इस सप्ताह दो फैसले आये. एक उच्चतम न्यायालय का तीन तलाक को लेकर आया फैसला जिसे विभिन्न धर्मावलंबी पांच जजों के खंडपीठ ने दिया है. पांच जजों में से तीन जजों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि तीन बार तलाक कह कर तलाक लेना अवैध है, असंवैधानिक है और यह शरीयत के खिलाफ भी है. इस तरह का तलाक जो किसी क्षणिक आवेश या क्रोध में दिया जाता है, पति तथा पत्नी को अपनी गलती को समझने और उनको सुधार कर पुनः एक साथ रहने का समय नहीं देता है. इसलिए शरियत इसका विरोध करता है. तीन तलाक में स्त्री की इच्छा का भी कोई स्थान नहीं है. तीन तलाक के विरोध में याचिका दायर करने वाली सायरा बानों ने कहा कि यदि निकाह के समय स्त्री की इच्छा को जाना जाता है, तो तलाक के समय क्यों नहीं? इस तरह यह लैंगिक समानता का भी विरोधी है.
दूसरा फैसला सीबीआई के न्यायालय ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम को डेरा की साध्वियों के साथ बलात्कार का दोषी ठहराया. 2002 के मई महीने में डेरा की एक साध्वी ने बाबा गुरमीत सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए एक गुमनाम पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री को भेजा. इसकी प्रतियां उसने हरिणाणा के मुख्यमंत्री और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी भेजी. इस पत्र को संज्ञान में लेते हुए हरियाणा हाईकोर्ट ने 24 सितंबर 2002 को सीबीआई को जांच के आदेश दिये. 31 जुलाई 2007 में सीबीआई ने डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह को प्रथम द्रष्टया अपराधी मान कर सीबीआई के विशेष अदालत में केश दर्ज कर दिया. 25 जुलाई 2017 को सीबीआई अदालत का फैसला आता है जिसमें डेरा प्रमुख को दोषी करार दिया जाता है. बहुत देर से ही सही, डेरा सच्चा सौदा की कलई खुलती है और साध्वियों को न्याय मिलता है. फैसले में देरी की वजह स्पष्ट है, डेरा के अनुयायियों की गुंडागर्दी, सीबीआई के काम में बार बार अड़चन, केश बंद करने का दबाव तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव. जो भी हो, सीबीआई तथा न्यायालय की अडिगता ने इस काम को कर दिखाया और औरत के पक्ष में फैसला आया.
इन दोनों फैसलों से यह तो स्पष्ट है कि औरतों को अपने अन्याय के विरुद्ध स्वयं लड़ना है. उसकी आवाज पर साथ में कई आयेंगे, लेकिन पहल उसे ही करनी है. सरकार लाख नारा लगाये, सबका साथ, सबके विकास का, लेकिन औरत के साथ होने वाले हिंसा-प्रताड़ना को समाप्त करने का कोई उपाय उनके पास नहीं है. औरत की आजादी के बिना कोई समाज उन्नति नहीं कर सकता, यह समझ बननी चाहिए.
हाल के दिनों में देश में बाबाओं की बाढ़ सी आ गई और उनके चरित्र को लेकर जो मामले उठ रहे हैं तो उसके पीछे के कारणों को जानना भी जरूरी है. बाबा का मतलब हम किसी सन्यासी से नहीं लगा सकते जो किसी वन में कुटि बना कर सादगी का जीवन जीते हैं. आधुनिक बाबा शहरों में शानदार आश्रम बना कर पूरे शानों शौकत से रहते हैं. उनके लाखों अनुयायी होते हैं औश्र उनकी अपार संपत्ति होती है. वे जनहित का काम करने का ढोंग कर जनता का भगवान बने रहते हैं. 1990 में डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख बनने के बाद गुरमीत सिंह ने डेरा के प्रभाव क्षेत्र को काफी बढाया. देश विदेश में उनके लाखो अनुयायी बने. पूरे देश में लगभग 40 जगहों में उनके आश्रम हैं. सिरसा के मुख्य आश्रम में हर वर्ष होने वाले सत्संग में भारी संख्या में लोग आते हैं. इतने लोगों के ठहरने, खाने-पीने की व्यवस्था वहां होती है. इसके अलावा डेरा के अपने अस्पताल, स्कूल, कालेज, लघु उद्योग, बाजार आदि भी हैं. डेरा की संपत्ति अरबों में आंकी जाती है. डेरा के इन लाखों अनुयायियों और संपत्ति से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं हमारे राजनेता और मंत्री आदि. हर चुनाव के पहले ये राजनेता डेरा प्रमुख के चरण स्पर्श करने जाते हैं, क्योंकि बाबा के एक इशारे पर उन्हें वोट और धन दोनों प्रापत हो जाते हैं.
ऐसे बाबाओं और डेरा प्रमुखों की पैदाईश तथा वर्चस्व कैसे बढ़ रहा है, इस पर भी गौर करना चाहिये, क्योंकि 25 अगस्त को पंचकुला में गुरमीत सिंह को दोषी करार देते ही वहां जमा हुए लाखों अनुयायियों ने मार काट शुरु कर दी, गाड़ियों में आग लगा दिया. इस तरह पूरे पंचकुला में अराजकता फैल गई. पुलिस और सेना देखती रही. उनकी निष्क्रियता का कारण प्रशासन की डेरा के प्रति भक्ति बताई जा रही है. बड़ी संख्या में बनते अनुयायी और उनकी अंधभक्ति का कारण भी होता है. हमारे समाज में जाति, धर्म, धन आदि को लेकर गहरी खाई है. उसके चलते एक बहुत बड़ी आबादी सामाजिक सुरक्षा औश्र जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहती है. उनका समाज में कोई स्थान नहीं होता. ऐसे लोग किसी भी ऐसे व्यक्ति से प्रभावित होते हैं जो उन्हें आदमी समझता है, उनको सम्मान देता है, उनके कई सारे आवश्यकताओं को पूरा करता है, जैसे बच्चों की पढाई, चिकित्सा आदि. ऐसा व्यक्ति उनके लिए भगवान ही बन जाता है. आश्रम के अंदर चलने वाले क्रिया कलापों से अनभिज्ञय ये लोग डेरा के इशारों पर नाचते हैं. अपने भगवान के विरुद्ध कुछ सुन भी लेते हैं तो उस पर विश्वास नहीं करते हैं. विश्वास कर भी लेते हैं तो वे डेरा से खुद को अलग नहीं कर पाते हैं क्योंकि उसके बिना उनके जीवन का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता है. लोगों की इस अंधभक्ति पर तो रोक नहीं लग सकती, लेकिन राजनेता जो जनता के प्रतिनिधि बन कर संसद तथा विधान सभाओं में जाते हैं, उनको तो इन ढोंगी बाबाओं के मायाजाल से निकल कर जन कल्याण की बात सोचनी होगी. बेटी बचाओ, बेटी पढाओं का नारा देना या महिला हिंसा के खिलाफ झूठी संवेदना दिखाना ही प्रर्याप्त नहीं है.