बीजेपी का इतिहास प्रेम जगजाहिर है. जबसे इनकी सरकार बनी है, इतिहास में बदलाव जारी है. इतिहास के किताबों से कई पुराने पाठ हटा दिये गये और नये पाठ जोड़े भी गये. अब तो यह प्रयोग साहित्य तथा भाषा की किताबों में भी हो रहा है. कर्नाटक में आठवीं कक्षा के कन्नड़ भाषा के किताब में विनायक दामोदर सावरकर के चरित्र को उजागर करता एक पाठ जोड़ा गया है, जो इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. वैसे, कर्नाटक में कन्नड़ भाषा दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है. उक्त पाठ पुस्तक अभी तक छप कर नहीं आया है. यह कर्नाटक टेस्ट बुक सोसायटी के बेव साईट पर है. किताब छपने के पहले ही यह विवादों में आ गया. इस पाठ का वह अंश जिसकी आजोचना हो रही है, वह इस प्रकार है - ‘‘ सावरकर को जेल के जिस सेल में रखा गया था, उसके दरवाजे में चाभी के लिए भी एक छिद्र नहीं था. ऐसे कमरे में हर दिन बुलबुल पक्षियों का एक झुंड उनके कमरे में आता था और सावरकर उनके परों पर बैठ कर बाहर निकलते थे और प्रतिदिन अपनी मातृभूमि का दर्शन करते थे.’’ इसके बाद का अंश कन्नड़ लेखक केटी गट्टी द्वारा लिखित अंडमान निकोबार द्वीप की यात्रा वृतांत का एक अंश है.
इस किताब का यह अंश सोशल मीडिया में उछाला जा रहा है. एक व्यक्ति ने तो सोशल मीडिया में लिखा की इस किताब के अनुसार 1911 से लेकर 1921 तक सावरकर का प्रतिदिन का यही रुटीन था. बुलबुलों के परों पर सवार होकर अपने सेल से बाहर निकलना और अपनी मातृभूमि का दर्शन करना. इस संदर्भ में अजब बात यह थी कि इस पाठ के बारे में केटीबीएच के अध्यक्ष को भी जानकारी नहीं थी.
किसी पाठ पुस्तक के पाठ का कोई अंश इतना काल्पनिक और हास्यास्पद कैसे हो सकता है? कंप्यूटर युग में जीने वाले आठवीं कक्षा के विद्यार्थी के मन में जरूर यह प्रश्न उठेगा कि बुलबुल पक्षी के पंख की सवारी सावरकर कैसे कर लेते थे? ऐसी कौन सी मायावी शक्ति उनके पास थी. सावरकर की मातृभूमि प्रेम को दिखाना ही था तो कोई दूसरी कल्पना भी की जा सकती थी. इस तरह की बचकानी कल्पना प्रस्तुत कर सावरकर की देश भक्ति का मजाक ही उड़ाया गया.