रावण ब्राह्मण था या राक्षस? इसे जानने के लिए पहले दोनों की उत्पत्ति जान लेते हैं. पहले राक्षस.
‘‘राक्षस’ वर्ग की उत्पत्ति और उसके वंश-विस्तार का विवरण वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के चौथे सर्ग में विस्तार से दिया गया है. ‘‘जल से प्रकट हुए कमल से उत्पन्न प्रजापति ब्रह्मा जी ने पूर्वकाल में जल की सृष्टि कर के उसकी रक्षा के लिए अनेक प्रकार के जीवों को उत्पन्न किया. वे जंतु भूख-प्यास के भय से पीड़ित हो ‘अब हम क्या करें’ ऐसा कहते हुए अपने जन्मदाता ब्रह्मा जी के पास विनीत भाव से गए.
इन सबको आया देख प्रजापति ने उन्हें संबोधित करके कहा, ‘तुम यत्नपूर्वक इसकी रक्षा करो’. वे सभी भूखे-प्यासे थे. उनमें से कुछ ने कहा, ‘हम इस जल का रक्षण करेंगे’ और दूसरों ने कहा, ‘हम इसका यक्षण (पूजन) करेंगे’. तब प्रजापति ने कहा, ‘तुम में से जिन लोगों ने रक्षा करने की बात कही है, वे राक्षस नाम से प्रसिद्ध हों और जिनने यक्षण करना स्वीकार किया है, वे यक्ष नाम से विख्यात हों’.” (उत्पत्ति के इसी आधार पर आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने ‘वयं रक्षाम:’ की रचना की होगी, जिसमें रावण के बारे में पर्याप्त विवरण मिलता है).
राक्षसों के अधिपति दो भाई हेति और प्रहेति में से प्रहेति तप करने चला गया और हेति ने व्याह करके वंशवृद्धि की. पत्नी भया के गर्भ से हेति को एक पुत्र विद्युत्केश हुआ. वित्युत्केश का पुत्र सुकेश हुआ जिस पर शिव और पार्वती का आशीर्वाद था. सुकेश के पुत्र माल्यवान, सुमाली और माली हुए. इन तीनों ने तपस्या की और ब्रह्मा से किसी से परास्त न होने का वर प्राप्त कर लिया. उन्होंने विश्वकर्मा से जाकर अपने लिए एक निवासस्थान बनाने का अनुरोध किया. विश्वकर्मा ने उन्हें बताया कि ‘त्रिकूट पर्वत के मझले शिखर पर इंद्र के आदेश से मैंने लंका नाम की नगरी का निर्माण किया है. जैसे इंद्र आदि देवता अमरावती में रहते हैं, तुम लोग भी जाकर वहाँ निवास करो’.
ये तीनों सभी राक्षसों के साथ लंका में रहने लगे. तीनों का व्याह नर्मदा नामक गंधर्वी की तीन सुंदर पुत्रियों से हुआ. उनकी संतानों में से कुछ के नाम थे वज्रमुष्टि, विरुपाक्ष, दुर्मुख, मत, उन्मत्त आदि. माली के पुत्रों के नाम थे- अनल, अनिल, हर और संपाति- ये चारों विभीषण के साथ रहते थे और उसी के साथ राम से आ मिले थे. सुमाली के पुत्र थे- प्रहस्त, अकंपन, विकट, सुपार्श्व आदि. उसकी ‘पवित्र मुस्कान वाली’ चार पुत्रियाँ भी थीं, जिनमें से सबसे छोटी का नाम कैकसी था. यही कैकसी रावण की माँ थी.
माल्यवान, सुमाली और माली ब्रह्मा से मिले युद्ध में अपराजित रहने का वर पाने के बाद, देवों पर ही आक्रमण करने लगे तो देव भगवान शिव के पास गए. उन्होंने विष्णु के पास जाने की सलाह दी. विष्णु ने उन्हें मदद देने का आश्वासन दिया और जब अगली बार राक्षसों ने देव-लोक पर आक्रमण किया तो विष्णु युद्ध में शामिल हुए और राक्षसों को पराजित किया. तब माल्यवान आदि राक्षस विष्णु से भयभीत हो लंका छोड़ पाताल में जाकर रहने लगे. लंका खाली देख ब्रह्मा के मानस पुत्र पुलस्त्य ऋषि के पौत्र और विश्रवा के पुत्र कुबेर अपने पिता की आज्ञा से लंका में जाकर रहने लगे.
