इस पर्व का एक दूसरा पहलू भी है जिसे हमे जानने की जरूरत हैं. जब भारत में बौद्ध धर्म का विस्तार बड़ी तेजी से होने लगा तो आर्य ब्राह्मणों को बौद्ध धर्म प्रचारकों से ईर्ष्या होने लगी. आर्य ब्राह्मण बौद्ध भिक्षुओं से घृणा करते थे. वे उन्हें अधर्मी, नास्तिक कहते और उन्हें सनातनी धर्म का सबसे बड़ा दुश्मन समझते थे. बौद्ध भिक्षुओं और उनके अनुयायियों की हत्या का इस देश में बहुत सारे पुख्ता प्रमाण हैं. आर्य ब्राह्मणों ने किंचित बौद्ध सभ्यता को नष्ट करने के लिए कालांतर में बुद्ध के नाग पंचशील के उत्सव को मिथक ’नागपंचमी’ में परिवर्तित कर दिया. बुद्ध काल मे नाग पंचशील का बहुत बड़ा महत्व था. नाग पंचशील का उत्सव सावन के महीने में ही मनाया जाता था, क्योंकि प्राचीन भारत में वर्ष को मापने का बस एक ही पैमाना था. वर्षा से ही वर्ष शब्द बना. वर्षा काल से अगले वर्षा काल के आने तक एक वर्ष माना जाता था. प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु वर्षा काल में भ्रमण के लिए कही नहीं जाते थे, बल्कि एक ही स्थान में पंचशील का पालन करते. जब सावन का महीना आता और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा जब बढ़ना शुरू होता, तो उस दिन घर- घर सामूहिक उत्सव मनाया जाता था. नाग पंचशील का अर्थ नाग, पंच, शील और इसका उत्सव होता है. लेकिन आर्य ब्राह्मणों ने इस उत्सव के महत्व के अर्थ का अनर्थ कर दिया और इसे अपने मिथक कथा पर आधारित ’नागपंचमी’ के रूप में प्रस्तुत कर दिया.
ब्राह्मणों के वेद पुराणों में ’नागों’ का कई बार जिक्र आता है. वास्तव में नाग कोई सरीसृप प्रजाति नही थे, बल्कि प्राचीन मूल नागवंशी मनुष्य प्रजाति थे. नागवंशियों में एक बड़ा महत्वपूर्ण नाम ’शेषनाग’ का जिक्र आता है. ब्रिटिश म्यूजियम में रखे एक सिक्के से यह पता चलता है की ’शेषनाग’ का पूरा नाम ’शेषदात नाग’ था. एक और नागवंशी मगध का पराक्रमी सम्राट जिसका नाम ’शिशुनाग’ था. शिशुनाग का शासनकाल 412 वर्ष ई.पू. से 345 वर्ष ई.पू. था. उसका साम्राज्य मगध से मालवा तक फैला हुआ था. 394 ई.पू.. को शिशुनाग की मृत्यु के बाद उसका पुत्र कालाशोक सम्राट बना, लेकिन 366 ई.पू.. उसकी हत्या महापदानंद (नंद वंशी) द्वारा कर शिशुनाग के वंश का अंत हो गया. नागवंशी राजाओं ने ही बौद्ध धर्म की हमेशा रक्षा की जिसमे शेषनाग दत्त, चन्द्रनशू , धम्मवर्धन और वंगर थे. कहीं- कहीं बुद्ध की प्रतिमा में पंचमुखी नाग , सप्तमुखी नाग देखने को मिलता है. यह किसी मूर्तिकार की कल्पना नही है बल्कि उसके पीछे छिपे कुछ रहस्यपूर्ण बातें हैं जिसे आम लोग नही समझ सकते. लेकिन इस आलेख के द्वारा यह स्पष्ट हो गया होगा कि ये सर्प कोई वास्तव के सर्प नही थे, बल्कि बौद्ध काल मे बौद्ध धर्म की रक्षा करने वाले नागवंशी राजा थे.
