विनोद कुमार: सवाल राज्य की स्वायत्ता का है

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड सरकार के मंत्री रामेश्वर उरांव ने स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी की निंदा की है. हेमंत सोरेन ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि केंद्र सरकार गरीबो-वंचितों के पक्ष में आवाज उठाने वालों की आवाज बंद करना चाहती है. रामेश्वर उरांव ने स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. तो क्या माना जाये कि एनआईए ने स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के पहले राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत तक नहीं समझी?

क्या यह अजीब नहीं लगता कि स्टेन स्वामी माओवादी हैं या नहीं, इस बात की जानकारी न तो पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को थी, न बाबूलाल मरांडी को, न रघुवर दास को और न वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को. क्योंकि यदि वे एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्य थे तो उनके खिलाफ कार्रवाई राज्य सरकार को पहले ही करनी चाहिए थी. जाहिर है कि स्टेन स्वामी की वैसी छवि नहीं और न स्थानीय प्रशासन पुलिस ने उनकी गतिविधियों को ऐसा संदिग्ध माना.

अब एकबारगी उन्हें एक केंद्रीय जांच एजंसी द्वारा माओवादी करार देना इस बात की चुगली करता प्रतीत होता है कि भीमा कोरेगांव केस दरअसल वंचितों के पक्ष में उठी आवाजों को कुचलना मात्र है. इसका अर्थ राज्य सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण करना भी है. राजनीतिक रूप से झारखंड में पराजित केंद्रीय सत्ता और उससे जुड़ी पार्टी राज्य सरकार को यह संकेत दे रही है कि भले ही राज्य में हमारी सरकार नहीं, लेकिन हम जब चाहे तब रोजमर्रा के तुम्हारे कार्य में हस्तक्षेप कर सकते हैं.

इसके पूर्व भी केंद्र सरकार कई मामलों में राज्य सरकार की अवहेलना करती रही है. कोल खदानों के आवंटन में उनकी मनमानी के खिलाफ राज्य सरकार कोर्ट में गयी. इस मामले में भी राज्य सरकार को मजबूती से हस्तक्षेप करना चाहिए.



श्रीनिवास: स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी और एनआइए का अधिकार क्षेत्र

सॉरी, विनोद जी की भावना से सहमत होते हुए भी मैं उनके नतीजे से सहमत नहीं हूं. इसलिए उनके इस सवाल का कि ‘..तो क्या माना जाये कि एनआइए ने स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के पहले राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत तक नहीं समझी?’ मेरी जानकारी में और समझ से सहज जवाब यह है कि एनआइए को ऐसे मामलों में कार्रवाई करने के लिए और पहले राज्य सरकार को विश्वास में लेने की जरूरत नहीं होती. और यह राज्य की स्वायत्तता का मामला तो नहीं ही है.

एनआइए को देश की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा के खिलाफ साजिश कि जांच और ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है. कानूनन एनआइए या ऐसी किसी केंद्रीय एजेंसी को संदेह के आधार पर देश के किसी हिस्से में कार्रवाई करने का अधिकार है. इस कारवाई से निजात या राहत दिलाने का अधिकार सिर्फ अदालत को है. इनकम टैक्स, नारकोटिक्स, एडी व एक हद तक सीबीआई जैसी संस्थाओं को भी लगभग ऐसे अधिकार हैं.

मेरे ख्याल से अधिवक्ता मित्र अखिलेश (जमशेदपुर) इस पर बेहतर रोशनी डाल सकते हैं.

कोई शक नहीं कि एनआइए ने 80 वर्ष के बुजु और बीमार चल रहे स्टेन स्वामी को जिस तरह रात के समय, बिना जरूरी कागजात दिखाये गिरफ्तार किया, वह कानून का दुरुपयोग है. उन पर हिंसा फैलाने या, राष्ट्रद्रोह, प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में लिप्त होने का आरोप लगाना इस सरकार की अपने आलोचकों को परेशान करने की मुहिम का हिस्सा है. अदालत में इसे चुनौती देने के अलावा या साथ ही इसे राजनीतिक स्तर पर भी चुनौती देने की जरूरत है. लेकिन इसे केंद्र बनाम राज्य का मुद्दा मानना या बनाना सही नहीं है.

जैसे राज्य सरकार को बरखास्त करने का फैसला धारा 356 का दुरुप्रयोग हो सकता है, मगर केंद्र के इस अधिकार को या ऐसे हर फैसले को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता.

रात ही एक पत्रकार मित्र ने बताया कि ‘छत्तीसगढ़ सरकार की इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगी हुई है कि एनआइए कानून राज्यों के अधिकार का हरण करता है.’ मैं उक्त याचिका में निहित धारणा से सहमत भी हूं कि यह कानून केंद्र-राज्य संबंधों में उचित संतुलन और संघीय ढांचे के विरुद्ध है. लेकिन जब तक सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर अनुकूल फैसला नहीं देता, एनआइए के इस अधिकार की वैधता बनी रहेगी.



अखिलेश: क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम राज्य का मसला है केन्द्र का नहीं

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम राज्य का मसला है केन्द्र का नहीं। अगर आप याद करें तो केन्द्र को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 और इंडियन इनडिपेन्डेंस एक्ट 1947 के तहत केवल रक्षा, विदेश और दूरसंचार मामले ही इसके अधिकार क्षेत्र में आने थे।

इसके अलावे भी इसे ऐसे समझा जाय कि केन्द्र नाम की चीज का कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं है। यह तो जिसे हम कहते हैं in contemplation of law है। अब अगर केन्द्र को एक काल्पनिक भौगोलिक क्षेत्र मान लिया जाय तो राज्य इसके विरोध में खड़ा दिखेगा।

मतलब जैसे स्टैन स्वामी ने केन्द्र यानी देश की एकता और अखंडता पर आघात किया और झारखंड राज्य में छुप गये और केन्द्र की पुलिस आई और उन्हें गिरफ्तार किया। आप समझ सकते हैं इससे बेतुकी बात हो नहीं सकती है।

देश से राज्य अलग नहीं है बल्कि राज्यों के बगैर देश ही नहीं है। एक और बात है जिसे हम mala fide कहते हैं। एन आई ए और सी बी आई की पूरी कल्पना ही राज्यों के खिलाफ और उसके अधिकारों को केन्द्र द्वारा बलात हस्तगत करने और उसके गवर्नेंस के अधिकारों में छेड़छाड़ करने के लिए हुआ है।

दसकों पहले सीबीआई को गौहाटी उच्च न्यायालय गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर चुका है पर Supreme Shame of India ने आज तक इस पर सुनवाई नहीं की है। अंग्रेज बुड़बक थोड़ी थे। उनका हमारे बारे में पूरा assessment था कि हम क्या चीज हैं!