सुमाली की पुत्री कैकसी जब बड़ी हुई तो सुमाली ने कहा, ‘बेटी! तुम साक्षात लक्ष्मी की तरह हो. तुम मुनि विश्रवा के पास जाओ और उनसे अपने को उनकी पत्नी बनाने का अनुरोध करो. ऐसा करने से नि:संदेह तुम्हारे पुत्र भी कुबेर जैसे होंगे.’ इस नीति के पीछे सुमाली की आकांक्षा वापस लंका को पाने की थी. कैकसी मुनि विश्रवा के पास गई और उनसे अपनी पत्नी बनाने की प्रार्थना की. कैकसी ‘रोहिणी जैसी सुंदर’ थी. मुनि की लीला ऐसी न्यारी कि उन्होंने कुबेर की माँ (भरद्वाज-पुत्री) जैसी पत्नी के रहते हुए, कैकसी को तुरत पत्नी बना लिया. उसी कैकसी के गर्भ से रावण, कुंभकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण का जन्म मुनि विश्रवा के आश्रम में हुआ. सभी बच्चों की शिक्षा विश्रवा की देख-रेख में हुई.
जब वे कुछ बड़े हुए तो तीनों भाइयों ने वन में जाकर भयंकर तपस्या की. ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उन्हें गरुड़, दैत्य, देवता, नाग, यक्ष, दानव, राक्षस के लिए अवध्य होने का वर दे दिया. रावण ने मनुष्य आदि को तिनके के समान समझते हुए उनका नाम नहीं लिया था. उसे ब्रह्मा से वर पाने की खबर मिली तो रावण के नाना सुमाली उसके पास आए और बोले, ‘लंका पहले हमारे पास ही थी. देवताओं ने उसे हमसे छीन लिया. तुम किसी भी प्रकार से लंका को वापस ले लो. तुम्ही उसके राजा बनोगे.’
रावण ने कहा कि लंका में कुबेर रहते हैं, जो मेरे बड़े (सौतेले) भाई हैं. उन्हें हटाना उचित नहीं. सुमाली ने उसे समझाया, ‘दिति और अदिति, दोनों बहनें प्रजापति कश्यप की पत्नियाँ हैं. ज्येष्ठ दिति ने दैत्यों/असुरों और अदिति ने आदित्यों/देवों को पैदा किया है. दोनों आपस में भाई हुए. पहले सारी पृथ्वी दैत्यों के अधिकार में थी. देवताओं ने उनसे छल-बल से छीन लिया. इसलिए ऐसा विपरीत आचरण केवल आप ही नहीं करेंगे.’
सुमाली के सुझाव पर, रावण के आदेश से उसका मामा प्रहस्त लंका पहुँचा और कुबेर से लंका खाली कर देने का रावण का आदेश सुनाया. पिता विश्रवा की सलाह पर कुबेर ने लंका को रावण के लिए छोड़ दिया और कैलाश पर्वत पर अलकापुरी बसाई, जहाँ यक्षों ने उसे अपना अधिपति मान लिया.
रावण ने भगवान शिव को भी प्रसन्नकर उनसे चंद्रहास नामक खड्ग की प्राप्ति की. उसके बाद उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ती गई. उसने देवों पर भी आक्रमण किया और इंद्र को बंदी बना लिया, जिसे ब्रह्मा ने उसे कुछ और वर देकर छुड़ाया. उसकी युद्ध की लिप्सा बढ़ती ही गई. वाल्मीकि रामायण में उसके द्वारा यम, वरुण, यक्ष, कालकेय, मरुत, अयोध्या के राजा अनरण्य आदि को पराजित करने की कथा लिखी गई है. उसकी इसी युद्ध-लिप्सा ने उसकी बहन शूपर्णखा के पति कालकेय अधिपति विद्युज्जिह्व की भी जान ले ली. भगवान सिंह (सहित अनेक विद्वानों) ने पंद्रह सालों के शोध का हवाला देकर बताया है कि रामायण में पूरा उत्तरकांड बाद में जोड़ा गया है. उनका वह तर्क रावण द्वारा अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशी राजा अनरण्य के मारे जाने को पढ़कर सही लगता है.
रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में अनरण्य राम से उन्तीस पीढ़ी पहले हुए थे. अगर हर पीढ़ी को बीस वर्ष भी दिए जायँ तो पाँच सौ अस्सी साल होते हैं, जो रावण की आयु देखकर असंभव लगता है. इसी प्रकार गौतम-पत्नी अहल्या के संदर्भ में लिखा गया है कि इंद्र ने अहल्या का बलात्कार किया (उत्तरकांड, सर्ग-30), जबकि बालकांड में लिखा गया है, कि ‘इंद्र को पहचानकर भी उस दुर्बुद्धि नारी ने- अहो! देवराज इंद्र मुझे चाहते हैं- इस कौतुहलवश अहल्या ने समागम का निश्चय कर इंद्र का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.(बालकांड, सर्ग-48).
सुंदरकांड में हनुमान जब लघु रूप धर सीता को ढूँढ़ते हुए लंका के एक-एक घर में झांकते हैं, उस समय का आँखों देखा हाल वाल्मीकि ने विस्तार से वर्णन किया है. इस विवरण में एक-एक राक्षस की आर्थिक संपन्नता, लंका की सुदृढ़ शासन व्यवस्था और परिष्कृत रहन-सहन के दर्शन होते हैं. रावण के महल के अंत:पुर का वर्णन करते हुए हनुमान की आँखों से वाल्मीकि ने बताया है, ‘राजर्षियों, ब्रह्मर्षियों, दैत्यों, गंधर्वों तथा राक्षसों की कन्याएँ काम के वशीभूत होकर रावण की पत्नियाँ बन गई थीं. (सीता को छोड़कर) वहाँ (लंका में) कोई दूसरी ऐसी स्त्री नहीं थी, जो रावण के सिवा किसी दूसरे की इच्छा रखती हो अथवा जिसका पहले कोई दूसरा पति रहा हो. रावण की कोई ऐसी भार्या नहीं थी, जो उत्तम कुल में उत्पन्न नहीं हुई हो.’(सुंदरकांड, सर्ग-9).
इससे उत्तरकांड के सर्ग- 24 में वर्णित रावण के बारे में बताया गया यह तथ्य कि ‘उसने ऋषियों, राजाओं आदि की बहुत सी स्त्रियों का अपहरण किया था’ गलत सिद्ध हो जाता है. रावण के मरने के बाद भी उसके द्वारा कैद की हुई ऐसी औरतों का कोई जिक्र वाल्मीकि नहीं करते. जहाँ तक अनेक पत्नियाँ रखने की बात है तो उस काल के राजाओं द्वारा अनेक पत्नियाँ रखना आम प्रचलन में था. वाल्मीकि रामायण में दशरथ की भी कौसल्या, सुमित्रा और कैकेयी के अलावा तीन सौ पचास अन्य पत्नियों का जिक्र है, पर यह नहीं बताया गया कि वे सभी अपनी इच्छा से आईं कि उन्हें बलात लाया गया. राजतंत्र में किसी स्त्री की इच्छा का होना या न होना कोई मायने नहीं रखता था. राम को आदर्श माने जाने का एक कारण यह भी था कि उन्होंने उस समय की परंपरा के विरुद्ध जाकर केवल एक पत्नी का वरण किया. हालाँकि उनके द्वारा भी मदहोश नृत्यांगनाओं के नृत्य देखने और दूसरी स्त्रियों से मालिश करवाने का जिक्र मिलता है (क्रमश: उत्तरकांड, सर्ग-42, श्लोक- 18- 22 और युद्धकांड, सर्ग-21, श्लोक-3)
जब रावण अशोक वाटिका में प्रवेश करता है तो हनुमान जी की आँखों से रावण को हम भी देखते हैं, ‘वह काम, दर्प और मद से युक्त था. उसकी आँखें टेढ़ी, लाल और बड़ी-बड़ी थीं. वह धनुषरहित साक्षात कामदेव के समान जान पड़ता था. उसका वस्त्र मथे हुए दूध के फेन की भांति श्वेत, निर्मल और उत्तम था, उसमें मोती के दाने और फूल टंके हुए थे….उन सुंदर रूप वाली युवतियों से घिरे हुए महायशस्वी राजा रावण ने उस प्रमदावन में प्रवेश किया.’(सर्ग-18) (अशोक वाटिका में ही, कुछ और आगे जाकर, सीता से बात करते समय वाल्मीकि रावण के वस्त्रों का रंग काला बता देते हैं और उसके दोनों कानों में दो कुंडल पहना देते हैं.
अगले अंक में जारी