बांगला का कृतिवास रामायण मैंने नहीं पढ़ा, किंतु एक आलेख में पढ़ा है कि उसमें (और बौद्ध रामायण) में रावण को बौद्ध बताया गया है. उसके लंकावतार सूत्र में कहा गया है कि रावण द्रविड़ राजा था. उसने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था. बौद्ध साहित्य में रावण की काफी प्रशंसा की गई है. रणक्षेत्र में रावण के मरते समय राम ने स्वयं जाकर उससे शिक्षा ग्रहण की थी. वाल्मीकि रामायण में भी अशोक वाटिका में, जहाँ सीता जी को रखा गया था, वहाँ ‘सैकड़ों खंभों वाले एक चैत्य-प्रासाद’ का वर्णन मिलता है(सर्ग- 15, श्लोक-16), परंतु केवल इस आधार पर उसे बौद्ध नहीं कहा जा सकता.

तथापि, रावण सहित सभी राक्षस देवताओं, आर्यों और ऋषियों से घृणा इसलिए करते थे; क्योंकि वे जंगलों में रहकर यज्ञ करके उसमें गूंगे पशुओं की बलि देते, और उस बहाने वनों को उजाड़कर खेत में परिवर्तित कर दिया करते थे. देवों, दैत्यों और राक्षसों में छूत-अछूत या वर्ण व्यवस्था नहीं थी, जबकि उस समय पृथ्वी पर एक मात्र हिंदू धर्म में जन्म के आधार पर चार वर्णों की घृणित व्यवस्था स्थापित हो चुकी थी.

दक्षिण भारतीय लेखकों के रावण पर कई उपन्यास और गल्पेतर गद्य की किताबें मिलती हैं. आनंद नीलकंठन का उपन्यास ‘ASURAA: tale of the Vanquished’ प्रकाशित हुआ है. चार साल में ही उसके हिंदी संस्करण का चौथा संस्करण (2016) ‘असुर: पराजितों की कथा’ अमेजोन पर उपलब्ध है. इसकी प्रस्तावना अशोक बाजपेयी ने लिखी है. दूसरा उपन्यास पूना निवासी कविता काणे का ‘Lanka’s Princess’ (2017) है, जिसका एक साल के भीतर ही चौथा संस्करण प्रकाशित हो चुका है. यह शूपर्णनखा के माध्यम से राक्षस वर्ग की अद्भुत कहानी का वर्णन करता है. श्रीलंका के एक विज्ञान-कथा लेखक ‘Yudhanjaya Wijeratne’ ने भी एकाधिक आलेखों में रावण के बारे में जानकारियाँ दी हैं, विशेषकर श्रीलंका में रावण की वर्तमान छवि के बारे में. उनका एक आलेख ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में पिछले साल छपा था, जिसमें वे लिखते हैं, ‘‘श्रीलंका के किसी स्कूली बच्चे से पूछिए कि क्या रावण एक अत्याचारी राजा था, तो वह आश्चर्यचकित होकर बताएगा कि रावण एक प्रभावशाली और शानदार राजा था, जिसने सीता का हरण करके एक गलत काम कर दिया.

किसी बौद्ध मठवासी या इतिहासकार से पूछिए तो तुरत जवाब मिलेगा कि रावण वास्तव में एक राजा था, जिसने लंका पर शासन किया था. कुछ अन्य लोग बताएंगे कि वह गणित और अर्बन डिज़ाइनिंग का एक प्रकांड विद्वान था, जिसने लंका पर सुव्यवस्थित ढंग से शासन किया और इंगलैंड के शासक आर्थर की भांति वह इतिहास से किंवदंती और किंवदंती से मिथक और मिथक से, अंत में एक घरेलू विवाद के कारण, विलेन बना दिया गया….

कुछ इतिहासकार यह भी कहते हैं कि रावण ने ही कश्यप बुद्ध को आमंत्रित किया था. रावण ने ही लंका को पहली बार प्रौद्योगिकी से लैस राज्य में परिणत किया. रावण ने ही पहली बार विमान का परिचालन किया. आज के दिन श्रीलंका में श्रीरावण रिसर्च इंस्टिच्यूट और रावण सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी भी मौजूद है. यूट्यूब पर रावण ब्रदर्स के नाम से संगीत के वीडियो भी मिलते हैं, जिनके बारे में मुझे नहीं मालूम.”

शरण्या मनिवन्नम के एक आलेख में रावण, हनुमान और रावण की बेटियों के रूप में मत्स्य-सुंदरी और सीता के बारे में चर्चा है. आनंद नीलकंठन ने भी सीता को रावण की पुत्री बताया है, जिसे ज्योतिषियों ने पैदा होते ही उसके कारण राक्षस वंश के विनाश की भविष्यवाणी की थी. इसके बाद भी जब रावण ने उस बच्ची को मारना नहीं चाहा, तो उसके मंत्री, उसकी अनुपस्थिति में मौका पाकर, एक सैनिक को उसे मारने के लिए सौंप दिया, पर उस सैनिक के हृदय में दया का संचार हुआ और मारने के बजाय जाकर उसे जनक के राज्य में छोड़ आया. पर अंतत: रावण को यह बात पता चल गई और वह सीता को वन में तकलीफ उठाता देख लंका ले आया, लेकिन उसके बार-बार विश्वास दिलाने के बावजूद कि आर्यों की संस्कृति पतित है, सीता उससे अंत तक घृणा करती रहीं.

लेकिन जब रावण के मरने के बाद राम ने सीता पर संदेह किया तो पास में रावण की जल रही चिता की ओर देखकर ‘हे पिता!’ कहती हुईं वे सतीत्व-परीक्षा के लिए जली हुई आग में कूद गईं. जो भी हो, वाल्मीकि रामायण के अनुसार भी रावण अंधविश्वासी तो बिलकुल नहीं, जबकि राम और उनके परिवार के घोर अंधविश्वासी होने का प्रमाण हमें कदम-कदम पर मिलता है.

हम कह सकते हैं कि राम और रावण की लड़ाई पुरोहितवाद और समतावाद/प्रकृतिवाद के बीच की लड़ाई थी, न कि क्षत्रिय और ब्राह्मण के बीच की!