आदिवासी समाज कुछ दिनों से आंदोलित और हत्प्रभ है. उसे बार-बार बार अपने हक के लिए विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है. दिनों दिन स्थितियां बिगड़ते जा रही हैं. कई जगहों पर आदिवासियों को मारा पीटा जा रहा है. उसके साथ लगातार अन्याय हो रहा है और उल्टे यह कहा जा रहा है कि यह सब उनके पीने को लेकर होता है. क्या यह बात सच है? लेकिन शदियों से पर्व त्योहार मना रहे हैं. पूजा कर रहे हैं. पी भी रहे है. कभी ऐसी दिक्कतो का सामना नही करना पड़ा, फिर आज क्यों ये अड़चनंे आ रही है? यह सोचने की बात है. हाल के दिनों में एक नहीं, चार-चार घटनाएं हुई सरहुल पर्व के आस पास. जैसे-कुछ दिनों से सिरम टोली ब्रिज को लेकर आदिवासी विरोध कर रहे हैं. पूरे झारखंड में बड़ी-बड़ी सड़कें हंै. अगर एक जगह छोटा रास्ता बन जायेगा तो इसमें क्या हर्ज है? आदिवासी लोग कभी धर्म को लेकर किसी से लड़ते-झगड़ते नहीं. फिर आज हमारी अपनी सरकार ऐसा क्यों कर रही है? जब उत्तर प्रदेश में 70 एकड़ जमीन में राम मंदिर बना सकते हैं गरीबों को उजाड़ कर, तो उसके मुकाबले तो सिरम टोली बहुत छोटी सी जगह है. यहाँ की सरकार अब बस धर्म के नाम पर सबको लड़ाने की साजिश रच रही है. साल में एक बार सरहुल आता है, उस दिन भी आदिवासियों का पवित्र स्थान सिरम टोली में बहस बाजी होती रही.
उसके बाद सरहुल के नाम हातमा बस्ती में सरहुल पर्व के बाद मिलन समारोह मनाया जाता है. उसमें भी अड़चन आने लगी. हातमा में कोई जज का घर है. उन्होंने शिकायत कर दिया ध्वनि प्रदूषण को लेकर और ऊपर से ऑर्डर आया तो तुरंत कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया. आखिर क्यों? आदिवासी समाज के लोग गाना बजाना नाचना ही तो करते हैं. कितना खर्च कर आदिवासियों ने कार्यक्रम रखा था. सारा कार्यक्रम रद्द कर दिया गया. क्या बीच का कोई रास्ता नहीं निकाला जा सकता था? नवरात्रि में जब 10 दिनों तक गाना बजाया किया जाता है मंदिरों में, भजन होता हैं, गैर-आदिवासी का पर्व में कोई अड़चने नही आता. कोई ध्वनि प्रदूषण नही होता. ये बस आदिवासियों के लिए होता है. आखिरकार क्यों? इसमें भी उसे यही कहा जायेगा कि पीते है बोल कर ऐसा हो रहा है. मुद्दा तो यह है कि लोग आदिवासियों का अस्तित्व ही मिटा देना चाहते हैं.
एक और घटना. पिठौरिया में सरहुल के दिन मुसलमानों ने आदिवासियों पर हमला किया. कई लोगों को चोटें आई. ईद का त्योहार उन्होंने आराम से मना लिए. आदिवासियों ने तो कहीं कोई हंगामा नहीं किया. लेकिन हर जगह आदिवासियों के साथ ही समस्या आती है. बिना कारण उन्होंने आदिवासियों पर हमला किया. उसको लेकर पिठौरिया के लोग विरोध कर रहे हैं. जिन लोगों ने भी हमला किया उन्हें जल्द से जल्द पकड़ा जाना चाहिए. पर यहाँ की कानून व्यवस्था इतनी बेकार है कि कोई काम सही से नही होता.
झारखंड में अब आदिवासी समाज जागरूक हो रहा हैं. नहीं भूलना चाहिए कि झारखंड आदिवासियों का है. जल, जंगल, जमीन पर उनका अधिकार है, तो फिर उन्हं हर जगह आज विरोध क्यों सहना पड़ रहा है? और यदि वे प्रतिकार करते हैं, अपने हक के लिए लड़ रहे हैं, विरोध कर रहे है तो उन्हें नशा करने वाले कह कर बदनाम किया जा रहा है. अबुआ सरकार के रहते यह सब हो रहा है. सरकार को लगता है कि बस मईया सम्मान योजना चला कर वे आदिवासी जनता का दिल जीत लेंगे. लेकिन हेमंत सरकार इस तरह के भ्रम में न रहे.