स्टेन स्वामी सहित भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद अधिकतर बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर माओवादियों के हितैषी और उनसे सांठगांठ रखना, उनकी मदद से देश को अस्थिर करने का आरोप है. विडंबना यह है कि जिन तीन राज्यों को माओवाद से आक्रांत बताया गया है, उन राज्यों में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से माओवाद या नक्सलवादी घटनाओं में काफी कमी आयी है.
माओवाद या नक्सलवाद से तीन राज्यों को सबसे अधिक प्रभावित माना जाता है. पहले नंबर पर है छत्तीसगढ़, दूसरे नंबर पर झारखंड और तीसरे नंबर पर बिहार. जानकार सूत्रों के अनुसार इन तीन राज्यों में 2013 में कुल 1136 नक्सली हिंसा हुई थी जो 2018 में घट कर 240 हो गयी, यानि हिंसा की घटनाओं में 27 फीसदी की कमी आयी. वहीं 2013 में इन तीन राज्यों में 397 लोग मारे गये, वहीं 2018 में 240 लोग. यानि, 39 फीसदी की कमी आयी. सिर्फ झारखंड की बात करें तो 2001 में माओवादियों के साथ मुठभेड़ की जहां 312 घटनाएं हुई थी, वहीं 2019 के जून माह तक मुठभेड़ की सिर्फ 25 घटनाएं हुई. इसी तरह लैंड माइंस विस्फोट की घटनाओं में भी कमी का दावा किया गया है. 2016 में 4, 2017 में 2 और 2018 में 3 विस्फोट की घटनाएं हुई. जबकि गत वर्ष जून माह तक विस्फोट की कोई घटना नहीं हुई. राज्य के गठन के बाद माओवादी हिंसा के खिलाफ सतत कार्रवाई हुई है. पुलिस सूत्रों के अनुसार पिछले 18 सालों में 5688 नक्सली हमले में 510 पुलिसकर्मी और 846 नक्सली मारे जा चुके हैं. अब 550 माओवादी बचे हैं जिनमें से 250 पर इनाम घोषित किया जा चुका है. और इन्हें समाप्त करने के लिए सीआरपीएफ की 122, आईआरबी 5 और झारखंड जगुआर की 40 कंपनी फोर्स तैनात है. क्या उस सूचि में स्टेन स्वामी का नाम है?
यह भी आश्चर्यजनक और विरोधाभासी है कि यदि झारखंड उग्रवाद के लिहाज से इतना गंभीर राज्य है कि वहां पिछले दो और अब इस तीसरे विधानसभा चुनाव में पांच चरणों में चुनाव कराने की नौबत रही है, फिर पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर आवंटित राशि अन्य राज्यों की तुलना में कम क्यों है? गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार 2014-15 में आंध्र प्रदेश को जहां 102.81 करोड़ का आवंटन हुआ था, वहीं झारखंड को सिर्फ 22.56 करोड़ का और 2017-18 में जहां आंध्र प्रदेश को 29.87 करोड़ का आवंटन हुआ था, वहीं झारखंड को 11.24 करोड़ का. विरोधाभास तो यह कि जिस उत्तर प्रदेश में नक्सल गतिविधियां न के बराबर रही हैं, उसे 2014-15 में 154.87 करोड़ की और पिछले वर्ष 77.16 करोड़ की राशि पुलिस आधुनिकीकरण के लिए दी गयी है. क्या वास्तव में माओवादियों की इतनी ताकत कभी थी या आज है कि वह 11 लाख से अधिक सैन्य शक्ति और आधुनिकतम हथियारों से लैश भारत की प्रभुसत्ता को चुनौती दे सके? क्या स्टेन स्वामी पर उनके लंबे सामाजिक जीवन में कभी भी इस तरह का मुकदमा दायर किया है राज्य सरकार ने जिसमें उन पर माओवादी होने का संदेह व्यक्त किया गया हो? अभी तो हेमंत सोरेन की सरकार है, लेकिन झारखंड में बहुत दिनों तक भाजपा की सरकार रही. राज्य बनने के बाद बाबूलाल, उसके बाद अर्जुन मुंडा, फिर रघुवर दास की सरकार. यदि स्टेन स्वामी पर माओवादियों से संपर्क रखने या माओवादी होने का संदेह था तो इन मुख्यमंत्रियों ने उन पर कभी कार्रवाई क्यों नहीं की?
दरअसल, माओवाद का हौवा खड़ा कर वंचितों के पक्ष में बोलने वालों को, खुले जनवादी तरीकों से संघर्ष करने वालों को जेल में बंद करना और देश में दहशत का वातावरण बनाये रखना भाजपा की राजनीति का एक अहम हिस्सा है. यदि उनके इस हथकंडे का विरोध करेंगे तो आपसे कहा जायेगा कि आपको भारत की न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं. और जब तक कोर्ट के सामने मुकदमें की सुनवायी हो, तब तक आप जेल में सड़ते रहिये. जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या के लिहाज से भारत की स्थिति बेहद खराब है. इस तानाशाह सरकार से लड़ने का एकमात्र तरीका यही है कि उन्हें राजनीतिक रूप से चुनाव में शिकस्त दी जाये.