एक इतिहास प्रसंगः भारत की कूटनीतिक सफलता की दास्तान, जो भारत-अमेरिका के बीच मौजूदा रिश्तों के मद्देनजर अचानक प्रासंगिक हो गया है. निःसंदेह इंदिरा गांधी की तमाम कमियों के बावजूद उनकी दृढ़ता उन्हें औरों से अलग करती है.
1968 में इंदिरा गांधी ने आईबी के रामेश्वर नाथ काव को एक प्रभार दिया कि वह एक गुप्तचर संस्था बनाएँ जो आइएसआइ के टक्कर का हो. उस वक्त तक पाकिस्तान की आइएसआइ दो दशक पुरानी हो गयी थी, और काफी संगठित थी. भारत इस मामले में कमजोर था. आइएसआइ में सेना के लोग अधिक थे, जबकि भारत का ‘रॉ’ सड़क से उठा कर बनाये जा रहे जासूसों और एजेंटों की मंडली थी. उसकी संरचना और काम का ढंग इजरायल के ‘मोस्साद’ से प्रेरित था.
काव ने अगले ही वर्ष एक रिपोर्ट बनायी, जिसमें उन्होंने उत्तर-पूर्व समस्या के दो हल बताये- पहला, पूर्वी पाकिस्तान को तोड़ना और दूसरा सिक्किम को भारत में जोड़ना. यानी, नीचे से जमीन खींच कर, ऊपर ढक्कन लगा देना. तरीका फूल-प्रूफ था, मगर यह होता कैसे? मुझे नहीं लगता कि सिक्किम को जोडने के मास्टर-स्ट्रोक को यहाँ सम्मिलित कर पाऊँगा, लेकिन यह स्पष्ट हो गया होगा कि बांग्लादेश को तोड़ना एक लंबी योजना (साजिश) का परिणाम थी. पाकिस्तान के लोग अगर आज भी भारत को दोषी मानते हैं, तो वे गलत नहीं करते. इसका खामियाजा बांग्लादेशी हिंदुओं को भुगतना पड़ा. मुक्ति- वाहिनी में जहां मुसलमानों ने बढ़- चढ़ कर प्रशिक्षण लिया, हिंदू भारत में आकर सेट ही हो गये. कुछ मेजर चित्तरंजन दत्त जैसे लोग जरूर थे, जिन्होंने आजादी के समय ही पाकिस्तानी सेना में रहना पसंद किया, और बाद में गुरिल्ला सेना के हिस्सा बने.
रामेश्वर नाथ काव ने गुरिल्लाओं और जासूसों द्वारा इतना रास्ता साफ कर दिया था, कि भारतीय सेना के लिए यह सबसे आसान और सबसे लाभदायक विजय हो. जासूसों की यह नियति होती ही है कि युद्ध- विजय में उनकी तस्वीरें नहीं लगती, न नाम लिया जाता है, जबकि उनके बिना युद्ध जीती ही नहीं जा सकती.
जब भारत-पाकिस्तान युद्ध का आगाज हुआ, तो निक्सन ने जोर देकर सुरक्षा परिषद की मीटिंग बुलायी. उनका कहना था कि युद्ध अभी के अभी रोक दी जाये. ग्यारह सदस्यों ने पाकिस्तान का साथ दिया. सिर्फ सोवियत और पोलैंड ने भारत का. इंग्लैंड और फ्रांस ने वोट डालने से मना कर दिया. सोवियत के वीटो की वजह से युद्ध जारी रहा.
6 दिसंबर को सीआइए को एक भारतीय सूत्र से जानकारी मिली कि इंदिरा गांधी के तीन लक्ष्य हैं- बांग्लादेश की आजादी, आजाद कश्मीर पर कब्जा, और पाकिस्तानी सेना को भारी हानि पहुंचाना. यह सुनते ही निक्सन उछल पड़े.
उन्होंने टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा, ‘अब क्या भारत और सोवियत मिल कर पूरी दुनिया को धमकायेंगे? हमें, अमेरिका को धमकायेंगे?’
किसिंगर ने कहा, ‘हमारे मित्र देश पाकिस्तान का ये भारतीय और रूसी मिल कर बलात्कार कर रहे हैं.’
‘इसका मतलब जानते हो? चीन और पाकिस्तान, दोनों हमारे हाथ से जायेंगे. हमें जल्द कुछ करना होगा.’
