार दिया गया तो इसके पीछे का कारण यही रहा कि वह लड़की गुर्जर जाति की थी जो एक अल्पसंख्यक पहाड़ी घुमंतू जाति होती है. उनके द्वारा जमीन को अनाधिकार पूर्वक कब्जा कर बसने से रोकने के लिए उस जाति की लड़की का रेप कर मार दिया गया. इसके द्वारा उस पूरी जाति को यह भय दिखाया जाता है कि पुलिस उन्हें ही अपना निशाना बनायेगी. बचने के लिए उन्हें ही अपनी जमीन छोड़ कर भागना होगा.
अगस्त महीने में यूपी के लखिमपुरखेरी में तेरह वर्ष की दलित लड़की का रेप करने के बाद उसकी हत्या कर दी गयी. उसका अपराध यह था कि उसने ठाकुरों के खेत में शौंच किया. सदियों से उंची जाति वालों का दलितों के प्रति जो घृणा की भावना है, वह इस रूप में प्रकट होती है. हमारे समाज में औरत जात ही नगण्य होती है और वह भी दलित हो तो और भी निकृष्ट होगी. उसका रेप करना या मार देना अपराध नहीं होगा. हाथरस वाली लड़की भी दलित थी. उसका रेप ही नहीं किया गया, उसकी जीभ काट ली गयी और रीढ़ की हड्डी भी तोड़ दी गयी. दिखावे का नाटक कर अपराधी को पकड़ा जाता है, लेकिन ऐसे अपराधियों को कभी सजा होते कम ही सुना है. अपराध तो लड़की का होता है या लड़की के मां बाप का, जिनकों डरा धमका कर रास्ते से हटा दिया जाता है.
झारखंड में डाईन बता कर औरत पर होने वाले अत्याचार या उसको मार दिया जाना भूमि को हड़पने के साथ-साथ पुरुष की शक्ति का भी प्रदर्शन होता है. सुशांत सिंह आत्महत्या केश में बिहार पुलिस तुरंत मुंबई पहुंच जाती है और रिया चक्रवर्ती को उसकी औकात बताने की बात कहती है. यहां भी पुरुष का अधिकार- दंभ प्रकट होता है. औरत के प्रति जो असहज भावना व्यक्त होती है, वह यहां पर दिखती है. इसी केस में रिया को गांजा रखने, वह भी 59 ग्राम गांजा रखने के आरोप में जेल भेज दिया गया. एनसीबी को अचानक बालीउड में नशीले पदार्थों के सेवन की खबर वाट्सएप चैट के द्वारा मिल जाती है. आननफानन में दीपिका पादुकोण, सारा अलि खान आदि महिला कलाकारों को अपने दफ्तर के सामने लाईन लगवा दिया. उनसे पांच-पांच घंटे की पूछताछ हो रही है. बालिउड में शराब या नशीले पदार्थों का सेवन कोई नई बात नहीं. फिर भी एनसीबी का अचानक इसका संज्ञान लेना और फिर सिर्फ महिला कलाकारों से पूछ ताछ करना कुछ अजब ही लगता है.
ऐसा लगता है कि महिलाओं की कमाई, प्रतिष्ठा या फैन फौलोइंग से पुरुष समाज इ्ष्या करने लगा और उनसे बदला लेने की ठान ली. यही प्रतिस्पर्धा या अहंकार महाराष्ट्र की दलित महिला को आत्महत्या करने के लिए विवश करता है. हैदराबाद की दलित डाक्टर को खुले आम सड़क पर घेर कर मारने का आनंद उठाता है.
वास्तव में ये सारी प्रकट या अप्रकट जुल्म जो औरतों के साथ होती है, वह इस ओर इशारा करती हैं कि पुरुषसत्तात्मक समाज ने महिलाओं के परिवर्तित रूप को स्वीकार नहीं किया है. लड़किया अपने सामथ्र्य से पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही हैं. पुरुषों के बराबर नौकरी कर रही हैं. अपनी सामाजिक या राजनीतिक विचार व्यक्त कर रही हैं और जरूरत पड़ने पर विरोध भी कर रही हैं. इसे पुरुष अहंकार स्वीकार नहीं कर पाता है. लड़कियों के पढ़ने पर रोक लगती है. उसके पहनावे पर रोक लगती हैं. फिर भी लड़कियां लड़ते हुए अपने अस्तित्व को बचाये हुए है. अब पुरुषों के पास एक ही अस्त्र बचा है. उसकर रेप करना और उसके सम्मान पर चोट करना. वह यही कर रहा है और पूरी व्यवस्था व राजनीति उसके संरक्षण में जुट गयी है.