2 फरवरी 2001 को तपकारा गोलीकांड में शहीद हुए कोइलकारो जनसंगठन के शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि. 1967 के दशक से अपने पूर्वजों द्वारा मिली विरासत जल-जंगल-जमीन सहित भाषा-संस्कृति की रक्षा के लिए संघर्षरत कोइर्लकारो जनसंगठन ने नारा दिया था- ‘जान देगें लेकिन अपने पूर्वजों का जमीन, जंगल नहीं देगें. झारखंड राज्य पूर्नगठन 15 नवंबर 2000 को हुआ. राज्य बनने के महज तीन माह के बाद 2 फरवरी 2001 को तपकारा में कोईलकारो जनसंगठन पर पुलिस ने गोली चलायी. इस गोलीकांड में 8 साथियों की मौत हो गयी. 35 से ज्यादा जनसंगठन के साथी घायल हो गये. कोईलकारो जनसंगठन जाति-धर्म और राजनीति से उपर उठकर आदिवासी-मूलवासी समुदाय के समूहिक शक्ति की नींव पर संघर्ष की दिशा तय की थी. 710 मेगावाट का बिजली पैदा करने के लिए कोयल और कारो नदी का बांध कर हाईडल पावर प्लांट बनाने का केंन्द्र सरकार की योजना थी. बांध बन जाने से गुमला जिला, वर्तमान खूंटी जिला ओर प0सिंहभूम के 256 गांव डूब क्षेत्र में जा जाता. ढाई लाख लोगा विस्थापित होते. 55 हजार एकड खेती की जमीन पानी में जलमग्न हो जाता. 27 हाजार हेक्टेयर जंगल भी डूब जाता. हजारों सरना, ससनदीरी, मसना, अखडा जैसे धार्मिक स्थल भी जलमग्न हो जाते.
जिस कारो नदी के कलकल करते बहती जीवंत धारा को किसी कीमत मे रूकने नही ंदेने का संल्कप के साथ हर वर्ष 2 फरवरी को शहीदों की याद में तपकारा शहीदस्थल में एकित्रत होकर संल्कप को दुहराते हैं, वहीं दूसरी ओर 2015-16 में तत्कालीन राज्य सरकार ने इस इलाके में बहने वाली छोटे नदी-नालों और कारो नदी जो कोचा मौजा, गुटुहातु मौजा, डेरांग मौजा, लोहाजीमी मौजा और फटका मौजा से हो कर बह रही है, का 448.83 एकड़ जमीन को चिन्हित कर भूमिं बैंक में शामिल कर लिया है. इसके आलावे परती पहाड, परती पत्थर, टोंगरी, को अलग से सैकडो एकड भूमि चिन्हित कर भूमि बैंक में शामिल किया गया है. इसके साथ ही हजारों एकड़ जंगल के साथ आदिवासी समुदाय के दर्जनों धर्मिक स्थल सरना, ससनदीरी, हगडगडी, मसना, अखडा, जतराटांड आदि को भी भूमि बैंक में शामिल कर लिया गया है. तोरपा अंचल अंतर्गत गैर मजरूआ आम, खास और जंगल-झाडी भूमि में से 2287 चकों को चिन्हित किया गया गया है जिसका कुल रकबा-16104.89 एकड़ है. रनियां अंचल अंतर्गत तीनों किस्म की भूमि में 14,383.99 एकड़ जमीन भूमि बैंक में शामिल किया गया है. ये आंकडें खूंटी जिला के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग का है. सर्व विदित है कि भूमि बैंक में शामिल जमीन का उपयोग सरकार किसी भी उद्वेश्य के लिए कर सकती है, जो आदिवासी समुदाय के हक-अधिकार के खिलाफ है.
2 फरवरी 2001 को जो शहीद हुए हैं इनमें 7 आदिवासी समुदाय से हैं और एक अल्पसंख्यक-मुस्लिम समुदाय से हैं. इन शहीदों में बण्डआ जयपुर का समीर डहंगा मात्र 14 वर्ष का था जो 5वीं क्लास में पढ रहा था. सुदंर कन्डुलना 18वर्ष जो बनाय के बोखडें कन्डुलना का बेटा था और खानदान में मैट्रिक तक पढ़ने वाला पहला चिराग था. गोंडरा के सोमा जोसेफ गुडिया 45 वर्ष और गोंडरा के ही लूकस गुडिया करीब 40 वर्ष के थे. तपकारा बाजार टांड निवासी जमाल खां करीब 50 वर्ष भी इस गोलीकांड में शहीद हुए. जराकेल का प्रभूसहाय कन्डुलना 40 वर्ष, चमपाबाहा के 65 वर्षीय बोदा पहान और डेरांग के सुरसेन गुडिया 17वर्ष, जो 9वीं क्लास में पढ रहा था. सभी शहीदों ने अपने पीछे मां-बाप, भाई-बहना, बच्चे, पत्नि सहित पूरा कुटुंब छोड कर चले गये. इनके शहादत के 24 वर्ष पूरे हो गये. कोइलकारो जनसंगठन का मानना है कि हमारा भाषा-संस्कृति और प्रकृतिक धरोहर का किसी मुआवजा से भरा नहीं जा सकता है.
1976-78 से आंदोलन के कर्मठ अगुवे स्व0 मोजेश गुडिया, पडहाराजा स्व0 राजा पौलुस गुडिया, भाई सदर कन्डुलना, भाई विजय गुडिया जैसे अनेकों अगुवे, जो जीवन भर आंदोलन के साथ खडे रहे जो आज नहीं रहे, इन्हें भी विनम्र श्रधांजलि. निश्चित तौर पर कोईलकारो पनबिजली परियोजना से होने वाले विस्थापन को तो रोका गया है, लेकिन भूमि बैंक जैसे असंवैधानिक-नीति अपना कर किये जाने वाले विस्थापन, जो 5वीं अनुसूचि के प्रावधान अधिकार, पेसा कानून, सीएनटी एक्ट, खतियान पार्ट टू में प्रावधान- सभी अधिकारों को दर किनार करके बनाया गया है, इसे भारी मात्रा में जंगल-जमीन पर बाहरी अतिक्रमण बढेगा. जंगल-जमीन की लूट बढेगी, गांव-घर विस्थापित होगा. स्थानीय आदिवासी-मूलवासी क्षेत्र का डेमाग्राफी बदलेगा. इस पर चिंता किये बिना शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं दी सकती है.