14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाया गया. इस दिन को सेंट वेलेंटाइन डे भी कहा जाता है, क्यों कि ईसाई धर्मावलंबी इसे संत वेलेंटाइन की मृत्यु दिवस के रूप में मनाते हैं, जो सन् 270 ई० के मध्य फरवरी मे हुआ था. लेकिन अब पूरे विश्व में इस दिन को प्रेम दिवस के रूप मे मनाया जाता है. प्रेमी युगल एक दूसरे को चाकलेट तथा तरह- तरह के उपहार देकर अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं. उन्नीसवी शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के बाद से वेलेंटाइन डे मनाने के तरीके में भी बहुत परिवर्तन आये. अब वेलेंटाइन कार्ड छपने लगे. कैडबरीस कंपनी हार्ट शेप के चाकलेट बनाने लगी. इसके अलावा वेलेंटाइन के तरह तरह के उपहारों से बाजार भर गये. अब प्रेम, उपहारों के दामों से तौला जाने लगा और प्रेम की कोमल भावनाएँ कम होती चली गई. वेलेंटाइन डे व्यवसायिक वेलेंटाइन डे बनकर रह गया. किसी को शायद याद भी नहीं रह गया कि एक संत की कुर्बानी दिवस को क्यों एक प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है. यद्यपि इस दिन का कोई स्पष्ट इतिहास प्राप्य नहीं है, फिर भी इस दिन को लेकर कई कहानियां प्रचलित है और इसके बारे में जानना भी दिलचस्प होगा.
तीसरी शताब्दी में रोम में वेलेंटाइन नाम के एक संत हुए थे. उस समय रोम कई तरह के युद्धों में युद्धरत था. रोम के सम्राट क्लाडियस 2 गोथिकस् को अधिकाधिक सैनिकों की जरूरत थी. सम्राट का यह स्पष्ट विचार था कि अविवाहित युवक ही आसानी से सैनिक बन सकते हैं, इसलिए उसने युवकों के शादी करने पर रोक लगा दी थी. लेकिन संत वैलेंटाइन इसे अनुचित मानते थे. इसलिए वे छुपाकर युवकों की शादी कराने लगे. उनके काम से क्रोधित सम्राट ने संत को बन्दी बनाकर फांसी लगाने की सजा सुना दी. उनके मृत्यु के दिन को ही प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
इसी से जुडी एक और कहानी भी प्रचलित है. संत वेलेंटाइन को जब जेल में रखा गया था, उस समय जेलर की बेटी से उनको प्रेम हो गया था. अपने फांसी के दिन उन्होंने अपनी प्रेमिका को पत्र लिखा और पत्र के अंत मे ‘तुम्हारा वेलेंटाइन’ लिखा. शायद यही एक प्रेमी द्वारा अपनी प्रेमिका को लिखा गया पहला प्रेम पत्र रहा होगा. इस पत्र को वेलेंटाइन ने लिखा था, इसलिए इस प्रेम दिवस को वेलेंटाइन डे कहा गया.
एक और किंवदंती के अनुसार पुराने रोम में मनाया जाने वाला पर्व प्रजनन शक्ति के रूप में मनाया जाता था. रोम में इस पर्व के दिन कृषि के देवता फॉनस तथा रोमलुस और रेमस की भी पूजा होती थी. रोमलुस तथा रेमस रोम के संस्थापक थे. उत्सव के दिन लाटरी के द्वारा नाम निकाल कर युवकांे तथा युवतियों के जोडे बनाये जाते थे, जो कुछ दिन साथ मे रहने के बाद शादी कर लेते थे.
इस पर्व की एक और कहानी के अनुसार रोम के पुजारियों का एक झुंड बकरियों तथा कुत्तों की बलि देते थे और रक्त में डूबे उनके चमड़े के पट्टों से महिलाओं को मारते थे. उनका विश्वास था कि इस तरह करने से महिलाओ की प्रजनन शक्ति बढ़ जाती है. पाँचवीं शताब्दी के अन्त तक जब रोम में चर्च का प्रभाव बढ़ने लगा, तो पोप गेलेसियस ने लुपरकेलिया के उत्सवों को संत वेलेंटाइन की मृत्यु दिवस के रूप में मनाने की परम्परा शुरू कर दी.
एक और कहानी के अनुसार रोम में संत वेलेंटाइन नाक के पादरी हुआ करते थे, जो अपनी उँगली में क्यूपिड के चित्र से युक्त अंगूठी पहनते थे. क्यूपिड को रोम में प्रेम के देवता वीनस का पुत्र माना जाता है. क्यूपिड के फोटो में पंख लगा एक छोटा बच्चा होता है, जिसके हाथ में तीर धनुष होता है. कहा जाता है कि अपने वाण को चला कर वह लोगों के दिल में प्रेम भाव जगाता है. इस अंगूठी को संत के पहनने के कारण ही रोमन सैनिक उस पर विश्वास करते थे.
वैसे, इतिहासकारों के अनुसार 1381 ई0 में कवि जाॅफरी चैसर की कविताओं को ही सचे अर्थ में वेलेंटाइन डे को स्थापित करने का श्रेय जाता है. उन्होंने अपनी कविताओं में संत वेलेंटाइन और प्रेम के बीच संबंध स्थापित किया और बताया की प्रेम दिवस का एक लम्बा इतिहास है. इस तरह विभिन्न प्रकार की कहानियों को समेटे यह वेलेटाइन डे चैदह-पंद्रह शताब्दी तक आते आते अपना धार्मिक चोला उतार कर विशुद्ध प्रेम दिवस के रूप मे मनाया जाने लगा. प्रेमी युगल अपने प्रेम की स्मृति में प्रेम पत्र लिखते थे, फूल तथा चाकलेट भेंट करते थे.
फरवरी महीने के मध्य से ही वसंत ऋतु प्रारंभ हो जाता है. प्रकृति अपना रूप बदलती है. नये फूल पत्तों से पेड सज जाते हैं. पशु पक्षियों के प्रजनन का भी समय शुरू हो जाता है. भारत में भी वसंतोत्सव के द्वारा इस ऋतु का स्वागत किया जाता है. इसी समय वैलेंटाइन डे मनाकर प्रेमी जन खुश हो जाते हैं. यद्यपि भारत में हिन्दू संगठन इस दिन को पाश्चात्य पर्व की नकल बताकर इसका विरोध करते है, फिर भी इस दिन में उत्सव मनाने वाले पीछे नहीं हटते हैं.