युवाओं के साथ चर्चा,उनके विचारों को सुनकर समझ आया की वे यौनिकता से स्वास्थ्य,हिंसा जैसे मुद्दों को जोडकर नहीं देख रहे होते हैं जो की काफी हद तक यौनिकता का हिस्सा हैं. वे सीधे ही इसे सामाजिक पहचान, परिभाषा में डालने की कोशिश करते हैं, उदाहरण के लिए जितनी भी बार उनको यौनिकता आधारित छवि पर सोचना या बताना होता तो वे कुछ इस प्रकार के सीधे जवाब देते जैसे होठों का होठों से मिलना, इमरान हाशमी, आँखों के सामने स्तनों की तस्वीर आना, लड़का लड़की का साथ होना, लड़का लड़की के सम्बन्ध बनाना आदि.
युवाओं का यह भी कहना था की जब सेक्स शब्द कही पढ़ते है, सुनते है, टीवी में कोई कहता है की सेक्सी लग रही है तो लड़की ही ध्यान में आती है. उभरा हुआ सीना व उभरे हुए बम (कुल्हे ) दीखते है, हॉट हॉट लड़के जिनके सीने पर बाल ना हो, इत्यादि. इन सब चर्चाओं में युवाओं के मन में कहीं दिखा भी नहीं की वे इन सबको खुद अपने शरीर की स्वस्थ सम्बन्धी या किन्ही निजी पहचाओं व अनुभवों से जोडकर कर देख रहे हैं या वे अनुभव किये भी हैं तो वे समाज द्वारा रचे माहौल के प्रभाव में आकर उन अनुभवों के आधार पर ही यौनिकता को देखने की कोशिश कर रहे होते हैं, जबकि यौनिकता से जुड़े ही तमाम मसले— जेसे स्वास्थ्य, व्यवहार, हिंसा उनकी जिंदगियो में चल ही रहे होते हैं जिनको वे महसूस भी कर रहे होते हैं और शायद जिसके चलते वे कई तरह की परेशानियों से जूझ भी रहे होते हैं.
जैसे एक चर्चा के दौरान 15-16 वर्ष के कामिल का कहना था की रात को पेशाब की बूँद बूँद टपकती है. 1-2 साल हो गए. दोस्त कह रहा था लड़की से रिश्ता बनाएगा तो जब ही ठीक होगा, कामिल ने यह भी बताया की मन में बहुत दिनों से मन में लग तो रहा है कि डोक्टर को दिखने वाली बिमारी तो नहीं हो गई, मगर फिर जब दोस्त ने भी कह दिया तो यही सोचा की सेक्स का ही चक्कर है और इस बात को कामिल ने महिला— पुरुष के शरीर की प्रकृति से जुड़े सत्र के दौरान साझा किया.
तो कहने का मतलब है की बहुत हद तक युवा यौनिकता को उन सन्दर्भों से जोड़कर नहीं देख व जी पा रहे हैं जो वास्तविक जीवन में यौनिकता का ही हिस्सा हैं!
युवाओं के मन में क्या हो/ चल रहा है ? यौनिक इक्छाओ से जुडी अधिकतर चीज़े युवाओ के मन में चल रही होती हैं जिसके चलते वे कहते हैं की ज़्यादातर समय दिमाग में लड़के— लडकियां एक दूसरे के बारे में सोच रहे होते हैं खासतौर पर उनके शरीर और उस से जुडी चीजों को जानने की उत्सुकता और इंतज़ार में रहना. हालांकि एक दूसरे के बारे में जानना, एक दूसरे से खुलकर बोल पाना, मिलने के मौके होना इतना आसान नहीं होता. वे कहते हैं— अधिकाँश तो हम बस अपने मन ही मन अंदाज़ लगाते है की लड़की को भी ऐसा करना पसंद होयेगा, अखबार में कोई लड़की का आधा कपड़ों का फोटो देखके सोचना कि लडकियों के शरीर का ये वाला हिस्सा ऐसा दिखता होगा और जब देखने की इक्छा ज्यादा बड़ जाती है तो फ़िल्म भी देखते हैं और कई बार इच्छा और ज्यादा ज्यादा बढती जाती है. लडकों से बात करना, फिटिंग के कपडे पहनना, लिपस्टिक लगाना. मेकअप करना, मन ही मन इसे सोचना की सेक्स कर रहे हैं. ऐसा सपना सोचना अच्छा लगता है, किस करने का मन होना, छुपकर इमरान हाश्मी की फिल्मी गाने देखना,पोर्न फिल्म देखकर सेक्स को फील करना अच्छा लगता है. सटकर गले लगने, चिपकने का मन होना, खुद ही खुद के शरीर को सहलाना,सम्बन्ध बनाने का मन होना, दूसरों को छूना अच्छा लगता है. अपने आपसे प्यार करने का मन होना, सिर्फ सेक्स करने के लिए दोस्ती करना, शादी नहीं करना, अकेले हैं तो अलग अलग तरह के नए नए प्रकार से सेक्स करने की सोचना, नए तरीके जानना व देखने की इच्छा होना,नींद में सेक्स को सोचकर फील करना, कंडोम और लडकियों के शरीर के बारे में जानना अच्छा लगता है. क्या लडकों को भी माहवारी जेसा कुछ होगा, क्या उनके शरीर में भी महीने की कोई दिक्कत चलती होएगी, ये सोचते है. ये जानने का बोहोत दिल होता है. हाथ में हाथ लेकर बेठने का मन होना,लॉन्ग ड्राइव पर ले जाने का मन करता है, लड़की कंधे पर सर रखकर बेठे, अलग अलग तरह से सेक्स करने का मन करता है.
