पिछले दिनों समाजकर्मियों और बुद्धिजीवियों के एक दल ने खूंटी क्षेत्र का दौरा किया. उस भ्रमण दल में शामिल थे— सुनील मिंज (आदिवासी अधिकारों का राष्ट्रीय अभियान), जेरोम जेराल्ड कुजूर (केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति, लातेहार, गुमला), राकेश रोशन किड़ो (ग्राम स्वराज अभियान), दीपक बाड़ा (विडियो वालंटियर), जेवियर कुजूर(झारखण्ड जंगल बचाओ आन्दोलन), लीवंस मुंडू (झारखण्ड इंडिजिनस पीपल्स फोरम), वारलेस सुरीन (विडियो वालंटियर), बसंती (विडियो वालंटियर),और जेवियर हमसाय(विडियो वालंटियर). उनके द्वारा जारी रिपोर्ट.

दिनांक 1 मई 2018 को 9 सदस्यीय आदिवासी समाजकर्मियों का एक दल दिल्ली से आये 15 सदस्यीय मीडिया ग्रुप के साथ खूँटी जिले के भंडरा कुदाटोली ग्रामसभा और जिकिलता ग्रामसभा का दौरा किया . यह समझने के लिए की क्या इन इलाके के ग्रामसभाओं द्वारा की जा रही पत्थलगड़ी वाकई असंवैधानिक है ? दल ने दोनों ग्रामसभाओं के साथ बैठक की और जाना की उनके द्वारा कए जा रहे पत्थलगड़ी किसी भी नजरिये से संविधान विरोधी नहीं है यह पिछले सात दशकों में आदिवासी इलाकों के लिए संवैधानिक प्रावधान के बावजूद अपेक्षित विकास कार्य नहीं किये जाने का परिणाम है.उनके द्वारा की जा रही पत्थलगड़ी विकास के कार्य में बहस को तेजी प्रदान करता है. पत्थलगड़ी लोकतंत्र को मजबूत करता है, न की उससे लोकतंत्र का सिकुड़न होता है .

हमारी टीम ने खूटी के दौरे से वापस लौट कर एक रिपोर्ताज बनाया है जिसे हम आपको प्रेषित कर रहे हैं ताकि आदिवासी कार्यकर्ताओं के इस सन्दर्भ में विचार को जाना जा सके .

पृष्ठभूमि – झारखण्ड के 13 अनुसूचित जिलो में खूँटी जिला भी एक अनुसूचित जिला है . इस अनुसूचित जिले में पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों का तनिक भी लाभ यहां के मुंडा आदिवासियों को नहीं मिला है . आजादी के 70 साल के बाद भी यहाँ के लोग मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं . यहाँ के आदिवासियों का विश्वास सरकार के ऊपर से उठ चुका है. इसलिए उन्होंने अब अपने गांवों के सीमानों में पत्थलगड़ी करने का काम जोर शोर से शुरू कर दिया है . इस पत्थल में वे संविधान के अनुच्छेदों यथा 13 (3) (क) , 244 (1) 244 (2) , 141 (1) , 19 (5) , 19(6), सहित आदिवासियों से सम्बंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पत्थर में उकेरना शुरू कर दिया है . इस इलाके का पहला पत्थलगड़ी 09 मार्च 2017 को भंडरा गाँव में करने के साथ ही इस जिले के अन्य 300 गांवों में पारंपरिक तरीके से कर दिया गया है . इसके बाद गाँव में बिना अनुमति अन्य लोगों का प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है .

भ्रमण टीम ने भ्रमण के दौरान भंडरा कुदाटोली गाँव में जब ग्रामप्रधान से ये पूछा की सरकार इस पत्थलगड़ी को असंवैधानिक कह रही है तो क्या ये पत्थलगड़ी असंवैधानिक है ? इसके जवाब में ग्रामप्रधान ने बताया की पत्थलगड़ी प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा है जिसका निर्वाह हमलोग आजतक करते आ रहे हैं . हमलोग अनेकों तरह की पत्थलगड़ी करते हैं . ब्रिटिश शासन काल में जब छोटानागपुर क्षेत्र में स्थाई बंदोबस्ती कानून लागू किया गया और जमीन की लिखा पढी होने लगी तो इस क्षेत्र में बाहरियों ने अवैध रूप से जमीन अपने नाम में लिखवा ली . इस कारण से यहाँ विद्रोह भड़क उठा और ये मामला न्यायालय में चला गया .उस समय न्यायालय कलकत्ता में हुआ करता था . जब न्यायालय ने जमीन का सबूत माँगा तो इस इलाके के लोग पत्थलगड़ी के पत्थर को ही ढो कर पैदल कलकत्ता चले गए और न्यायालय के समक्ष इसी पत्थलगड़ी के पत्थर को जमीन के सबूत के रूप में न्यायालय के समक्ष पेश किया . न्यायालय ने पत्थलगड़ी के पत्थर को सबूत के तौर पर माना और आदिवासियों की विधि और प्रथा को मान्यता प्रदान की .पत्थलगड़ी हमारी पारम्परिक प्रथा है और संवैधानिक भी .

