कृषि कानूनों पर सरकार रोल बैक क्यों नहीं करना चाहती, इसकी जड़ तक जाना जरूरी है। भारत में दो कंपनियां है रिलायंस व अडानी ग्रुप। वैसे तो ये ग्रुप कोयला, तेल, गैस, सोलर प्लांट, बंदरगाह निर्माण, एयरपोर्ट निर्माण आदि बहुत सारे क्षेत्रों में कार्यरत है लेकिन रोला कृषि कानूनों को लेकर कृषि व उनके उत्पादों के व्यापार पर है इसलिए सिर्फ यहीं का विश्लेषण किया जाना चाहिए।
फाइनेंसियल एक्सप्रेस 2008 की रिपोर्ट के हिसाब से 2005 में अडानी एग्री लोजिस्टिक लिमिटिड व एफसीआई के बीच वेयरहाउस निर्माण को लेकर एक करार हुआ जिसके तहत 2007 में पंजाब के मोगा व हरियाणा के कैथल में मॉडर्न साइलो स्टोरेज का निर्माण पूर्ण हो गया।
अडानी ग्रुप ने 5.75 लाख मेट्रिक टन स्टोरेज के वेयरहाउस पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल में बनाये व 3लाख मेट्रिक टन की स्टोरेज क्षमता के साइलो मध्यप्रदेश में बनाये।
मीडिया विजिल की रिपोर्ट के अनुसार AALL ने 2017 में पीपीपी मॉडल के तहत 100लाख टन स्टोरेज क्षमता के साइलो बनाने की योजना तैयार की लेकिन जमीन अधिग्रहण आदि की दिक्कतों के कारण 31 मई 2019 तक मात्र 6.75 लाख टन की क्षमता के साइलो ही बना सकी।धीमी गति का एक दूसरा कारण यह भी रहा है कि जो स्टोरेज क्षमता विकसित की गई वो भी पूर्ण रूप से भरी नहीं जा सकी।हरियाणा के कैथल में 2.25 लाख टन क्षमता के साइलो बने मगर स्टोरेज के लिए 1.60 लाख टन ही गेहूं उपलब्ध हो सका।
अब तक अडानी ग्रुप विभिन्न राज्यों में 13 से ज्यादा वेयरहाउस/साइलो बना चुका है। 21 फरवरी 2018 को दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक अडानी गृप के चेयरमैन गौतम अडानी ने यूपी इन्वेस्टर समिट में उत्तरप्रदेश में 6 लाख टन क्षमता के साइलो निर्माण की घोषणा की थी।1मार्च 2018 को राजस्थान पत्रिका में छपी खबर के मुताबिक अडानी ग्रुप एग्री लोजिस्टिक पार्क बनाने हेतु यूपी सरकार के साथ किये एमओयू के तहत यमुना प्राधिकरण क्षेत्र की 1400 एकड़ जमीन पर 2500 करोड़ रुपये से फ़ूड पार्क व वेयरहाउस/साइलो बनाने जा रहा है।
अडानी ग्रुप ने एफसीआई के साथ जो शुरुआती करार किये उसके अनुसार एफसीआई द्वारा खरीदे धान को इन साइलों में रखेगा व उसका किराया एफसीआई AALL को देगा और यह गारंटी अगले 30 सालों के लिए दी गई थी।एमएसपी पर खरीद सरकार लगातार घटाती जा रही है ऐसे में वेयरहाउस का औचित्य ही ख़त्म होता जा रहा था।अडानी ग्रुप के इस व्यापार को दिशा देने के लिए मंडियों से बाहर खरीद को कानूनी मान्यता दी और वो भी टैक्स फ्री।दूसरा संशोधन एसेंशियल कोमोडिटी एक्ट में किया गया ताकि कितना ही स्टोरेज करें वो कानूनी पाबंदी से परे हो जाएं।
अब आते है दूसरी कंपनी रिलायंस ग्रुप पर।2006 में रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस फ्रेश व स्मार्ट स्टोर खोलने शुरू किए व अब तक 621 स्टोर विभिन्न शहरों में खोले जा चुके है।इन स्टोर द्वारा 200 मेट्रिक टन फल व 300 मेट्रिक टन सब्जियां रोज बेची जाती है।