बाजार और उसकी चपेट में युवा
युवाओं के साथ जब दोस्ती, प्यार, यौनिकता जैसे विषयो पर चर्चा कर रहे थे तब उनसे उनके प्यार में होने से जुड़े अनुभवों के आधार पर समझ आया की प्यार, मोहब्बत गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड का क्रेज़ किस हद तक युवाओं के सर पर सवार है और वे इन को किन संदर्भो से जोड़ कर देखते हैं, साथ ही इस क्रेज़ को बनाने व बढाने में बाज़ार की क्या भूमिका रही है यह भी स्पष्ट हुआ.
जैसे युवाओं ने कई बार यह भी बताया की जब कोई लड़की अच्छे से बात करती है, देखती अपनी तरफ तो लगता है कि वो भी अपन को पसंद कर रही है और जब रोज़ — रोज़ बात करती है या मिलती है तो सोचते है की वो अपन से सेट होना चाह रही है. वो भी अपन को लाइन दे रही है, जैसे फिलम में लड़का लड़की देखते हैं तो प्यार हो जाता है. अगर किसी से एक दो दिन मिले जैसे गाव पर सब पूजा करने आते है तब, सब इकठ्ठा होते, शादी में जाते है वह कोई मिली \मिला तो आस पड़ोस में किसी से लाइन चलने लगी (एक ही टाइम पर एक दूसरे को घर के बाहर आकर देख रहे है, लगातार किसी ख़ास टाइम पर), कही आते जाते किसी से एक ही टाइम पर रोज़ या मिलने या एक दुसरे को देखने से दोनों को मन ही मन प्यार हो जाता है, अगर एक को होता है दूसरे को नहीं हुआ होता है तो जब एक दूसरे को इज़हार करते हैं तो दूसरे को भी हो जाता है. युवाओं के प्यार होने की पूरी प्रक्रिया में युवाओं का अनुभव ऐसा कहता है.
वे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए बताते है की प्यार शुरू हुआ है या चल रहा है और इस दौरान वे किन्हीं भी वजहों से अलग हो जाते हैं, तो बोहोत दुःख में रहते है. तब गाने ही सहारा देते है. साथ ही वे यह भी बताते है की गाने सुनकर वो कैसे और ज्यादा अपने पार्टनर को याद कर रहे होते है, वे दुःख भरे गाने सुनते है (अलग अलग युवाओ से जब वे प्यार में होने की वजह से मुस्किल में थे, उन दिनों इन्दिविजुअली, युवा के साथ बात होती थी). युवाओं ने बताया की हम जैसे गाने सुनते जाते है और गुस्सा चढ़ता है, बोहोत तेज़ याद आती है, प्यार ज्यादा बढ़ जाता है. तो समझ आ रहा था कि बाज़ार में हर वो सामग्री आसानी से उपलब्ध है जो युवाओ को बिना दुष्परिणाम बताये सहारा देने के लिए तत्परता से तैयार हैं, हालांकि उसके तमाम दुष्परिणाम भी साथ ही लगे हैं. जैसे स्पेस कार्ड से खरीदने पर पोर्न वीडियोस कार्ड में आते ही आते है जिसको 12-13 वर्ष की उम्र के बच्चे भी देख रहे होते हैं. उसमे बड़ी मुश्किल यह भी होती है की जिस प्रकार की सामग्री उपलब्ध होती है, उसमे भी महिलाओं \ बाकि जेंडर के साथ जिस प्रकार की गतिविधियां करती दिखाई जाती है, वह काफी हिंसात्मक व खतरनाक भी होती है, जिसको युवा फॉलो कर रहे होते हैं.
गानों की wordings में अनेक शब्दों का यौनिकता से जुड़ा होना, शब्दों व चित्रों में महिलाओं का अंग प्रदर्शन वस्तु के रूप में करना.
अगले अंक में जारी