झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कुछ दिन पहले एक सभा में कहा था कि आज कल शराबबंदी के बारे में बोलना एक फैशन बन गया है. उनका यह कथन उन मुख्यमंत्रियों पर कटांक्ष करना था जिन्होंने अपने राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाई है या उन्हें यह नहीं मालूम की शराब व्यक्ति, समाज औश्र पूरे देश के लिए कितना घातक है.
झारखंड की ही राज्यपाल द्रौपदी मुरमू ने रांची अस्पताल के निरीक्षण के दौरान वहां भरती कई मरीजों से कहा कि शराब शरीर के लिए बहुत हानिकारक है. इसे पीना बंद करो. शराब छोड़ने पर ही स्वस्थ रह पाओगे. निरीक्षण के दौरान उन्हें अवश्य ही ऐसे मरीजों से भेंट हुई होगी, जो शराबजनित रोगों के ईलाज के लिए वहां भर्ती हुए होंगे. शराब के सेवन से कई तरह के जानलेवा रोग होते हैं. यह घर तथा पूरे समाज को खोखला कर देता है. सरकार हर साल शराब के दुकानों की नीलामी कर शराब के दुकानों की लाईसेंस देती है, क्योंकि सरकार को शराब बिक्री पर कर के रूप में भारी राजस्व की प्राप्ति होती है. लेकिन इसकी कखारी को जानने वाले लोग इसका विरोध करते हैं.
झारखंड के संबंध में यह तर्क दिया जाता है कि शराब पीना यहां के आदिवासी संस्कृति का अंग है. यह बात स्पष्ट है कि यहां के आदिवासी अपने विवाह, पर्व त्योहारों में हड़िया का सेवन करते हैं. अपने देवताओं को हड़िया समर्पित भी करते हैं. हड़िया तो उनका भोजन होता है जिसको पीकर वे स्वस्थ रहने का दावा करते हैं. यहां पर उस जहरीले शराब की बात नहीं हो रही है जिसे पीकर कई लोग सामूहिक मृत्यु का शिकार बनते हैं. इसलिए ऐसी बात नहीं है कि झारखंड में शराब पर पाबंदी नहीं लग सकती.
झारखंड के किसी भी पर्यटक स्थल पर चले जायें तो शराब की बोतले, पाउच चारो तरफ बिखरे पड़े मिलेंगे जो स्वस्थ भारत का नारा देने वालों का मुंह तो चिढाते ही हैं, साथ ही पर्यावरण का भी भारी नुकसान करते हैं. दलमा पहाड़ पर आने वाले पर्यटकों को शराब पीकर या साथ में शराब लाने से वहां के आदिवासी युवकों की एक स्वयंसेवी संस्था मना करती है. इस तरह वे दलमा पहाड़ के पर्यावरण को औश्र वहां के जानवरों को बचाने में अपना सहयोग दे रहे हैं.
शराब के बोतलों पर केवल यह लिख देने से कि यह स्वास्थ के लिए हानिकारक है, सरकार का दायित्व पूरा नहीं हो जाता.सरकार का यह कहना भी कि शराब के आदि लोगों को शराब नहीं मिलने पर कष्ट होता है औश्र कभी कभी उनकी जान भी चली जाती है. इसलिए पूर्ण शराबबंदी संभव नहीं. इस तर्क से सरकार अपना बचाव तो कर लेती है, लेकिन पैसे वालों की विलासिता औश्र गरीब की मजबूरी का केवल फायदा उठाती है. समय के साथ युवा पीढी इस आदत का शिकार बनती है और अंततोगत्वा इससे पूरा समाज बीमार बनता है. इसलिए मुख्यमंत्रीजी, शराब बंदी को फैशन का चीज न समझे और न इसका विरोध करना ही फैशन है.