खूंटी जिला प्रोफाइल –

कुल क्षेत्रफल - 2535 वर्ग कि मी

जनसंख्या घनत्व - 210 व्यक्ति प्रति वर्ग कि मी

कुल जनसँख्या - 531885

पुरुष जनसँख्या - 266335

महिला जनसँख्या - 265550

लिंगानुपात - 997

साक्षरता दर - 63.86 %

पुरुष साक्षरता - 74.08 %

महिला साक्षरता - 53.69%

आदिवासी जनसँख्या - 389626

आदिवासी पुरुष - 193710

आदिवासी महिला - 195916

आदिवासी जनसँख्या % - 73.25 %

लोग कैसे प्रवेश करें - गाँव के सीमाने के पास जहाँ पत्थलगड़ी किया गया है, वहां उस गाँव के एक दो व्यक्ति रहते हैं अगर आपको उस गाँव में प्रवेश करना है तो उन लोगों के माध्यम से गाँव के मुंडा के पास जाकर गाँव में प्रवेश की अनुमति माँगना है. गाँव के युवा आगंतुकों से आगंतुक रजिस्टर में आवश्यक प्रविष्टियाँ जिसमें आगंतुक का नाम , मिलने वाले व्यक्ति का नाम, मिलने का उद्देश्य, पता एवं फोन नंबर, तिथि और वापसी का समय आदि के प्रविष्टि और ग्राम सभा आयोजन कर उसके अनुमति के बाद उन्हें गाँव में प्रवेश की अनुमति प्रदान की जाती है. यदि ग्राम सभा आगंतुकों के उद्देश्य से संतुष्ट नहीं हो पाता है तो उन्हें अनुमति नहीं भी दी जा सकती है. इस दायरे में सरकारी कर्मचारी भी सम्मिलित हैं.

ऐसा क्यों – पूर्व में घटित घटनाओं के आधार पर यह देखा गया है की कुछ गैर आदिवासी और बाहरी लोग बगैर अनुमति के गाँव में प्रवेश कर जाते हैं और कुछ अप्रिय घटनाओं को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं. ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति पर प्रतिबन्ध लगाने के उद्देश्य से यह व्यवस्था लागू की गयी है.

पत्थलगड़ी किये जाने के प्रमुख कारण –

(1) संविधान के प्रावधानों की जानकारी देना

(2) 5 वीं अनुसूची के अधिकारों को उल्लेखित करना

(3) ग्रामसभा की रुढ़ी एवं परंपरा की बातों को लिखना

(4) पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था की वकालत एवं उनको उजागर करना.

पत्थलगड़ी किये जाने के तात्कालिक कारण –

(1) 15 सितम्बर 2016 को सी एन टी और एस पी टी एक्ट में संशोधन के खिलाफ रांची में आयोजित विरोध प्रदर्शन में सम्मिलित होने के लिए जाने के क्रम में सायको के पास पुलिस शांतिपूर्ण तरीके से जा रहे लोगों को रोका और गोली चलाकर हत्या कर दी और कई लोग इस गोली चालन में घायल भी हुए . इस घटना के बाद पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारीयों को रोकने का काम पत्थलगड़ी द्वारा शुरू हुआ .

(2) मोमेंटम झारखण्ड कार्यक्रम के दौरान पूरे झारखण्ड में बीजेपी सरकार के द्वारा गैर मजरुआ जमीन को चिन्हित कर लाखों एकड़ जमीन को भूमि बैंक में डाल दिया गया .

