पौराणिक कथाओं की माने तो दीपावली की रात जुआ खेलना इसलिए शुभ हैं क्योंकि कार्तिक मास की इस रात को भगवान शिव और माता पार्वती ने चैसर खेला था. जिसमें भगवान शिव हार गए थे. तभी से दिवाली की रात जुआ खेलने की परंपरा जुड़ गई. जुआ एक ऐसा खेल है जिससे इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है.
जुआ, सामाजिक बुराई होकर भी भारतीय मानस में गहरी पैठ बनाए हुए है. ताश के पत्तों से पैसों की बाजी लगाकर खेला जाने वाला खेल भारत में नया नहीं है. बस हर काल में इसके तरीकों में थोड़ा परिवर्तन आता रहा है. जुआ आज खेला जाता है और पहले भी खेला जाता रहा है.
कई घरों में लोग लक्ष्मी पूजन के बाद जुआ खेलने के लिए बैठते है. सभी उत्साह से एकजुट होकर खेलते है, इससे लोगों पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है और सही भी. यह एक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उसे यह किस प्रकार से इस्तेमाल करता हैं. दीपावली के अगली रात आदिवासी घरों, गांवों में भी जुआ खेलने का रिवाज बन गया है. परिवार वाले मिल कर जुआ खेलते है. सभी हँसी खुशी छोटी- छोटी रकम लगा कर खेलते है, वह भी बस दीवाली के दिन, इसे बुरा नही माना जाता है.
इसमें ज्यादा पैसा लगा कर नही खेला जाता है, लेकिन कहीं - कहीं जुआ हजारो लाखों रुपया लगा कर खेला जाता है और इससे घर बर्बाद भी हो जाते हैं. कुछ लोगों का तो मानना है कि दिवाली की रात जुआ खेलना और उसमें हारना, जीतना साल भर हार-जीत का संकेत होता है.
लेकिन जुआ खेलने से आपको इसकी लत भी लग सकती है. इसलिए अगर आप कभी जुआ नहीं खेले हैं तो आपको दिवाली के दिन भी जुआ नहीं खेलना चाहिए. या फिर बिना कुछ दांव पर लगाए मनोरंजन के लिए खेल सकते हैं. यदि आप अपनी फैमिली में मिलकर खेल के तरीके से जुआ खेलते हैं तो इससे आपस में प्यार बढ़ता है. लेकिन पैसा लगा कर खेलना आपके लिए हानिकारक हो सकता है.
जुए में पैसा लगाकर खेलने से लक्ष्मी खुश होने के बजाय रूठ भी सकती हैं. यह एक नशा भी बन जा सकता है और इसके प्रभाव में आदमी किस हद तक जा सकता है, उसके लिए महाभारत में एक विश्व विख्यात कथा है ही जिसमें धर्मराज युधिष्ठिर अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दांव पर लगा देते हैं.