सुकमा में हुए नक्सली हमलों में 26 जवान मारे गए.. पूरे देश से इस नक्सली हमले पर रोष के नजारे दिख रहे हैं.. मुझे भी इसका बहुत अफसोस है..
यह तो कहानी का पहला भाग है..
आपके घर में कोई #बलात्कारी घुस आए और गुस्से में आप उस बलात्कारी को मार डालें, तो पूरे समाज को बलात्कारी के मारे जाने का अफसोस होता होगा? समाज को आपसे कोई सहानुभूति नहीं होती होगी? ऐसा ही है ना??
कहानी का दूसरा भाग मैं दिखाती हूं..
#नक्सली की परिभाषा क्या है? नक्सली किसे कहते हैं?
यह मैं इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि #गृह मंत्री के द्वारा यह आदेश आया है कि जहां भी नक्सली दिखे उन्हें देखते ही मार डालो..
मानव अधिकार की किताब में इसकी परिभाषा,-
“यह स्वतंत्रता सेनानी हो सकते हैं, शहीद होते हैं, शक्तिशाली या जुर्म की के खिलाफ कमजोरों का आक्रमण होता है..”
#अब सरकार के अनुसार नक्सली कौन हैं??
हर एक जंगल में बसने वाला गरीब आदिवासी, जो पूंजीपतियों और सरकार के मिलीभगत और उसकी दमनकारी नीति के खिलाफ बोले, वही गरीब आदिवासी नक्सली है..
अंतर्राष्ट्रीय कानून की परंपरागत धारणा के अनुसार मानव अधिकारों का खास कर आदिवासियों का संरक्षण और उलंघन दोनों राज्यों द्वारा या सरकार द्वारा होता है.. सुरक्षा बलों के द्वारा मानव अधिकारों के हनन सामान्य सी बात हो गई है.. आतंकवाद से लड़ने के नाम पर पुलिस आर्मी, सेना द्वारा अपनी इच्छा अनुसार जांच-पड़ताल, खोजबीन ,गिरफ्तारियों ,बंदी बनाना ,यातना देना ही नहीं अपितु यहां तक कि हिरासत में शक के आधार पर दोषियों की हत्या भी कर दी जाती है.. ज्वलंत उदाहरण
एक शिक्षिका #सोनी सोरी को नक्सली होने के आरोप में #थर्ड डिग्री के नाम पर उनके गुप्तांगों में पत्थर भर दिया गया..
आतंकवाद से प्रभावित क्षेत्रों में बलात्कार ,हत्या ,यातनाएं ,गायब होना या करना ,हिरासत में मृत्यु होना इत्यादि बहुत ही सामान्य घटनाएं होती हैं जो प्राय देखने-सुनने में आती रहती हैं.. इससे भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय देशों में कलंकित हुई है..
#बस्तर नक्सल प्रभावित जिला क्यों कहलाता है इसके क्या कारण हो सकते हैं?
आदिवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र का घोषणा(UNDRIP) पत्र के अनुसार आदिवासियों को आत्मनिर्णय की मान्यता है.. भारतीय संविधान पूर्व आदिवासियों को एक्सक्लूडेड एरिया और पार्शियली एक्सक्लूडेड एरिया के नाम पर स्वशासन का अधिकार दिया गया था.. अंग्रेजों ने आदिवासियों के रीति-रिवाज, परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए प्रशासन और नियंत्रण की जिम्मेदारी उन्हें ही दे रखी थी.. संविधान में #पांचवी अनुसूची और #छठी अनुसूची के नाम पर #एक्सक्लूडेड एरिया और #पार्शियली एक्सक्लूडेड एरिया का ही प्रशासन और नियंत्रण का भाग संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुच्छेद 244(1) में और 244 (2) में डाला गया है..
आदिवासियों की रूढ़ियों, प्रथा और रीति रिवाज को कानून की मान्यता दी गई है 13 (3).. आदिवासियों के लिए उनका क्षेत्र वर्जित क्षेत्र है, जहां किसी बाहरी को आने की अनुमति नहीं है.. इससे उनके रीति-रिवाज और परंपराओं को ठेस पहुंचती है(अस्तित्व भी रीति रिवाज, से है)..अनुसूचित क्षेत्र में किसी बाहरी का बसना मना है..19(5,6)..
ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार पूंजीपतियों के साथ मिलकर उनके क्षेत्र में यानी वर्जित क्षेत्र (अनुसूचित क्षेत्र) में घुसकर जबरन विकास कर रही है.. उनके रीति रिवाज परंपराओं से छेड़छाड़ कर रही है, क्योंकि बस्तर का वह अनुसूचित क्षेत्र खनिज संपदाओं से भरपूर माना जाता है.. विकास के लिए सरकार अपनी मनमानी कर रही है.. जो भी इसके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे नक्सली बना देती है ..
नक्सली उन्मूलन के नाम पर पूंजीपतियों के लिए सरकार रास्ता बना रही है ,विरोध करने वाले गरीब आदिवासियों को नक्सली के नाम पर मार देने की, सेना द्वारा प्रताड़ित करने की और गरीब बच्चियों के साथ बलात्कार करने की नीति बना के भयभीत करके विस्थापन पर मजबूर कर रही..
#नक्सली उन्मूलन या व्यक्तिगत, पूँजीपतियों का स्वार्थ??
1.)बस्तर के कथित नक्सलियों से निपटने के लिए सरकार ने #टंगया ग्रुप बनाया था.. जो कि विवादित था ,या साफ शब्दों में कहा जाए तो नक्सली का जवाब सरकारी नक्सली से..
2.)इसी प्रकार का टाडा और पोटा दो ऐसे कानून थे, जिसके अनुसार किसी भी संदिग्ध व्यक्ति या व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में रखने की अभूतपूर्व शक्ति मिल गई थी, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को जेल में डाला जा सकता था.. इन कानूनों का राज्य द्वारा जमकर दुरुपयोग किया गया ,जिसके माध्यम से किसी भी अनजान, निर्दोष व्यक्ति को जेल में डाल देना और अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी के विपक्षी को जेल में डाल कर राजनीतिक प्रस्तुत लिए गए थे..
3.)एम डीएमके के नेता वाइको को पोटा के अंतर्गत जेल भेजा गया था ,क्योंकि उसने अपने भाषण में खुले रुप से लिट्टे का समर्थन किया था और भारत सरकार उसे पहले ही उसे आतंकवादी घोषित कर चुकी थी..
4.) उत्तर प्रदेश सरकार ने एक निर्दलीय विधायक को पोटा के अंतर्गत जेल भेज दिया गया था क्योंकि उसके कुछ राजनीतिक मतभेद थे.. कुख्यात टाडा अधिनियम के तहत बहुत सारे लोगों को जेल भेजा गया,यह सब लोग अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित थे.. इसीलिए यह दोनों ही कानून बहुत कुख्यात और बदनाम हो गए थे तब जाकर इन दिनों अधिनियमों को रद्द कर दिया गया था..
अर्थार्थ साफ नजर आ रहा है अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए और पूँजी पतियों को फायदा पहूँचाने के लिए कहीं यह #कथित नक्सली हमला भी सुनियोजित तो नहीं था??
डर और दुख इस बात का है कि विकास के नाम पर और कितने बलि चढेंगे??
याद रहे, जब शिकारी को शिकार नहीं मिलेगा, तो कहीं वह आपको ही निशाना ना बना दे..