16वी शताब्दी में छोटानागपुर (झारखण्ड) में मुंडा नागवंशी राजा हुआ करते थे. मुंडा नागवंशी राजाओं का अपने क्षेत्रों में एक सुगठित शासन व्यवस्था थी. गाँव को हातु बोलते हैं कई हातु पर एक मानकी होता था, जिसे मानकी मुंडा कहते हैं. उसके ऊपर पड़हा होता था. उसके प्रमुख को पड़हा राजा बोलते थे और उसके बड़े विस्तारित क्षेत्र को नियंत्रण करने के लिए डोकलो शोहोर होता था और उसके ऊपर राजा होता था. लेकिन मंगोलो, मुस्लिम और ब्रिटिश शासको के उनके क्षेत्रो में आगमन से उनकी शासन व्यवस्था ही खत्म हो गई.आज वर्तमान झारखण्ड के छोटानागपुर के मुंडा बहुल क्षेत्रो में उनके पारम्परिक शासन व्यवस्था द्वारा ही सामाजिक एवं प्रसाशनिक कार्य होता है. छोटानागपुर के मुस्लिम धर्म को मानने वाले अधिकतर मुस्लिम लोग नागवंश हैं और रैयतधारी भी. जिस प्रकार से झारखण्ड के आदिवासी समुदाय में ब्रिटिश लोगो के कारण ईसाईकरण हुआ, लेकिन वास्तविकता तो यही है की वे नागवंशी ही हैं.
बौद्ध सभ्यता को नष्ट करने के लिए आर्य ब्राह्मणों ने मिथक कथा एवम मिथक प्रेक्टिस का सृजन किया. साथ ही साथ बौद्ध धर्म के प्रचारकों, बौद्ध भिक्षुओं और उनके अनुयायिओं की जमकर जघन्य हत्या की गई, ताकि सनातनी आर्य ब्राह्मण अपना “धार्मिक साम्राज्य“ को बचाकर रख सकें. इसके लिए इन्होंने मिथक धार्मिक प्रथा को निरन्तर मनाने के लिए अपने धर्म के माध्यम से खूब प्रचार प्रसार किया. और अंततः मूल सत्य पर हमेशा के लिए पर्दा डाल दिया गया. आज जो लोग नागपंचमी के पर्व मनाते हैं, उन्हें ये सत्य ज्ञात ही नही की यह बौद्ध सभ्यता का हिस्सा था, एक महत्वपूर्ण उत्सव पर्व था. आर्य ब्राह्मणों द्वारा लोगो को साँपो को दूध पिलाना और साँपो की पूजा करना सिखाया गया, बस यही मिथक शेष रह गया. आधुनिक काल में तकनीकी विकास हुआ. दुनियाँ में चलचित्र यानी बाइस्कोप का चलन 19वी सदी के अंत तक हो गया था. भारत में भी उन आधुनिक तकनीक का प्रयोग चलचित्र आदि बनाने में होने लगा. उस काल मे चलचित्र लोगो के ध्यान का केंद्र बन गया था. इसको ध्यान में रखते हुए कुछ फ़िल्म निर्माताओं ने धार्मिक फिल्मे भी खूब बनायी. भारतीय लोगो के लिए चलता फिरता तस्वीर देखना और आवाज सुनना बड़ा रोमांचक था. आर्य ब्राह्मणों ने चलचित्र को भी अपना एक खतरनाक हथियार के रूप में प्रयोग किया. खूब धार्मिक फिल्मे बनने लगी. रामायण, महाभारत के पात्रों वाली फ़िल्में सबको खूब भाती थीं. कुछ दशकों बाद टेलीविजन ने सबको खूब प्रभावित किया. टेलीविजन प्रोडक्शन में भी खूब फंतासीदार धार्मिक प्रोग्राम बनने लगे.
साँपो पर आधारित कई अन्धविश्वास फैलाये गए. मतलब भारत के जनमानस के चित्त को अपने मिथक कल्पनाओं से पूरी तरह कब्जा कर लिया गया. इसमें सबसे ज्यादा दलित, पिछड़ी जाति के लोग थे. उनके अंदर अंधविश्वास ने खूब जड़ जमाया. उन्हें यह यकीन दिलाया गया कि साँप इच्छाधारी होते हैं. उन्हें मारने वाले का अक्स उसके आंखों में छप जाता है. नागिन प्रतिशोध लेती है. साँपो के पास मणि होती है. इस तरह के कई अंधविश्वास का खूब प्रचार प्रसार हुआ. आज भी भारत में साँपो को लेकर कई तरह के अंधविश्वास व्याप्त हैं. इस डर ने उन्हें नागपंचमी के दिन साँपो को दूध पिलाने और उसकी पूजा करने के लिए खूब प्रेरित किया.