हमारे पास अब खेत नहीं रहा. लेकिन दो दिन पहले हम धान रोपने गये थे अपने एक परिचित के खेत में. उन्होंने हमें मदद के लिए बुलाया था. वहाँ जाकर देखे तो खेत तैयार नहीं था. टैेक्टर की मदद से खेत जोता जा रहा था. उस समय खेत में बहुत सारा मछली, घोंघी एवं केकड़ा मिला जिन्हें पकड़ कर मेड़ किनारे रख दिया गया. काफी समय बाद खेत रोपने के लिए तैयार हुआ. खेतिहर ने रोपने से पहले पूजा की. सखुआ का तीन पता मेड़ में रख, उसमंे उरद और भाकड़ा सिंदूर एवं अरवा चावल एवं हड़िया गिरा कर. उसके बाद बीड़ा खेतों में कुछ-कुछ दूरी पर गिरा दिया गया. और फिर गाँव की सभी बच्चियां, औरतें और लड़कियां धान रोपने के लिए खेत मे उतर गयी. रोपनी शुरु हुआ. रोपने के साथ साथ सभी ओरतें गाना गाने लगी और लड़कियां व बच्चियां, जिन्हें गाना नहीं आता था, वे भी उसका आनंद ले ले कर, आपस में हँसी मजाक करते रोपा कर रही थी.

दोपहर होते खेतिहर ने सभी के लिए खाना खेत पर ही पहुँचा दिया. सभी खेत से बाहर निकल कर मेड़ में बैठ गयी. सभी को खाना परोसा जाता है. खाने में भात, उरद दाल, अचार या चटनी दिया जाता है और साथ मे चना. और जो औरतें हड़िया पीती हं,ै उन्हें हड़िया भी दिया गया. उसके बाद सभी खा कर थोड़ी देर आराम कर फिर रोपने के लिए खेत मे उतर जाती है और रोपना शुरू कर देती हैं.

पर अफसोस कि खेत मे बहुत ज्यादा पानी भरा था, जिसमें रोपने से सारा बीड़ा पानी के अंदर डूबा जा रहा था. यह हमें अच्छा नहीं लग रहा था. रोपा के लिए खेत में पानी हिसाब से होना चाहिए. न कम, न ज्यादा. ज्यादा रहे तो बीड़ा डूब जाता है और कम रहे तो बस कीचड़ में काम करना अच्छा नहीं लगता. इसलिए पानी भी एक निरंतर रूप में रोपा के लिए होना जरूरी हैं. इसलिए मेड़ में पानी बहने के लिए कुदाल से रास्ता बनाया गया, जिससे खेत मे पानी कम हुआ और तब सभी रोपा हुआ बीड़ा दिखने लगा. एकांत शाम ढलते पूरा दो खेत हम सब ने रोप के खत्म किये. उसके बाद जो मेड़ से पानी बह रहा था उसे मिटटी से बंद कर दिया गया, क्योंकि उसमें कुछ खाद-पर्दाथ डालना था. यदि खाद डालने के बाद पानी को बहने से रोका नहीं गया तो सारा खाद पानी के साथ बह जायेगा. पता चला कि खाद के रूप में यूरिया व डीएपी डाला जाता हैं.

कुछ लोगों ने बताया कि पहले बीहन घर का ही होता था, यानी पिछली फसल का बचा कर रखा जाता था. अब कोई घर का बचाया बीहन इस्तेमाल नहीं करता. बाजार से खरीद कर लाते हैं. इस बीहन के लिए खाद पानी बहुत जरूरी होता है. खैर, हमने तो हमेशा बाजार से ही बीहन खरीद कर लाते देखा है.

आज का अनुभव बस इतना रहा कि जब हम समूह में काम करते हैं और वह भी बिना किसी दबाव के, तो काम बोझ नहीं लगता. और हमारे यहां तो खेती बाड़ी आज भी आनंद का विषय है. अफसोस कि अब हमारे पास खेत नहीं रहे.