24 मार्च को आदिवासियों ने प्राकृतिक पर्व सरहुल धूमधाम से मनाया. पर्व की शुरुआत परम्परागत पूजा पद्धति से हुई. सुबह सरना स्थान में पाहन द्वारा पूजा हुआ. पूजा के दौरान पाहन ओर सभी आदिवासी समुदाय के लोगों ने मिल कर प्रकृति व खेती-बारी, जंगल-जमीन, नदी-नालों, पहाड़ों की खुशहाली के लिए प्रार्थना की. पूर्वजों को याद किया.
सरना स्थान पर लोटा में सरई फूल और पानी लेकर पेड़ के तीन चकर लगा कर पेड़ में पानी डाला गया. उसके बाद सभी एक दूसरे के कान में सरहुल फूल खांेसते हुए सरहुल पर्व की शुभकामनाएं दी.
उसके पश्चात सभी घर आ कर पूजा कर नई सब्जी व अन्य पकवान बनाया गया, अपने इष्ट देव व पूर्वजों को अर्पित किया गया व शाम ढलते जुलूस के लिए तैयार होकर ढोल मांदार के साथ अपने अपने गांव -बस्ती से प्रस्थान किया. सभी झूमते गाते नाचते जुलूस में शामिल हुए और सिरम टोली तक गए.
जुलूस कोरोना की वजह से तीन वर्ष के अंतराल के बाद निकला था और लोगों का उत्साह देखते बनता था. लाल पाड़ की साड़ियों में लड़कियां, औरतें, परंपरागत पोशाक में युवा. अपार भीड़ के बावजूद कहीं भी हो हंगामा नहीं हुआ न कानून व्यवस्था के लिए ही कोई समस्या.
सरहुल खत्म हो गया, लेकिन अभी से फिर अगले वर्ष उसके आने की प्रतीक्षा शुरु हो गयी है.