अमेरिका ने 7 दिसंबर को पुनः एक मैराथन संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन बुलाया. भारत ने अपनी लंबी भावरंजित दलील रखी, और यूं लगा कि दुनिया भारत का साथ देगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. नेहरू के गुटनिरपेक्ष दोस्त इंडोनेशिया, मिश्र, और युगोस्लाविया तक ने साथ नहीं दिया. 104 देश भारत के विरुद्ध थे, और मात्र सोवियत ब्लॉक के नौ देशों और भूटान ने ही भारत का साथ दिया. सोवियत ब्लॉक में भी रोमानिया ने साथ नहीं दिया.
अब तक भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में आगे बढ़नी शुरू हो चुकी थी. भारत का लक्ष्य ढाका पहुँचना नहीं था, बल्कि पाकिस्तान के ‘सप्लाइ-चेन’ को बंद करना था. खास कर चित्तगोंग के पोत पर कब्जा.
निक्सन ने कहा- ‘अभी सोवियत को चिट्ठी भेजो कि वह इस युद्ध के बाद हमसे सभी संबंध टूटा हुआ मानें. इसे हमारे बीच एक ‘वाटरशेड’ बिंदु समझें.’
रूसियों ने तुरंत संदेश भेजा- ‘वाटरशेड’ का अर्थ क्या होता है, स्पष्ट करें. क्या एक मामूली युद्ध की इतनी अहमियत हो गयी?’ अगले दिन भारत की सेना मेघना नदी के किनारे पहुंच चुकी थी. अब ढाका उनके सामने था, मगर वहां पहुंचने के ऑर्डर नहीं थे. भागती हुई पाकिस्तानी सेना ने नदी पर बना पुल उड़ा दिया था.
निक्सन ने किसिंगर से कहा- ‘चीन से कहो आगे बढ़े. वे बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं?’
‘उन्होंने कहा है कि ठंड बहुत है. नहीं बढ़ सकते.’
‘ठंड? ये बेवकूफ हमसे लड़ने कोरिया युद्ध में तो यालू नदी पार कर आ गये थे. अब ठंड लग रही है?’
‘इंदिरा गांधी का एक और ‘लुक’ आज मिला है.’
‘वह क्या?’
‘उन्होंने कहा है कि अगर चीन आगे बढ़ा तो सोवियत उसका हाथ मोड़ देगा.’
निक्सन- ‘वह कुतिया (इंदिरा गांधी के लिए). उसकी यह औकात? अभी हमारे जहाजों को आदेश दो कि बंगाल की खाड़ी की तरफ कूच करें.’ ‘ठीक है. चीन से एक और संदेश आया है. लिखा है कि दर्शन कहता है, जब पूर्व से रोशनी नहीं आती, पक्षिम से जरूर आती है.’ ‘यहां युद्ध छिड़ा है, और उन्हें दर्शन सूझ रहा है?’
निक्सन-किसिंजर संवाद मैंने किसी चुटकुलों की किताब में नहीं पढ़े. ये वास्तविक संवाद पर आधारित हैं, जो ‘ब्लड टेलीग्राम’ पुस्तक में अंकित है. चीन का दर्शन भी ठीक था. रोशनी उस वक्त पूर्व से आ रही थी.
आखिर ढाका में वह शाम आ ही गयी, जब जनरल नियाजी ने अपनी कमर से एक बटन खोल कर रिवाल्वर निकाली और जगजीत सिंह अरोड़ा के हाथ में दी. 93000 फौजियों के साथ पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया और ब्रिगेडियर सिद्दीकी ने कहा, ‘हार और जीत खेल का हिस्सा है.
हमें अपनी हार मानने में कोई गुरेज नहीं. अच्छी बात यह है कि यह मुल्क भी यही चाहता है, यहां की अवाम भी यही चाहती है.’
1906 में इसी दिसंबर के महीने में यहीं ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी, जिसने पाकिस्तान की नींव रखी. बंगाल में मुस्लिम लीग ताकतवर रही. आज वही बंगाल चाहता था कि पाकिस्तान में ही न रहे. यह एक अकाट्य तथ्य है, जो मोहम्मद अली जिन्ना के पूरे पाकिस्तान मॉडल पर सवाल खड़ा करता है. यह युद्ध पाकिस्तान न सिर्फ बुझे मन से लड़ रहा था, बल्कि युद्ध के पहले हफ्ते में ही समझौते के मसौदे तैयार होने लगे थे.
जुल्फिकार अली भुट्टो ने महीनों पहले एक मॉडल दिया था, कि शेख मुजीब पूर्वी पाकिस्तान संभालें, वह पश्चिम संभालेंगे. ‘जंग’ अखबार में हेडलाइन छपी थी- ‘उधर तुम, इधर हम’. किसिंजर ने भी निक्सन को यही कहा कि इस युद्ध का जो भी परिणाम हो, यह विभाजन तो होकर रहेगा.