2011 में रिलायंस मार्किट नाम से स्टोर खोलने शुरू किए और अब तक विभिन्न शहरों में 52 स्टोर खोले जा चुके है जहां सब्जी,फल,किराना से लेकर घरेलू जरूरतों का हर सामान उपलब्ध है।इसी तरह रिटेल मार्किट पर एक छत्र राज कायम करने के लिए जिओमार्ट,रिलाइंस ट्रेंड आदि कंपनियों के 682 से ज्यादा स्टोर खोले गए।
इसके बाद किशोर बियानी की कर्ज में फंसी फ्यूचर ग्रुप की रिटेल चैन अर्थात बिग बाजार के 420 से ज्यादा शहरों में चल रहे 1800 से ज्यादा स्टोर का अधिग्रहण रिलायंस ग्रुप ने कर लिया।
अब देश मे रिटेल मार्किट का किंग रिलायंस ग्रुप है।फ़ूड चैन का सबसे बड़ा नेटवर्क रिलायंस ग्रुप के पास है।कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग छोटे बिचौलियों को खत्म करके मुनाफे पर एकमात्र कब्जा रिलायंस ग्रुप का कर देगा।अभी तक फल/सब्जियां मंडियों से ठेले पर आकर बिकती रही है मगर मंडिया खत्म होते ही ठेले/रेहड़ी/दुकानों वाले खत्म जो जाएंगे।फिर रिलायंस फ्रेश की मनमानी शुरू होगी!
कुल मिलाकर देखा जाएं तो इन कानूनों में न किसानों के बारे में सोचा गया है और न करोड़ों छोटे-छोटे दुकानदारों, व्यापारियों व रेहड़ी/ठेले वालों के बारे में।न शहरी मध्यम वर्ग के हित को देखा गया और न सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राशन पाने वाले गरीबों का हित देखा गया है।
जब एफसीआई खरीदेगा ही नहीं तो फिर गरीबों को राशन अम्बानी/अडानी तो खरीदकर बांटेंगे नहीं!सरकार अडानी/अम्बानी से खरीदकर बांटने जा रही है तो एफसीआई के माध्यम से सीधे किसानों से खरीदने में क्या दिक्कत है?तय है गरीबों के खाते में डायरेक्ट कैश डालने की बात होगी।मान लो गेहूं की बेस प्राइज के हिसाब से 10 किलो गेहूं प्राप्त करने वाले गरीब के खाते में 20×10=200 रुपये डाल देगी।200 रुपये लेकर गरीब रिलायंस मार्ट में जाकर गेहूँ खरीदेगा जो कि अभी 46रु/किलो बिक रहा है,के हिसाब से 4.3किलो गेहूँ खरीद पायेगा।मतलब साफ है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राशन प्राप्त करने वाले गरीबों के जीवन पर गंभीर खतरा पैदा होगा!
सरकार मित्रों की व्यापारिक प्रणाली को दिशा देने के लिए नीतियां बना रही है उसी हिसाब से ये 3 कानून लाये गए है!अब ये कानून वापिस ले तो मित्रों का भारी-भरकम निवेश डूब जाएगा।ऐसा करना सरकार के लिए मुमकिन नहीं है।मित्रों को बिजली पर कब्जा देने के लिए भी अध्यादेश पास किया जा चुका है व किसान लड़ने लायक भी नहीं रह सके उसके लिए पराली जलाने पर भारी जुर्माने का अध्यादेश भी जारी कर दिया है।दिल्ली में प्रदूषण को लेकर पिछले 3 सालों से किसानों को यूँ ही गालियां नहीं दी जा रही थी!पराली का योगदान मात्र 8%है जबकि बाकी 92%प्रदूषण को कम करने की चर्चा कहीं नहीं होती।आंदोलन को देखा जाएं तो जहां पराली जलती है वहीं के किसान ताकत के साथ लड़ रहे है।
अगर किसान इस आंदोलन से खाली हाथ लौटा तो शहरी मध्यम वर्ग व देश के गरीबों की हालत किसानों से पहले दयनीय अवस्था मे होगी। अगर किसान इन कानूनों को वापिस करवाने या एमएसपी की लिखित गारंटी लेने में कामयाब हुआ तो मित्रों के व्यापार को गहरा झटका लगेगा।