“इस बार प्लीज मैं नहीं बैठूँगी इस होली में !” सोफे पर अपना शॉल फेंकते हुए वह चीखी.

“क्यूँ ? क्या हो गया ? हर बार तू ही तो प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठती है ।” राक्षसी प्रवृति वाले भाई ने अपने फोन में घुसे हुए ही पूछा.

“भैया, आप मुझ पर प्लीज इमोशनल प्रेशर मत डालिए!” इस बार फेमिनिजम पूरी तरह से हावी था उस पर.

“हवा की दिशा हर बार कैसे मेरे विपरीत हो जाती है. शॉल, प्रह्लाद को कवर कर लेती है और मुझे.!” अपने हाथों को देखते हुए फिर उसका चेहरा मुरझा गया.

“मैंने चेक किया है वेदर इस वीक का ‘‘नो विंड ऑन देट डे !” उसने मनाने की कोशिश की.

“डॉक्टर ने बिल्कुल मना कर दिया है मुझे आग में जाने को.. ये लास्ट प्लास्टिक सर्जरी थी.” वह अपने आपको आइने में निहारते हुए बड़बड़ा रही थी.

“और भैया , वैसे भी प्रह्लाद अब बड़ा हो गया है. उसको गोद में बैठाना ‘‘आय डोन्ट फील कम्फ्टर्बल!”

“फिर कैसे होगा ?” उसका चेहरे पर काले बादल घिर आए.

“आप ही क्यूँ नहीं बैठ जाते भैया इस बार? हर बार मुझे दोष देते हो .. इस बार खुद शॉल को कस कर पकड़े बैठना ?” सोफे पर पड़ा शॉल भैया के ऊपर फेंक दी.

“इतने सालों में जब ये दुष्ट बच्चा मेरी नहीं माना तो अब क्या सुनेगा मेरी ! वैसे भी कोरोना वाइरस ने इस होली का क्रेज ही खत्म कर दिया!” कहते हुए हरिण्याकश्यप ने फेस्बुक पोस्ट को स्क्रोल करते- करते होली सेलब्रेशन ग्रुप लेफ्ट कर दिया.

……