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अंक 214 : 26 मार्च, 2023
नजरिया: कभी-कभी डूबते लोकतंत्र की भी चिंता कर लेनी चाहिए
हमारा आदिवासी-मूलवासी समाज दिनों दिन राजनीतिक रूप से प्रबुद्ध हो रहा है. अपने हितों को पहचान रहा है. उसके लिए संघर्षरत भी है, लेकिन नितांत निजी हितों से इतर भी देश दुनियां में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे जानना-समझना जरूरी है और उन मुद्दों के लिए लड़ना भी.
मुद्दा: कार्य स्थल पर महिलाओं का उत्पीड़न
इन कामकाजी स्त्रियों को कार्य स्थल पर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. मालिकों, बॉस या सहकर्मी द्वारा किया जाने वाला अभद्र (अश्लील ) व्यवहार एक बड़ी समस्या है.
मुद्दा: दुनिया की 70 फीसदी आबादी तानाशाही झेल रही है
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के राजनीतिक विभाग का लोकतंत्र पर शोध के नतीजों के अनुसार दुनिया की सत्तर प्रतिशत आबादी तानाशाही में रहती है. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लोकतंत्र की स्थिति निराशाजनक है. अब लोकतंत्र 1989 के स्तर पर वापस आ गया है.
समाज: लोकतंत्र और पूंजीबाद में कौन जनक, कौन संतान!
पिछले आठ साल में सवाल ही बदल गया है. अब मुख्य सवाल यह है कि कौन किसका जनक है, और कौन किसकी सन्तान है? देश में चालू ‘बाजार की राजनीति’ और ‘राजनीति के बाजार’ की पक्की दोस्ती का मैसेज एक ही है कि लोकतंत्र का जनक पूंजीवाद था, है और रहेगा.
संस्कृति: तीन वर्ष के अंतराल के बाद निकले जुलूस के साथ सरहुल संपन्न
24 मार्च को आदिवासियों ने प्राकृतिक पर्व सरहुल धूमधाम से मनाया. पर्व की शुरुआत परम्परागत पूजा पद्धति से हुई. सुबह सरना स्थान में पाहन द्वारा पूजा हुआ.
रपट: लाकतंत्र को बचाने के लिए
26 मार्च 2023 को अल्बर्ट एक्का चैक पर एपवा, आइसा, आदिवासी संघर्ष मोर्चा, फादर स्टैंड स्वामी न्याय मोर्चा, इंसाफ मंच, एआईपीएफ भाकपा माले सहित कई जन संगठनों और बुद्धिजीवियों ने लोकतंत्र पर बढ़ते हमले और राहुल गांधी की सदस्यता खत्म किए जाने के खिलाफ प्रतिरोध मार्च किया.
अंक 213 : 13 मार्च, 2023
नजरिया: आदिवासी और गैर आदिवासी समाज-संस्कृति के फर्क को समझना जरूरी
रंग, रूप और भाषा के आधर पर एक नस्ल के लोगों की पहचान और दूसरे से उसके फर्क को रेखांकित करने की कोशिश होती रही है, लेकिन जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण के अंतर को जब तक नहीं समझा जाये, तब तक आदिवासी और गैर-आदिवासी समाज के फर्क को हम नहीं समझ सकते.
संस्कृति: नये पत्ते, फूलों का जन्मोत्सव है सरहुल
सरहुल त्योहार आदिवासियों की एक प्रमुख त्योहार है आदिवासी समुदाय हर्षोल्लास से मनाता है लेकिन आदिवासियों के विभिन्न समुदायों का सरहुल मनाने का समय और तरीका अलग-अलग होता है.
समाज: राम-राम-रामः मरा-मरा-मरा
चुनाव-युद्ध का मौसम आ गया. लोकतंत्र का पारा गरम हो उठा. प्रभु मुखर हैं! वही किंग, वही किंगमेकर. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आर्मी खम ठोंक वोटरों के बीच दहाड़ने लगी - "पोजीशन भी प्रभु, अपोजीशन भी प्रभु. सत्तापक्ष भी वही, विपक्ष भी वही. प्रभु ने अपना ‘दुश्मन नम्बर वन’ फिक्स कर लिया है..."
साहित्य: आदिवासी संसार और गैर आदिवासी लेखक
आदिवासी लेखक-लेखिकाओं के अलावा भी कई नाम हैं, जो आदिवासी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और आदिवासी समाज के लोक गीतों और कविताओं को अपने साहित्य में सम्मिलित कर रहें है. इन सभी का मानना हैं कि गैर-आदिवासियों को भी समृद्ध आदिवासी ज्ञान और आदिवासी दर्शन के बारे में जानना चाहिए.
मुद्दा: विवाद की साजिश से पड़े तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों का हाल
भारत जैसे विशाल देश में, दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करना मजदूरों के लिए हमेशा से सहज बात रही है। नब्बे के दशक में भौगोलीकरण तथा आर्थिक क्षेत्र में हुए परिवर्तनों ने प्रवासी मजदूरों के आवागमन में तेजो ही लाई है।