इस वर्ष 13 अगस्त 2021 को ‘नागपंचमी’ का पर्व मनाया गया। भारत के विभिन्न प्रदेशो में नागपंचमी के दिन साँपो को दूध पिलाते है और साँपो की पूजा करते हैं। यह पर्व सावन महीने के शुक्ल पक्ष के पंचमी यानी पांचवा दिन मनाया जाता है।

इस पर्व की शुरुवात कैसे हुई? क्यो हुई? इसके पीछे का इतिहास क्या है? कालांतर में ऐसी क्या घटना हुई थी। इस पर्व के मनाए जाने के पीछे क्या सत्य है? और मिथक क्या है? इस पर थोड़ा मंथन करना जरूरी है।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित की हत्या नागवंशी राजा तक्षक द्वारा कर दी गई। इससे क्रोधित होकर राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने उस राज्य के सभी नागवंशियों को समूल नष्ट करने के लिए महायज्ञ का आह्वान किया, ताकि उस महायज्ञ में आहुति दी जाए। नागों में क्या बच्चे क्या बूढ़े, क्या स्त्री क्या पुरुष, सब की आहुति दी गई।

ऐतिहासिक रूप से अगर देखा जाए तो यह एक निर्मम हत्या थी, अतः इस हत्याकांड को छिपाने के लिए आर्य ब्राह्मणों ने काल्पनिक कथा का सहारा लिया और इस सामूहिक हत्या को एक उत्सव का नाम दे दिया गया।

नाग कहनेे का कोई मतलब साँप नही होता बल्कि प्राचीन भारत के ‘नागवंश’ का बोध होता है। वे लोग रेंगने वाले सरीसृप नही थे बल्कि भारत की प्राचीन जाति थी। प्राचीन पाली भाषा मे ‘नाग’ का अर्थ ‘हाथी’ होता है।

नागपंचमी मनाने के पीछे ब्राह्मणों द्वारा केवल झूठ फैलाया गया. उन्होंने मूल सत्य को छिपाने के लिए झूठ का सहारा लिया। आर्य ब्राह्मणों एवं उनके दुष्ट राजाओं द्वारा इस देश के प्राचीन पराक्रमी नागवंशी जाति को समूल नष्ट करने के लिए महायज्ञ का आयोजन किया। हवन और आहुति के नाम पर छोटे छोटे बच्चों, स्त्रियों, पुरुषो,ं बुजुर्गों को धधकते हुए आग के भट्ठों में जिंदा झोंक दिया करते थे। और अपने इस घृणित कर्म को छुपाने के लिए इसे ‘अग्निकुंड’ में ‘आहुति’ का नाम दिया।

‘आहुति’ शब्द का अर्थ बलिदान होता है। यज्ञ में किसकी बलि दी जाती थी? वेद पुराणों में इसका खूब जिक्र है। वे बनैले पशु, घरेलू पशु, अश्व, बैल, हिरन आदि बलि के रूप में आहुति देते थे। यहाँ इन्होंने बड़ी चालाकी से ‘नागों’ का जिक्र किया। वे नाग कोई रेंगने वाले जीव नही थे बल्कि मानव प्रजाति थे। आर्य ब्राह्मणों ने जीवित इंसानों की बलि दी। नागवंशियो की सत्ता और साम्राज्य को नष्ट किया और अपने घृणित कर्मो को छुपाने के लिए मिथक कथा रच दी और सत्य इतिहास पर पर्दा डाल दिया। अपने विनाश के कारनामो को उत्सव का नाम दिया।

भारत में हिन्दू धर्म के मुताबिक नागपंचमी का त्योहार सावन महीने शुक्ल पक्ष के पंचम दिन को इस त्योहार को मनाया जाता है। इस दिन स्त्री- पुरुष शिव की पूजा करते हैं। रुद्र धारण करते हैं और महामृत्यंजय का पाठ करते हैं और कुछ लोग कालसर्प दोष को शांत करने के लिए पूजापाठ भी करते हैं। इस दिन सापों को दूध पिलाया जाता है। लेकिन इस पर्व का एक दूसरा पहलू भी है जिसे हमे जानने की जरूरत हैं। जब भारत में बौद्ध धर्म का विस्तार बड़ी तेजी से होने लगा तो आर्य ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म प्रचारकों से ईर्ष्या होने लगी। आर्य ब्राह्मण बौद्ध भिक्षुओं से घृणा करते थे। वे उन्हें अधर्मी , नास्तिक कहते और उन्हें सनातनी धर्म का सबसे बड़ा दुश्मन समझते थे । बौद्ध भिक्षुओं और उनके अनुयायियों की हत्या का इस देश में बहुत सारे पुख्ता प्रमाण है की आर्य ब्राह्मणों के कहने पर हिन्दू राजाओं ने किस तरह बौद्ध भिक्षुओं की निर्मम हत्या की गई इसके सैकड़ो प्रमाण मौजूद है।

शेष अगले अंक में