स्त्रियों के प्रति राम के विचार जानने के लिए उनके पारिवारिक परिवेश और शिक्षा के बारे में जान लेना जरूरी है. दशरथ के आदित्य-कुल का संबंध सीधे आदित्यों /देवों से जोड़ा जा सकता है. कश्यप की आठ पत्नियों में से सबसे बड़ी दिति के पुत्रों (दैत्यों) और दूसरे नंबर की पत्नी अदिति के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के गृह-युद्ध को हम देवासुर संग्राम की संज्ञा दे सकते हैं. इस प्रकार यक्ष, वरुण, गंधर्व और देवों तथा रघुवंशियों के बीच के संबंध को आज के ‘नाटो’ जैसे संगठन की भांति माना जा सकता है. देवों के साथ आने से रघुवंशियों को अपार लाभ मिला. जंगल में रहने वाले आदिमजनों को अपना शत्रु मानने वाले जितने भी ऋषि-तपस्वी थे, वे राघवों के लिए वही काम करते थे, जो आज सत्ता के पक्ष में चारण मीडिया कर रही है. वरना गंगा को पृथ्वी पर लाने और समुद्र की खुदाई जैसे चमत्कारों का श्रेय रघुवंशियों को नहीं मिलता. दशरथ का परिवार ऐसे प्रायोजित प्रभामंडल, अश्वमेध यज्ञ जैसे कर्मकांडी जन-विरोधी आडंबरों से सना हुआ था.
साथ ही साथ दशरथ की कौसल्या, सुमित्रा और कैकेयी सहित तीन सौ तिरेपन रानियों के बीच कलह, राज्याधिकार के लिए होने वाले षड़यंत्र को भी मिला दीजिए तो विशुद्ध रूप से स्त्री-विरोधी व भोगवादी परिवेश में राम का पालन-पोषण हुआ. जब राम सोलह वर्ष के हुए तो विश्वामित्र उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए आए. तब तक राम के अंतर में वसिष्ठ की ब्राह्मणवादी शिक्षा की नींव पड़ चुकी होगी. परंतु विश्वामित्र के मात्र बीस-पच्चीस दिनों के साथ ने राम के व्यक्तित्व को सबसे अधिक प्रभावित किया. विश्वामित्र ने सबसे पहले राम को असंख्य अस्त्र-शस्त्र देकर उपकृत किया और तब उनका राक्षस-विरोधी अभियान आरंभ हुआ.
राम सोलह वर्ष के किशोर थे. उनके मन में एक स्त्री ताटका को मारने के प्रति शंका या संकोच रहा होगा. इसलिए विश्वामित्र ने विष्णु का उदाहरण दिया. दिति-पुत्र दैत्यों के याचक शुक्राचार्य की माँ यानी भृगु की पत्नी प्रसिद्ध दैत्य राजा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या औषध और संजीवन विद्या में पारंगत थीं. देवासुर/ आदित्य-दैत्य संग्राम में जो दैत्य घायल होते, दिव्या उन्हें स्वस्थ कर देतीं. देवों के कहने से विष्णु ने दिव्या को मार डाला. इसके अलावा विश्वामित्र ने इंद्र के द्वारा विरोचन की पुत्री के वध का भी उदाहरण दिया.
क्या ये ऋषि लोग एक भयंकर कर्म नहीं कर रहे थे! दो किशोरों को घातक हथियार देना, उनका महिमामंडन करते हुए बार-बार यह कहना कि तुम्हारा जन्म इस पृथ्वी पर अवतार के रूप में राक्षसों के विनाश के लिए हुआ है; दोनों भाइयों को हिंसा के लिए प्रेरित करना- क्या यह एक हिंसक समाज द्वारा अपने स्वार्थ के लिए भोले-भाले किशोरों को एक परपीड़क स्त्रीद्वेषी, हिंसक और हत्यारा बनाने का षड़यंत्र नहीं था, (बाल कांड-पचीसवाँ सर्ग) जैसा कि हम वर्तमान परिवेश में भी देख रहे हैं! राम द्वारा ताटका-बध से पहले लक्ष्मण के हाथों ताटका के क्रूरतापूर्ण नाक-कान, पंचवटी में प्रणय-निवेदन की प्रतिक्रिया में शूर्पनखा के नाक-कान और किष्किंधा के रास्ते अयोमुखी के नाक-कान के साथ उसके स्तन काटना, क्या विश्वामित्र के उसी उकसावे के परिणाम नहीं माने जा सकते हैं!