निक्सन ने कहा, ‘फिर हम क्यों पागलों की तरह बीच में पड़े हैं? कितने लोग ख्वाह-म-ख्वाह मारे गये.’
किसिंजर ने कहा, ‘और विकल्प क्या था? मानवाधिकार अपनी जगह है और विश्व राजनीति अपनी जगह. यूं भी हमने तो किसी को नहीं मारा.’
अमेरिका ने खून नहीं बहाये, पाकिस्तान ने बहाये. मगर क्यों? मैं दुबारा यह बात दोहराता हूँ कि कोई भी सेना कभी युद्ध नहीं चाहती, राजनीति ही ऐसा चाहती है.
पंद्रह दिसंबर को जब भारतीय सेना के पैराशूट ढाका की सीमा पर उतर रहे थे, जुल्फिकार अली भुट्टो न्यूयार्क के होटल में आराम फरमा रहे थे. उनको वहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ में बात-चीत करने भेजा गया था. पोलैंड ने एक प्रस्ताव रखा था कि दोनों देशों की सेनाएं अपने-अपने घर लौट जायें, शेख मुजीब को रिहा कर पूर्वी पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल की जाए. इस प्रस्ताव को सोवियत संघ भी समर्थन दे रहा था.
याह्या खान ने भुट्टो को फोन किया- ‘आप यह पोलैंड वाली पेशकश मान लें. भुट्टो ने कहा- ‘आपकी आवाज नहीं आ रही. हेलो हेलो..’ होटल के ऑपरेटर ने कहा- ‘मैं कनेक्ट कर रहा हूँ? मुझे तो आवाज ठीक आ रही थी. कुछ मामूली समस्या आ गयी होगी.’ भुट्टो ने उखड़ कर कहा, ‘शट अप.’
उसके बाद वह सम्मेलन में अपनी अठारह वर्ष की बेटी बेनजीर के साथ गये. वहां उन्होंने कहा, ‘आप सारे देश मिल कर हमें धमकाना चाहते हैं. हम क्या चूहे हैं जो हार मान लें? हमारा मुल्क किसी से नहीं डरता. हो जाने दे अलग, जो अलग होना चाहते हैं. हम एक नया और ताकतवर पाकिस्तान खड़ा करेंगे.’
अपनी छाती ठोकते उन्होंने कहा, ‘यह आदमी कोई चूहा नहीं है. मैंने जेल काटी है, मुझ पर हमले हुए हैं, मगर मैं आपके सामने जिंदा हूं. मैं आप सबको खुली चुनौती देता हूं. मैं ऐसा पाकिस्तान बनाने जा रहा हूँ, जिसे आप में से कोई छू भी नहीं सकता.’ उसके बाद एक अकल्पनीय घटना हुई. भुट्टो ने खड़े होकर सबके सामने पोलैंड के प्रस्ताव को फाड़ते हुए कहा, ‘भाड़ में जायें आप सब. भाड़ में जाये सुरक्षा परिषद. मैं संयुक्त राष्ट्र छोड़ कर जा रहा हूं.’
भुट्टो के इस कागज फाड़ने ने भारत का काम आसान कर दिया. कोई सीजफायर नहीं हुआ. कोई विदेशी हस्तक्षेप नहीं हुआ. भारतीय सेना बड़े आराम से ढाका की सड़कों पर विजय-यात्रा कर रही थी. हारे हुए फौजी राष्ट्राध्यक्ष याह्या खान ने शर्म से अपनी गद्दी छोड दी और भुट्टो को पाकिस्तान मिल गया. वह शेख मुजीब को पाकिस्तान जेल से रिहा कर हवाई अड्डे पर छोड़ने गये. भारत में हजारों की भीड़ उस कड़ाके की ठंड में उनके स्वागत के लिए खड़ी थी. इंदिरा गांधी उन्हें हवाई अड्डे से राष्ट्रपति भवन की ओर ले गयीं. कुछ ही देर में भीड़ के सामने बांग्लादेश और भारत के झंडे एक साथ फहराये गये. पहले बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार शोनार बांगला’ और फिर भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ गाया गया. दोनों ही गीत एक ही व्यक्ति रविंद्रनाथ ठाकुर ने लिखे थे, एक ही देश को ध्यान में रख कर, जो अब तीन हो गये थे.
इंदिरा, भुट्टो और मुजीब तीनों अपने देश के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में रहे. तीनों का खानदान पीढ़ी-दर-पीढ़ी सत्ता की गलियारों में रहा. तीनों की मृत्यु अप्राकृतिक हुई..