जार्ज आरवेल का पहला उपन्यास ‘ऐनिमल फार्म’ 1945 में प्रकाशित हुआ. उपन्यास में आरवेल ने यह बताने की कोशिश की कि मनुष्य में कष्टों को सहने की एक सीमा होती है, जब इस सीमा का अतिक्रमण होने लगता है तो वह विद्रोह करता है जो बाद में एक बड़ी क्रांति का रूप धारण करता है. लेकिन क्या क्रांति होने मात्र से ही मनुष्य के जीवन में वांक्षित बदलाव आ जाता है? साम्राज्यवाद हो, साम्यवाद हो या प्रजातंत्र, जबतक मनुष्य की आजादी पर अंकुश नहीं लगता है, तब तक वह उन तंत्रों में होने वाली ज्यादतियों को भी सह जाता है. अंत में वह देखता है कि जिनके खिलाफ उसने विद्रोह किया और विद्रोह के नेतृत्व करने वाले लोगों में कोई अंतर नहीं रह जाता है, तब उसे धोखें का एहसास होता है. कोई भी क्रांति पहला या अंतिम नहीं हो सकता जब तक कि उसका उद्देश्य मनुष्य की आजादी को कायम रखते हुए उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि स्थितियों में सुधार लाना न हो.

आरवेल का जन्म 1903 में बिहार के मधुवनी, जो उस समय बंगाल का हिस्सा था, में हुआ. एक वर्ष की उम्र में उसकी मां उसे लेकर इंग्लैंड चली जाती है, जहां उसकी शिक्षा दीक्षा होती है. पढ़ाई पूरी करने के बाद अंग्रेजों द्वारा शासित भारतीय पुलिस में वह नौकरी कर लेता है. उसका पदस्थापन वर्मा में होता है. बाद में साम्राज्यवाद की बंदिशों और अत्याचार का विरोधी आरवेल नौकरी छोड़ देता है. उसे गरीबी में जीवन बिताना पड़ता है. पहला उपन्यास छपने के बाद उसे पहचान मिलती है और उसके जीवन में सुधार आता है. लेकिन चंद वर्षों बाद 1950 में उसकी मृत्यु हो जाती है.

एनीमल फार्म उपन्यास में आरवेल जानवरों के एक बाड़े में जानवरों द्वारा किये गये एक विद्रोह का वर्णन करता है. उसी का एक छोटा सा अनुवादित अंश यहां रख रही हूं.

मेजर नामका एक वरिष्ठ सुअर बाड़े में जानवरों की स्थिति से चिंतित रहता है. अपनी इसी चिंतन के आधार पर वह जानवरों को उनकी स्थिति से अवगत कराता है और उन्हें विद्रोह करने की प्रेरणा देता है. एक रात को सभी जानवर बाड़े के खुली जगह में इकट्ठा होते हैं और मेजर अपना भाषण देता है.

‘‘ साथियों, मैं अब ज्यादा दिन आपके साथ नहीं रहूंगा. मैंने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, उसे आपको देकर जाना ही मैं अपना कर्तव्य मानता हूं. मुझे एक जगह रहते हुए चिंतन करने का बहुत समय मिला है. मैं यह कह सकता हूं कि इस पृथ्वी पर रहने वाले जानवरों की सच्चाई मैं जानता हूं. इसी के बारे में मैं आप सबों से बात करना चाहता हूं.

तो, साथियों, इस पृथ्वी पर प्रकृति ने हमें कैसा जीवन दिया है, इसके बारे में हम जानें. हमारा जीवन दुखद, श्रम से भरा और छोटा है. हम पैदा होते हैं, हमे उतना ही भोजन दिया जाता जिससे हमारी सांसें चले, हममे से जो जीवित रह जाता है, शक्ति चूकने तक उसे काम करने के लिए बाध्य किया जाता है. ज्योंहि हमारी उपयोगिता समाप्त होती है, हम निर्ममता से मार दिये जाते हैं. कोई भी जानवर आजाद नहीं है. दुख से भरा गुलामी का जीवन ही जानवर के जीवन की सच्चाई है.

क्या प्रकृति का यही आदेश है? क्या धरती इतनी गरीब है कि इस पर रहने वाले जीवों को एक उचित जीवन न दे सके? हम कब तक इस तरह की दुखद स्थिति में रहेंगे? ऐसा इसलिए हो रहा है कि हम अपने श्रम से जो कुछ भी पैदा करते हैं, वह सारा मनुष्य चुरा लेता है. साथियों, यही हमारी सारी समस्याओं का कारण है. एक शब्द में कहा जाये तो मनुष्य ही हमारा असली शत्रु है. मनुष्य को हराना है. हमारी भूख और अति परिश्रम की जड़ ही हमेशा के लिए नष्ट हो जायेगी.

मनुष्य ही ऐसा जीव है जो बिना कुछ भी उत्पादन के उपभोग करता है. वह दूध नहीं देता है. अंडे नहीं देता है. हल खींचने के लिए कमजोर है. तेजी से दौड़ कर खरगोश को भी पकड़ नहीं सकता, फिर भी वह जानवरों का मालिक है. वह हमे काम पर लगाता है. बदले में उतना ही भोजन देता है जिससे हम भूख से नहीं मरें. शेष अपने पास रख लेता है.

अब भी यह बात स्पष्ट नहीं हुई साथियों कि हमारे जीवन की सारी कठिनाईयां मानव उत्पीड़न के कारण है? केवल मनुष्य से छुटकारा पाना है. हमारे श्रम का सारा फल हमारा होगा. एक रात में ही हम आजाद और धनी हो जायेंगे. तब हमे करना क्या है? दिन रात तन मन लगा कर काम करना है, इस मानव जाति को उखाड़ फेंकने के लिए. यही आप लोगों के लिए मेरा संदेश है साथियों. मैं नहीं जानता यह विद्रोह कब होगा. एक सप्ताह में हो सकता है, या सौ साल लग सकते हैं. लेकिन यह मेरे पैरों के नीचे की घास की तरह ही एक वास्तविकता है. देर सबेर न्याय मिलेगा. साथियों अपनी छोटी सी जिंदगी के बचे दिनों में अपनी आंखें खुली रखो और मेरे इस संदेश को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाते रहो ताकि आने वाली पीढ़ी इस संघर्ष को कायम रखे और विजय प्राप्त करे.

और साथियों याद रखें कि हमारा संकल्प कभी कमजोर न पड़े. वे जब कहें कि मनुष्य और जानवर, दोनों का स्वार्थ एक है, एक की उन्नति से ही दूसरे की उन्नति होगी, तो विश्वास नहीं करना. ये सब झूठ है. मनुष्य अपने स्वार्थ के अलावा और किसी जीव के बारे में नहीं सोचता है. हम जानवरों में पूरी एकता होनी चाहिए. सही नेतृत्व होना चाहिए. सभी मनुष्य शत्रु हैं और सभी जानवर साथी हैं.’’