(3) इस भूमि बैंक में सैकड़ों सरना, ससनदिरी, खूंटकट्टी की जमीन को भी भूमि बैंक में डाल दिया गया.

(4) विलेज नोट में प्रदत्त चंदा की राशि को मनमाने तरीके से बढ़ा दिया गया है.

(5) ऑनलाइन चंदा जमा करने पर , उससे निकलने वाली रसीद में जमीन का रकबा कम दिखाया जा रहा है .

(6) पेसा कानून 1996 की नियमावली झारखण्ड सरकार द्वारा आजतक नहीं बनाई गयी है, और इसके ऊपर झारखण्ड पंचायती राज अधिनियम 2001 के प्रावधानों को बाध्यकारी कर दिया गया है जिसमें रुढ़ी एवं प्रथा को मान्यता नहीं प्रदान की गयी है जो स्वशासन व्यवस्था लागू करने की दिशा में एक रोड़ा है .

(7) वनाधिकार कानून 2006 बनाकर इनके वनों पर अधिकार को कम कर दिया गया है.

(8) एक दो वर्ष पहले इस इलाके में स्वर्ण भण्डार का पता चला है. लोगों को आशंका है उन्हें अपनी जमीन से बेदखल होना पड़ेगा .

(9) झारखण्ड के राज्यपाल और आदिवासी सलाहकार परिषद् ने किसी भी आदिवासी इलाकों में अपने अधिकारों एवं दायित्वों का निर्वहन नहीं किया है .

(10) आज तक सामान्य क्षेत्रों के नियम और कानून ही अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किये जाते रहे हैं.

अन्य कारण –

(1) सभी ग्रामीण योजनाओं में भ्रष्टाचार

(2) योजनाओं का अपूर्ण रह जाना

(3) पीने के पानी की अभी तक व्यवस्था नहीं

(4) पंहुच मार्ग का मुख्य मार्ग से संपर्क नहीं

(5) इन गांवों में अभी तक बिजली की पंहुच नहीं

(6) स्कूलों में फुल यूनिट शिक्षकों का अभाव जिसके कारण गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव .

(7) उप स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर , नर्स और जीवन रक्षक दवाओं का अभाव .

(8) आदिवासी विकास के लिए आवंटित राशियों का सामान्य मदों में उपयोग .

(9) स्थानीय सरकारी कार्यालयों में बाहरी एवं गैर आदिवासियों का दबदबा .

अफीम की खेती – भंडरा कुदाटोली और जिकीलता के लोगों ने बातचीत के क्रम में बताया की उनके गांव में अफीम की खेती नहीं की गयी है. दूसरे गांव के बारे हम नहीं बता सकते हैं . अगर किसी गाँव में अफीम की खेती की गयी हो तो उसके लिए स्थानीय प्रशासन , पुलिस थाना , स्थानीय विधायक और सांसद और जिलाधिकारी जिम्मेवार हैं .

सिफारिश –

(1) स्थानीय पारंपरिक ग्रामसभाओं एवं प्रशासनिक उच्च अधिकारीयों के बीच समय समय पर जनसंवाद

(2) स्थानीय भाषा जानने वाले अधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों, थाना प्रभारियों, शिक्षकों का पदस्थापन

(3) पांचवी अनुसूची का अनुपालन

(4) पारंपरिक स्वशासी व्यवस्था का अनुपालन

(5) पेसा कानून की नियमावली जल्द से जल्द बनाई जाए

(6) भू संरक्षण व वन कानूनों का ईमानदारीपूर्वक का पालन करना

(7) भूमि बैंक में समिल्लित सभी सामुदायिक जमीन ( गैर मजरुआ जमीन) का निरस्तीकरण .

(8) पत्थलगड़ी मामले में जेल गए सभी लोगों की बेशर्त रिहाई और झूठे मुक़दमे की वापसी .

(9) अफीम की खेती कराने वाले दलालों की पहचान एवं कार्रवाई .

(10) आदिवासियों के विकास के लिए मिलने वाले बजट की राशि का ग्रामसभा के खातों में हस्तांतरण .

(11) ग्रामसभाओं द्वारा निर्मित ग्राम विकास योजना का अनुपालन किया जाए .

(12) वर्तमान सरकार द्वारा निर्मित आदिवासी ग्राम विकास समिति को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए.

(13) आदिवासी इलाके में किये गए सभी एम ओ यू रद्द किये जाएँ.