यह बात आपको शायद अजीब लगे, लेकिन कठोर वास्तविकता है कि सत्ता के लिए माओवादी बड़े काम के हैं. पिछले पचास वर्षों से वे अपने देश के आदिवासी बहुल इलाकों में सक्रिय हैं. लेकिन उनकी तमाम हिंसात्मक गतिविधियों के बावजूद व्यवस्था परिवर्तन की दिशा में वे एक कदम आगे भले न बढ़ पाये हों, लेकिन सत्ता के लिए वे बेहद उपयोगी साबित हो रहे हैं. जो भी सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध करेगा, उसे माओवादियों का समर्थक बता कर देशद्रोही करार देना, नक्सली करार देना और उसे उठा कर जेल में बंद करना सत्ता के लिए बहुत सहज मार्ग बन गया है.
उनकी बदौलत ही सत्ता से जुड़े मंत्रियों को सत्ता की चमक हासिल होती है. बुलेट प्रूफ गाड़ियां, ब्लैक कमांडो, तरह तरह की श्रेणियों की सुरक्षा व्यवस्था, यह सब माओवादियों के नाम से तो उन्हें मिलता है. वरना आप ही सोचिये कि एक जनप्रिय नेता या जनता के प्रतिनिधि को अपने क्षेत्र की जनता से भला क्या खतरा? लेकिन उन्हें ब्लैक कमांडो, आगे पीछे चलने वाले सुरक्षा वाहन आदि तो इस माओवादी खतरे के नाम पर ही मिलता है.
इसलिए एक तरफ तो बीच बीच में यह संघी सरकार यह घोषणा करती रहती है कि माओवादी नहीं रहे. उन्हें उन लोगों ने लगभग समाप्त कर दिया. दूसरी तरफ, प्रधान मंत्री सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करते रहते हैं कि माओवादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं. अब तो महाराष्ट्र पुलिस यह साबित करने पर तुली है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के ही जान के पीछे पड़े हुए है और उन्हें मारने का उसी तरह का षडयंत्र कर रहे हैं जैसे किसी जमाने में राजीव गांधी को मारने का लिट्टे ने किया था.
वैसे, यहां यह समझने की जरूरत है कि लिट्टे दुनियां की शक्तिशाली गुरिल्ला सेना थी जिसे खुद कांग्रेस की सरकारों ने मजबूती प्रदान की थी और फिर उसे समाप्त करने के लिए भारतीय सेना का ही इस्तेमाल श्रीलंका ने किया था. राजीव गांधी को मारने के लिए एक फिदाईन हमला उन पर किया गया था. यानी, बमो का हार पहन कर एक एक महिला राजीव गांधी से चुनाव प्रचार के वक्त मिली और उन्होंने खुद को मानव बम बना लिया. माओवादियों ने आज तक आत्मघाती दस्ते का इस्तेमाल किया हो, इस तरह की कोई घटना नहीं. उन्होंने अब तक मुखबिर या ग्रामीण जनता का शोषक बता कर कुछ सामान्य लोगों को मारा है या फिर घात लगा कर या डाईनामाईट लगा सुरक्षाकर्मियों को. इसके अलावा कतिपय मंझोले कद के नेताओं को.
विरोधाभास यह कि हाल के वर्षों में सघन अभियान चला कर माओवादियों के खात्मे का दावा मोदी सरकार करती रहती है. दूसरी तरफ उसे प्रधानमंत्री की हत्या का षडयंत्रकारी बता कर उनका खौफ भी बनाये रखना चाहती है. और मकसद साफ है- माओवादियों से किसी को भी जोड़ कर उसे तंगो परेशान करना, उन्हें जेल में बंद करने का कुचक्र रचना.
और माओवादी से आपके रिश्ते हैं,यह साबित करना पुलिस के लिए बेहद आसान है. आपके घर में यदि ‘कम्युनिस्ट मैनुफेस्टों’ है, माओवाद से जुड़ी कोई इतिहास की किताब है, माओवादियों द्वारा वितरित कोई पर्चा ही मिल जाये, बस आप माओवादियों के करीबी हो गये. अब तो हालत यह बन रही है कि यदि आपके घर में किताबों का जखीरा मिल जाये, छोटी सी लाईब्रेरी मिल जाये तो आप शक के घेरे में पहुंच जायेंगे. आपसे पूछा जा सकता है कि इतनी किताबे आप पढ़ते क्यों हैं? जरूर आप माओवादी हैं, या उनसे आपका कोई रिश्ता है.
तो, सत्ता के लिए बेहद उपयोगी हैं न माओवादी?