अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को मनाया जाता है. आज इसका स्वरूप काफ़ी बदल चुका है. दुनिया के हर हिस्से में महिला दिवस अलग-अलग तरीक़े से मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पहचान अक्सर जामुनी रंग से होती है, क्योंकि इसे ‘इंसाफ़ और सम्मान’ का प्रतीक माना जाता है. इस दिवस का तात्पर्य कि महिलाएं अपने-अपने देशों में युद्ध, हिंसा और नीतिगत बदलावों के बीच अपने अधिकारों की लड़ाई . महिला दिवस मनाने की शुरुआत आज से 112 वर्ष पहले साल 1908 में हुई थी, जब अमरीका के न्यूयॉर्क शहर में क़रीब 15 हज़ार महिलाएं सड़कों पर उतरी थीं. ये महिलाएं काम के कम घंटों, बेहतर तनख़्वाह और वोटिंग के अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन कर रही थीं.
आपलोगों ने सभी जगह महिलाओं को अपने उपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करते देखा होगा, पर आदिवासी समाज की महिलायें लगातार उत्पीड़न सहने के बावजूद प्रतिकार नहीं करती. सब मौन रह कर सहती हैं.
8 मार्च को विश्व भर में महिला दिवस मनाया जायेगा, लेकिन आदिवासी समाज की महिलाओं को इससे कोई फर्क ही नही पड़ता. वे अपने सघर्षमय जीवन मे इतनी व्यस्त हंै कि न उन्हें कोई महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हैं, और न ही उसे उस दिन आराम. कामकाजी महिलाओं को महिला दिवस में कार्य से तो अवकाश मिल जाता हैं, पर घर के काम- काज से कभी अवकाश नही मिलता, चाहे वह महिला दिवस हो या न हो.
आदिवासी समाज की महिलाएं घर का काम करती हैं, साथ मंे बाहर भी. जब पूरे देश में महिला दिवस का आयोजन किया जाएगा, सभी जश्न मनायेंगे, तब भी आदिवासी समाज की महिलाएं खेती बारी और जंगल से लकड़ी जुटाने का काम करती रहेंगी. आदिवासी समाज में पुरूष पी कर महिला के साथ मार पीट, गाली गलौज करे, फिर भी वो आवाज नहीं उठाती हंै.उनके खिलाफ विरोध नहीं करती.
एक बात मैंने यह भी देखा है की पुरुष हिसाब किताब महिला से लेते हैं, लेकिन महिलाएं किसी तरह घर गृहस्ती चलाती हैं, बच्चों को पालती है, पढ़ाती हैं, बच्चों की हर ख्वाहिश पूरा करती हं,ै लेकिन वह कभी कोई चीज का हिसाब किताब नहीं मांगती, महिलाएं अपनी कमाई सभी पर लुटा देती हैं. पति बस घर के खर्चे उठाते हैं और उसके लिए भी उन्हें हिसाब किताब चाहिए है, इसी वजह से आदिवासी महिलाओं के चेहरे पर हमेशा एक तरह की खामोशी छायी रहती है.
पूरे विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है, लेकिन क्या महिला हर जगह सुरक्षित हैं? उसके लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन आज भी सड़क पर महिलाओं के साथ छेड़खानी होती है. जिंदगी भर कामकाज में व्यस्त रहती हैं, बस उन्हें महिला दिवस के नाम पर दिलासा दिया जाता है. पूरे विश्व में महिला दिवस के नाम पर कार्यक्रम किए जाते हैं.
लेकिन सामान्यतः ऐसे कार्यक्रम शहरों में किए जाते हैं, किसी गांव में जाकर महिलाओं से महिला दिवस के औचित्य पर चर्चा नहीं की जाती. मेरा मानना है कि जब शहर में महिला दिवस धूमधाम से मनाया जाता है, वैसे ही गांव में भी जाकर इस तरह के कार्यक्रम किया जाए ताकि महिलाएं एक दिन तो अपने अधिकारों को जान कर जश्न मना सकें. उन्हें महिला दिवस के बहाने एक दिन का तो अवकाश मिले.