उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के ब्रिटिश शासनकाल में किशनपुर- आज के रांची शहर- में आदिवासी क्रांतिकारियों की सँख्या में अचानक बढ़ोतरी होने लगी थी. कैप्टन विलकिंसन को उस क्षेत्र में शांति - व्यवस्था करने के लिए भेजा गया. विलकिंसन की पहल पर ही 1988 में रांची जेल स्थापित की गयी थी, यह वहीं समय था जब कैद किये गए आदिवासियों-क्रांतिकारियों की बढ़ती संख्या के कारण रांची को जिला घोषित किया गया था. 1900 ई में भगवान बिरसा मुंडा को उनके उलगुलान/ विद्रोह के लिए गिरफ्तार करके इसी जेल में लाया गया था. और उन्होंने इसी जेल में अपनी अंतिम सांसे ली थी. भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 व मृत्यु 9 जून 1900 को हुआ था और रांची के जिस जेल में अंग्रेजों की कैद में रहकर उन्होंने शहादत दी थी, उस जेल परिसर को भगवान बिरसा मुंडा संग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया है गया. जहाँ पर लोग अब उत्साह से घूमने जाते है.

कुछ दिन पहले मै बिरसा मुंडा संग्रहालय जेल घूमने गयी. वहां उन्नीसवीं शताब्दी में किस प्रकार अंग्रेजो का आगमन और किस तरह यहाँ के लोगों पर शासन शुरु होआ और उसके साथ आदिवासियों जन नायकों द्वारा विरोध, उन सभी चीजों को विस्तार से चित्र व मूर्तियों के रुप में एक बोर्ड परं लिख कर सारा इतिहास को बताया गया हैं. घूमने के बहाने रांची के इतिहास के बारे जानने को भी मिला. जेल के प्रवेश गेट पर ही भारत मे अंग्रेजों के आगमन और फिर शासक बनने की जानकारी दी गई है. वहीं प्रवेश के साथ ही रांची का इतिहास, धरती आबा के संघर्ष की जानकारी विस्तार से दी गयी है ताकि जब भी पर्यटक खासकर हमारी नई पीढ़ी बिरसा मुंडा संग्रहालय में आये तो वह यह जान सके कि हमें आजादी कितने लंबे संघर्ष और बलिदान के बाद मिली है. झारखंड के अन्य शहीदों की कहानी जेल की दीवारों पर दर्शायी गयी हैं. इसके अलावा और भी काफी खूबसूरत चीजें यहां देखने योग्य हैं. पार्क में बच्चों के मनोरंजन का भी ख्याल रखा गया है. पार्क के एक साइड में चिल्ड्रेन जोन बनाया गया है, जहां स्केटिंग, रॉक क्लाइंबिंग के अलावा कई प्रकार के झूले बच्चों का मनोरंजन करेंगे. इतना ही नहीं, विभिन्न खेलों के संसाधन भी उपलब्ध हैं.

जेल की सभी दीवारों को पुराने स्वरूप में भी संरक्षित किया गया है. वहीं जिस कमरे में धरती आबा को कैद कर रखा गया था, उस कमरे में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा लगाई गई है. इसके अलावा जेल परिसर में प्रवेश करते ही बायीं ओर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की करीब 30 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई गयी है जिसे प्रख्यात मूर्तिकार राम सुतार ने बनाया है. लेकिन जब मैंने बिरसा भगवान की ओर देख तो मुझे एक पल में वे श्री राम के अवतार में नजर आये, क्योंकि आज तक मैं उनकी तस्वीर को मांदर, धनुष आदि के साथ देखा है. तो मुझे लगा हां ये आदिवासी समाज का भगवान है. पर यहाँ एक चीज जो मेरे मन को खटकी वह थी बिरसा के गाले में रुद्राक्ष की माला. यह तो मैने तस्वीरों में श्रीराम जी को पहनते देखा हैं. उस मूर्ति में बिरसा कम और श्री राम ज्यादा लग रहे थे. कंधे पर धनुष और तरकस में तीर भी कुछ उन्हीें के अंदाज में था. वैसे, बाकी सभी चीजों को देख मन प्रसन्न हुआ.