सरकार की बहुत सोची समझी लागू की गयी योजना अग्निपथ सचमुच में अग्निपथ साबित हुई. अग्निवीर बनने की ट्रेनिंग के पहले ही प्रत्याशी लड़के अग्निवीर बन गये. तीन दिनों से लगातार ट्रेनों, बसों, कारों तथा मोटर साईकलों में आग लगाते रहे, तोड़फोड़ करते रहे. वह भी उन राज्यों में जहां पूर्ण बहुमत प्राप्त भाजपा गठबंधन की सरकारें हैं. इस आगजनी और असंतुष्टि का कारण है अग्निपथ योजना के तहत नौकरी की उम्र सीमा 17 से 21 वर्ष निर्धारित किया जाना. लड़कों का मात्र चार साल सेना में रहने का अवसर रहेगा. उसके बाद 25 फीसदी लड़कों को सेना में रख कर शेष को बाहर का रासता दिखा दिया जायेगा.
इस योजना के संबंध में सरकार का दावा है कि सेना को हमेशा युवा बना कर रखने के लिए ही यह योजना बनी है. चार साल के बाद सेना से निकले लड़के बेकार नहीं होंगे. उनको निजी तथा सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा. पारा मिलिट्ी, असम राईफल जैसे संस्थाओं में भी नौकरी आसानी से मिल जायेगी. इन दावों के बावजूद लगभग पूरे देश में सेना के प्रत्याशियों में असंतोष फैल गया है. फिर भी कुछ परिवर्तनों के साथ इस योजना को सफलता पूर्वक लागू करने का विश्वास सरकार को है.
सरकार ने यह योजना जिन लड़कों के लिए बनाया है, वे मुख्यतः आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के होते हैं जो किसी तरह दसवीं या बारहवीं तक पढ़ाई कर नौकरी की खोज में निकलते हैं. ऐसे लड़कों के लिए नौकरियों के अवसर बहुत कम रहते हैं. सेना मे सिपाही का पद ही ऐसा होता है जो उनके शैक्षणिक योग्यता से ज्यादा शारीरिक क्षमता को महत्व देता है. इसलिए ये लड़के विभिन्न प्रकार का व्यायाम कर अपने शरीर को इस योग्य बनाते हैं. दो वर्ष के अंतराल के बाद सैनिकों के नियोजन के लिए निकले इस परिवर्तित योजना से ऐसे प्रत्याशियों को निराशा तो जरूर हुई और उन्होंने अपने विरोध को प्रगट भी किया. लेकिन सरकार ने योजना में कुछ परिवर्तनों के साथ नियोजन की प्रक्रिया को 24 जून से शुरु करने का ऐलान भी कर दिया है.
प्रत्याशियों द्वारा आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं से कुछ लोग यह निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि कृषि कानून की तरह सरकार को इस योजना को भी वापस लेना पड़ेगा. लेकिन सरकार के रुख से लगता है कि 24 तारीख से इस योजना में नौकरी के लिए लाईन लग जायेगी. सरकार के इस विश्वास के कई कारण हैं. वह अच्छी तरह जानती है कि बेरोजगारी का जो रोना रोया जा रहा है, वह इसी तरह के युवाओं में सबसे ज्यादा है. इनके लिए नौकरयांें के चयन के मौके बहुत कम हैं. साथ ही जितने पद हैं, उससे तिगुनी, चैगुनी प्रत्याशियों की संख्या है. ऐसे में 17 से 23 वर्ष के युवक यह भी सोच सकते हैं कि निकट भविष्य में दूसरी कोई नौकरी मिलने की आशा नहीं और उनके लिए दूसरी कोई योग्यता भी नहीं, तो अब जो मौका सामने है, उस पर जरूर वे अपना भविष्य दाव पर लगा दें. चार वर्ष तो एक निश्चित आमदनी प्राप्त करेंगे और यदि सरकार के दावों में सच्चाई हो तो उन्हें बाद में भी बेकार रहने की कोई नौबत नहीं आयेगी. इसके अलावा सरकार लगातार यह प्रचार कर रही है कि लड़कों के भविष्य को उज्जवल बनाने की उनकी महत्वकांक्षी योजना की आलोचना कर विपक्षी दल लड़कों को बरगला रहे हैं. इसके अलावा आगजनी तथा लूटपाट में असली प्रत्याशी नहीं, बल्कि असामाजिक तत्व सक्रिय हैं. फिर भी सरकार इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर प्रत्याशियों के सामने अपने धैर्य तथा नेकनीयति का प्रदर्शन करना चाहती है.
इसका असर निश्चित ही प्रत्याशियों पर पड़ेगा और सरकार को सफलता मिलेगी.