आदिवासी समाज एक ऐसा समाज है जिसकी सभ्यता संस्कृति व्यवस्था बिल्कुल अलग है. आदिवासी प्रकृति के पूजक माने जाते है और उनके जीवन का मूलाधार जल, जंगल, जमीन है. वे इसकी हिफाजत करते हैं, पेड़ों और पहाड़ियों की प्रार्थना करते हैं. झारखंड में 32 जनजातीय समूह है, जिसमें 8 विशेष रुप से कमजोर जनजाति समूह हैं. लेकिन सभी का जीवन दर्शन मिलता जुलता है और वह अन्य धर्मावलंबियों से थोड़ा भिन्न भी है. परंतु, आदिवासी समाज को अब तक अलग धर्म कोड नहीं मिला है. हिंदू, मुस्लमान, सिख, ईसाई, यहां तक कि बहुत थोड़ी संख्या में होने वाले पारसियों को भी धार्मिक कोड मिला हुआ है, लेकिन आदिवासियों के सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं मिली है. देश चलाने वाले यह मानने को तैयार नहीं कि उनका भी एक धर्म है और हर जनगणना में उसका एक कॉलम हो, ताकि पता चले कि हमारे देश में कितने आदिवासी समुदाय हैं और उनकी कितनी जनसंख्या है.

सरना धर्म कोड की मांग को लेकर लगातार आंदोलन चल रहा है. लेकिन आदिवासी समाज के लोगों को सरना धर्म कोड मिल नहीं पा रहा है. पिछले कुछ वर्षों से इसके लिए आंदोलन, धरना, रैली किया जाता है. पर इसकी तरफ केंद्र सरकार का ध्यान नही जाता. सोचने की बात यह है कि आदिवासियो को सरना धर्म कोड क्यों नही दिया जा रहा है. ऐसा क्या है जिसको लेकर आंदोलन पे आंदोलन चल रहा है, पर सरकार इसको मानने के लिए तैयार नहीं? इसी कारण आदिवासी समाज के लोग कोई हिंदू बन जा रहे हैं, तो कोई ईसाई भी बनते जा रहे हैं. कोई फॉर्म भरते हैं या फिर जनगणना होती है तो सामान्यतः हिंदूओं में शुमार कर लिया जाता है. इसलिए जनगणना के आकड़ों में आदिवासी नजर ही नहीं आते. सच्चाई यह है कि आदिवासी ना हिंदू थे और ना कभी हिंदू रहेंगे. इनका रीति रिवाज अलग है, वे प्रकृति पूजक हैं और उनकी पूजा पद्धति सरल है. वे सामान्यतः अपने देवता से धन, संपत्ति या संतान नहीं मांगते, बल्कि वे जो कुछ भी हमें देती है, उसके लिए अपना आभार प्रकट करते हैं. झारखंड आदिवासियों के नाम से ही जाना जाता है. यहां के जंगल, जमीन, पहाड़ियां जितना भी है सभी को आदिवासियों ने आज तक बचा कर संभाल कर रखा है, सभी को संजो कर रखा था. लेकिन उसकी अपनी पहचान खोती जा रही है.

हालांकि राज्य सरकार ने आदिवासियों के लिए अलग धार्मिक कोड का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कर केंद्र सरकार को भेज दिया है, लेकिन उसके लिए बहुत सचेष्ट नजर नहीं आती. आदिवासी समाज के लोग एक बार फिर से सरना धर्म कोड को लेकर आंदोलन शुरु करने वाले हैं. इसके लिए दिल्ली यात्रा भी होने वाली है. भारत सरकार को आदिवासियों की इस मांग पर पर सहानुभूति पूर्वक विचार करना चाहिए. हर जनगणना में आदिवासी का कॉलम दिखे और वह गर्व महसूस करे की हमारी कोई पहचान है.