जब एक लड़का और लड़की अपनी मर्जी से एक घर में बिना शादी किए पति-पत्नी की तरह रहते हैं तो उस रिश्ते को लिव-इन रिलेशनशिप कहा जाता है. परंतु कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद आज लिव-इन रिलेशनशिप को सभी बुरी नजर से देखते हैं. सहज रूप में स्वीकार नहीं कर पाते. कई परिवार वाले तो दोनों को घर से बेदखल कर देते हैं. कहीं- कहीं तो मार पीट करते हैं या आॅनर किलिंग के नाम पर उनकी हत्या तक कर दी जाती है.

ऐसे में यह बात राहत देने वाली है कि आदिवासी समुदाय में बिना विवाह के साथ रहना उतना असहज नहीं माना जाता. घर वाले सामान्यतः ऐसे रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं. हाल में हमारे यहां एक लड़का अचानक एक लड़की को अपने घर ले आया. वह लड़की गर्भवति भी हो चुकी थी. लड़के के माता पिता ने न सिर्फ उस लड़की को बहु के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उसी घर में उस लड़की ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया. और कुछ दिन पहले उनका औपचारिक रूप से विवाह कर दिया गया.

इसी तरह एक और परिवार में एक लड़का लड़की को लेकर अपने घर चला आया. बाद में दोनों परिवारों के लोग आपस में मिले. लेकिन लड़की वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं हुआ, फिर भी उन्होंने अड़चन नहीं डाली और दोनों विवाह बंधन में बंध गये. यह जरूरी नहीं कि विवाह तुरंत हो ही जाये. अपनी सुविधा से वे विवाह करते हैं. वह महीनों, वर्षों साथ रहने के बाद भी हो सकता है और विवाह नहीं भी हो सकता है.

परंतु अफसोस इस बात का है कि यह सहजता बस लड़को के लिए है, क्योंकि लड़को को तो हर चीज में आजादी रहती है. चाहे वह लड़की को घर लाये, पढ़ाई लिखाई किये बगैर विवाह रचाये. कोई काम न करे. उसे कोई बोल नही सकता. फिलहाल मैं देख रही हूं कि लड़के न कोई कार्य करते हंै, न ही पढ़ाई या कोई काम, और अब वो लड़की को घर ला कर रख रहे हैं. स्वाभाविक रूप से उसे कोई कुछ नही कहता, लेकिन लड़की अगर कही किसी लड़के के साथ चली जाती है, तो परिवार वाले बात छोड़ देते हैं, उससे रिश्ता रखना जरूरी नहीं समझते. ऐसा हर बार हो, यह जरूरी नहीं, परंतु बहुधा ऐसा होता है.

झारखंड में लिव-इन रिलेशनशिप नया शब्द नही हैं, न ही चांैकाने वाली बात है. ये सदियों से चला आ रहा है. आदिवासी समाज में इसे लेकर कोई बबाल नहीं होता, न लोग तुरंत असहज हो उठते हैं. कुछ धर्म व जाति के लोग इस मामले में कुछ ज्यादा बवाल कर देते हैं. कुछ दिन पहले हमारे गांव में एक युवा जोड़ा आ कर किरायेदार के रूप में रहने लगा. पता चला कि उन्होंने विवाह करने का निर्णय लिया तो घर वालों ने विरोध कर दिया. भाग कर वे रांची आ गये और खट कमा कर जीवन यापन करने लगे. और जब उनके घर वालों ने उनके रिश्ते को स्वीकार कर लिया तो वे वापस अपने गांव चले गये.

आये दिन यह सुनने को मिलता है कि अपनी इच्छा से विवाह करने वाले जोड़े का माता पिता ने परित्याग कर दिया. या फिर उन्हें घेर कर मारा पीटा गया. इस लिहाज से देखें तो हमारे समाज में लड़के, लड़की को अपना जीवन साथी चुनने की ज्यादा आजादी है और पिछड़ा समझा जाने वाला हमारा समाज स्त्री-पुरुष संबंधों के मामले में ज्यादा उदार है.