हमारे प्रधानमंत्री स्मार्टनेस के कायल हैं. वे पूरे देश को स्मार्ट देखना चाहते हैं और बनाना चाहते हैं. कुछ वर्ष पहले उन्होंने स्मार्ट सीटी की बात कही थी. इसके लिए कुछ शहर चिन्हित किये गये और उन शहरों को समार्ट बनाने के लिए पूरी कार्य योजना बनी और बजट भी बना. लेकिन वे सब शहर स्मार्ट बने या नहीं, हमें नहीं मालूम. इन स्मार्ट शहरों में रहने वाले लोग भी स्मार्ट हो, इसके लिए भी पहले से ही नस्ल सुधार की प्रयोगशालाओं में प्रयोग होने लगे थे. यानि, भगवान श्री रामचंद्र जी की तरह अजान बाहु, ‘अरविंद दलायताक्षम’ जैसे पुरुष ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं. उनकी सोच में स्त्रियों के स्मार्टनेस की कोई जरूरत नहीं है. क्योंकि स्त्री हिंसा, बलात्कार, हत्या, आदि से यदि बच जाती है, तो सीता की तरह पुरुष की अनुगामिनी बन कर चलेगी ही. इस तरह के स्मार्ट विचारों वाले प्रधानमंत्री जी के मंत्रिमंडल में शामिल मंत्री भी उनकी अपेक्षा के अनुसार बहुत ही समार्ट हैं. मोदी जी के कहने के पहले ही वे उनकी बातों को, उनके विचारों को समझ जाते हैं और उनका समर्थन कर देते हैं. यही कारण है कि तीन कृषि कानून कैबिनेट में पारित हो कर अध्यादेश बन गये और ये अध्यादेश दोनों सदनों में बहुत ही स्मार्टनेस के साथ पारित कर दिये गये.
इस तरह किसानों के लिए तीन स्मार्ट कानून बन गये. सरकार कहती है कि इन कानूनों के लागू होते ही किसानों के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन होगा और उनकी आमदनी दुगुनी हो जायेगी. किसान भले ही स्मार्ट नहीं हों, लेकिन प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को चुनाव जिता कर संसद तक पहुंचाने की बुद्धि रखते हैं तो कानूनों को भी समझ ही सकते हैं. उन्होंने साफ कहा कि इन तीनों कानूनों को वापस लिया जाये. सरकार ने नहीं माना, तो लाखों की संख्या में दिल्ली के सभी प्रवेश द्वारों पर जमा होकर आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन के साठ दिन हो रहे हैं. सर्दी, बरसात को झेलते हुए भी किसान टस मस नहीं हो रहे हैं. सरकार तो स्मार्ट है ही, वह एक ओर किसानों से वार्ता के नाम पर उन्हें बुलाती रही और कानूनों के लाभ समझाती रही. उदारता दिखाते हुए उसने कुछ संशोधन करने या कुछ समय के लिए कानूनों को स्थगित रखने का प्रस्ताव भी दिया, दूसरी ओर आंदोलन को केवल पंजाब के किसानों का आंदोलन कहा. खलिस्तानियों का आंदोलन कहा. विदेशी फंडेड आंदोलन कहा और इसे बदनाम करने की कोशिश करती रही. अपने समर्थन में कुछ कथित किसानों का समर्थन दिखा दिया. कुछ बुद्धिजीवियों और कृषि विशेषज्ञों से लेख भी लिखवा लिये. लेकिन किसानों के अड़ियलपन के आगे उनका स्मार्टनेस टिक नहीं पाया.
इसी बीच 26 जनवरी का उत्सव आ गया. सरकार को अपने शक्ति प्रदर्शन तथा कामों के गुणगान करने का दिन. किसानों ने भी ऐलान कर दिया कि वे 26 जनवरी के दिन दिल्ली में ट्रैक्टर रैली करेंगे. दिल्ली पुलिस ने इसकी स्थगन याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कानून व्यवस्था का मामला पुलिस का काम बताया. साथ ही यह भी कहा कि धरना प्रदर्शन नागरिकों का मौलिक अधिकार है. उसे रोका नहीं जा सकता. पुलिस ने आंदोलनकारियों को ट्रैक्टर रैली की अनुमति दे दी. शायद ट्रैक्टर रैली की जगह कार रैली होती तो स्मार्ट दिखता और सरकार को भी आपत्ति नहीं होती. अब तो यह डर हो गया कि देश और दुनिया सरकार के शौर्य प्रदर्शन की जगह ट्रैक्टर रैली न देखने लगें.