कोई दस साल पुरानी इस घटना को आज याद करने का निहितार्थ समझना कठिन नहीं होना चाहिए.

वर्ष 2015 में म्यांमार दौरे के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम के नायक आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की रंगून स्थित मजार पर गये थे, फूल चढ़ा कर श्रद्धांजलि दी थी. तब भी मीडिया में चर्चा हुई थी, कथित तौर पर मुगलों के इतिहास को मिटाने वाली सरकार में प्रधानमंत्री द्वारा किसी मुगल बादशाह की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देना बहुतों को चैंकाने वाला लगा था. सामने आयी तस्वीरों में पीएम मोदी को मजार पर इत्र छिड़कते और फूल चढ़ाते देखा गया था. इससे सवाल उठने लगे थे कि क्या ये वही मोदी हैं जिनके प्रधानमंत्री रहते भाजपा शासित राज्य सरकारें किताबों से मुगलों के इतिहास को गायब कर रही हैं या उसे बदल रही हैं? मोदी जी के ही शासन काल में दिल्ली के ‘औरंगजेब रोड’ का नाम भी बदला गया. सर्वविदित है कि 1857 में हुई आजादी की पहली लड़ाई की अगुवाई बहादुर शाह जफर ने की थी. फिर ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस संघर्ष को क्रूरतापूर्वक कुचल दिया, मुगल बादशाह जफर को बंदी बना कर 1858 में बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया था. सात नवंबर 1862 में उनका निधन हो गया. बाद में उनकी मजार बना दी गयी और लोगों ने उन्हें संत की उपाधि दी.

यह भी याद कर लें कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय सुभाष बोस जब ‘आजाद हिंद फौज’ के साथ रंगून में ब्रिटिश इंडिया के खिलाफ युद्ध छेड़ने की तैयारी कर रहे थे, तो वह भी जफर की समाधि पर गये थे. भारत के अंतिम सम्राट (दिवंगत) से आजादी की लड़ाई में जीत के लिए आशीर्वाद मांगा था.

अभी प्रोपगंडा फिल्म ‘छावा’ रिलीज होने के बाद या उसी बहाने औरंगजेब और उसकी कब्र को लेकर किये जा रहे हंगामे के बीच देश को याद दिलाना जरूरी है कि महज दस साल पहले खुद नरेंद्र मोदी ने उसी औरंगजेब के वंशज जफर की कब्र पर फूल चढ़ाये थे और देश की समृद्धि के लिए दुआ मांगी थी. आश्चर्य कि अभी हो रहे हंगामे पर भी मोदी जी ने खामोशी ओढ़ रखी है! वैसे जरूरी नहीं कि कोई बहादुर शाह जफर का सम्मान करता है, तो औरंगजेब का भी सम्मान करे. मगर जब ‘बाबर की औलादों’ और ‘औरंगजेब की औलादों’ जैसे टर्म का इस्तेमाल किया जाता है, तब तो जफर भी उस दायरे में आ जाते हैं. औरंगजेब की कब्र पर बुलडोजर चलाने (हालांकि वहां ऐसा कोई ‘ढांचा’ भी नहीं है) की बात करने वालों को बताना चाहिए कि उस बहादुर शाह जफर के बारे में उनकी क्या राय है, जिनकी कब्र या मजार पर मोदी जी फूल चढ़ा चुके हैं?