नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी आंदोलन ने 22-23 मार्च 1994 को एक इतिहास रचा था. एक ओर मिलिटरी की गाड़ियाँ थीं. उसमें भरकर सैनिक गोलीबारी का अभ्यास करने आये थे. दूसरी ओर निहत्थे हजारो लोग उन्हें रोकने के लिए जमा थे. टुटुवापानी के इस मोर्चे से अंततः सेना की गाड़ियों को वापस लौटना पड़ा था. एक बार फिर 2004 में सेना के लोग यहाँ आये थे. संभवतः लोगों के विरोध और जागरूकता की स्थिति को आँकने के लिए. इस बार भी विरोध में अच्छी खासी संख्या में क्षेत्र की जनता जुटी थी. फिर सेना को वापस लौटना पड़ा था.

होना तो यह चाहिए था कि पहली बार उमड़े विराट जनमत को देखते हुए इस परियोजना को रद्द कर दिया जाता, किन्तु सरकार ने दूसरे जनजुटान के बाद भी अपना इरादा नहीं बदला. नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना वापस नहीं ली गयी और वह 2022 तक प्रभावी है. शासन झेलते रहने वाले समुदाय सरकार के बयानों की असलियत बखूबी जानते हैं. यहाँ के लोगों ने अच्छी तरह समझ लिया था कि विरोध के ठंडा पड़ते ही कभी भी परियोजना का हमला हो सकता है. इस कारण 1994 के बाद से ही लगातार 22-23 मार्च को दो दिवसीय संकल्प दिवस आयोजित हो रहा है. हर साल 23 मार्च को लोग जब तक परियोजना की अधिसूचना रद्द नहीं होती, तब तक संघर्ष जारी रखने के संकल्प के साथ अपने घर, गाँव वापस लौटते हैं.

इस दो दिवसीय आयोजन में पूरा रहे बिना इसकी खासियत को महसूस कर पाना तो नामुमकिन है ही, समझ पाना भी कठिन है. नामी - गिरामी व्यक्तित्वों की आभा में चमकते और उनके बोझ से भारी, भव्य उत्सवों के अभ्यस्त अनेक लोगों को यह आयोजन फीका और बेअसर भी लग सकता है. इस आयोजन के लिए किसी भी विशेष व्यक्ति को अलग से आमंत्रण नहीं भेजा जाता. कोई मुख्य और विशेष अतिथि या वक्ता नहीं होता. कार्यक्रम का आम आमंत्रण जारी होता हैं. जो आते हैं, उसी में से कुछ अतिथियों को मौका दिया जाता है. उनका चयन केन्द्रीय समिति की एक टीम करती है. केन्द्रीय समिति के सदस्यों, स्थानीय साथियों और समर्थन में आये अतिथियों के मिले-जुले वक्तव्य का क्रम चलता है. जितने वक्तव्य होते हैं, लगभग उतने ही गीत, नृत्य आदि की प्रस्तुतियाँ भी होती हैं.

टुटुवापानी मोड़ एक तिराहे पर स्थित है. यहीं वार्षिक संकल्प समावेश होता है. 22 की सुबह से गाँवों से लोग अपने जरूरी इंतजामों के साथ आने लगते हैं. चटाई , चादर , बरतन, अनाज आदि के साथ. पेड़ों के नीचे अपनी जगह जमा लेते हैं. दोपहर में तीन राहों पर, तीन तय क्षेत्रों के लोगों की पंक्ति सजती है. जान देंगे, जमीन नहीं देंगे या नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द करो जैसे नारों से गूँजते ये तीनों जुलूस आकर एक जगह सभा स्थल पर मिल जाते हैं. आंदोलन के प्रतीक गीत को सभी साथ साथ गाते और थिरकते हैं. और उसके बाद सभा होती है. रात में कुछ फिल्में दिखाई जाती हैं और उसके बाद सामूहिक रात्रि जीवन का एक खास अहसास. खुले में, पेड़ों के नीचे, बिजली की हल्की रोशनी में परिजनों और मित्रजनों के हजारों समूहों का सहविश्राम. दूसरे दिन सुबह लगभग 9 बजे से पुनः सभा का सिलसिला चल पड़ता है. तीन चार घंटे के बाद कार्यक्रम अपने मुकाम पर पहुँचता है. फिर सारे लोग संचालन की घोषणा के अनुसार अपनी तय राह पर पंक्ति में सजते हैं, नारे लगाते हुए बढ़ते हैं, एक जगह मिलते हैं. यह दृश्य बहुत ही आकर्षक और उत्साहवर्धक लगता है. नारे और गीतों के बाद सभी अपना हाथ आगे कर एक साथ संकल्प दुहराते हैं. जब तक नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्द नहीं होती, तब तक संघर्ष जारी रखने का संकल्प. तीन चार वाक्यों का संक्षिप्त और स्पष्ट संकल्प.

बड़ी संख्या में सहभागिता तथा अटूट निरंतरता इस सालाना संकल्प की बेजोड़ खासियत है. सहभागिता में बहुत बड़ा उतार या चढ़ाव शायद ही रहा हो. पिछले साल कोरोना के वातावरण के कारण कार्यक्रम नहीं हुआ था. इस साल मास्क के इंतजाम के साथ यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. इस साल की जनसभा में इसी अंचल के कुछ हिस्से में व्याघ्र परियोजना के लिए गाँवों को हटाने की स्थानीय सामयिक समस्या पर प्राथमिकता से विचार रखा गया. इसके साथ ही वन अधिकार कानून, केन्द्र सरकार द्वारा लाये गये कृषि कानून और चल रहे किसान आंदोलन, सीएए - एन आर सी - एन पी आर, शराबखोरी की समस्या, युवाओं के रुझान और प्रश्न जैसे विषयों पर विचार आये.

केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के बैनर और नेतृत्व में आंदोलन चला और उसी के संचालन में यह सालाना संकल्प होता है. विभिन्न स्तर की जन संघर्ष समितियों की भागीदारी से केन्द्रीय जन संघर्ष समिति बनायी जाती है. फिल्ड फायरिंग रेंज परियोजना से दो जिलों के 245 गाँव हटाये जाने वाले हैं. यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. उराँव, असुर , बिरजिया जैसे अनेक जनजातीय समूह इस क्षेत्र में हैं. अच्छी खासी आबादी ईसाईयत से जुड़ी है. उग्रवादी समूहों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थानों की भी उपस्थिति है. इन जटिलताओं के बीच भी यह आंदोलन अपने अहिंसक रूप में प्रभावी रूप से जीवन्त है. इस क्षेत्र की हाथी कॉरीडोर, व्याघ्र योजना जैसी अन्य परियोजना पर भी आंदोलनकारी मुखर हैं. यह आंदोलन एक गहरे अध्ययन, अवलोकन और विश्लेषण का हकदार है. इस आंदोलन को समझने से नये आंदोलनों की रणनीति और संरचना गढ़ने में काफी मदद मिल सकती है.