युवाओं के साथ सत्र यौनिक इच्छाएं, फिल्म (अनारकली ऑफ़ आरा) शो के बाद यौनिकता और हिंसा को कैसे साथ में देखते हैं, इन सत्रों के आधार पर चर्चा व स्तरों के माध्यम से ओवर आल यूथ के सन्दर्भ में समझ आया कि किस किस तरह की स्थिति बनती है,जैसे युवाओं का कहना था कि जब बहुत मन बढ़ने लगता है तो गुस्सा भी आता है. बड़ी मुश्किल से मौका मिलता है, लड़की अगर मना कर देती है तो गुस्से में लगता है- सब कर डालो. जैसे ज्यादा दिल हुआ करने का, फिर जिससे प्यार भी नहीं है, तो शादी में गये हैं या रिश्तेदारों के यहाँ अगर मौका मिलता है तो कर लेते हैं. इसी तरह लडकी कहती है कि जब लड़कों के साथ मिलते हैं दोस्ती में या बॉय फ्रेंड से भी,तो प्यार (सेक्स) की बातें करने का मन होता है. देर देर तक मिलने, इकट्ठे साथ रहने का टाइम नहीं होता, तो लड़के तो बस अपना काम कर के निकल जाते हैं. तब बहुत गुस्सा आता है, जब वह पूछता भी नहीं कि अपना क्या मन था, बिना पूछे चुम्मी ले ले तो, यदि शादी में साथ में जा रहे हैं, तो युवा लड़कों का कहना था कि पता नहीं लडकियों का क्या क्या चलता रहता है; कभी मूड बना के आये हैं, उनको नींद आती है तो ज़बरदस्ती भी कर लेते हैं. फिल्म देखते देखते मूड हो गया तो भी कर लेते हैं. अगर बहुत दिनों से मन में चल रहा है- सीने (स्तनों ) को छूकर देखना है तो फिर ग्रुप में जा रहे होते हैं, लड़की अकेली जा रही है, सुनसान जगह है, तो दबा देते हैं.

लडको द्वारा किये कृत्य को साझा करते हुए लडकियों के समूह का कहना था- सीने पर हाथ मारा, कोहनी से छुआ, गले से अंदर हाथ डालने की कोशिश की, पीछे कूल्हे को छुआ, सीने की तरफ ही घूरना, हम लडकियां इस तरह नहीं करतीं (लडकियां इस तरह नहीं करतीं’ इस पर बात करते हुए भी लडकियों की शर्म आड़े आती है और इतना स्पेस भी नहीं है), तो लडकियों के समूह से यह भी निकलकर आया कि वे अपनी इच्छाओं को ज़ाहिर करने या जताने के लिए हिंसक रवैया कभी नहीं अपनाएंगी और स्वयं के साथ इस प्रकार की हिंसा वे पसंद भी नहीं करती हैं. वहीं लडकियों का कहना था- जिसको पसंद नहीं करते या जिसके साथ मन नहीं है, उसने किया तो खुद से घिन करने लगते हैं. जब लगता है कि गलत संबंध बनाये, तो पछतावा होता है. बॉयफ्रेंड है तो डर डर के मिलने जाते हैं कि पहले बात बढ़ेगी, तब आगे सोचेंगे. पहली बार में ही वो अगर कहीं छू लेता है तो अच्छा तो लगता है, पर मन खराब हो जाता है; और पता भी चल जाता है कि उसके मन में बस यही चल रहा था! अगर अपना मन नहीं है तो पति भी ज़बरदस्ती करते हैं, तो आगे से पति के साथ करने का मन नहीं रहता. जो प्यार करे, उसके साथ करने का मन करता है.

कुछ जगहों पर युवाओं ने इस हद तक भी बताया कि जब कहीं पर करने को नहीं मिलता, तो अप्राकृतिक तरीके अपनाते हैं. 17-18 वर्ष के एक समूह ने कहा कि हम जब डेरे के साथ मुंबई या पंजाब या दिल्ली में अलग अलग जगहों पर घूम रहे होते हैं तो एक दूसरे की संगत में आकर जो ग्रुप का सबसे ज्यादा उम्र का लड़का होता है वो दिखा देता है. तो इस तरह पैसे देकर भी करने गये हैं कई बार. जब पैसे देकर करते हैं, तो लड़के लोग तो अपनी मर्ज़ी से कैसे भी मज़े लूटते हैं, वहां से आकर यहाँ दोस्तों को बताते हैं कि हमने कैसे कैसे मज़े लिये थे. युवा पिछले सत्र में पढ़े गये एक वेश्या के ख़त की चर्चा के दौरान अपने पिछले अनुभवों को बहुत गर्व से नहीं याद कर रहे थे, बल्कि वे संवेदनशील होकर सोच रहे थे कि कैसे उन्होंने कभी गुस्से से, कभी डरा-दबा कर प्रेमिका या जिनके भी साथ इन संबंधो में गये हैं, उनको कैसे नुकसान पहुँचाया है.

वहीं दूसरी और नई शादी के रिश्ते में गई लड़की या किसी की गर्लफ्रेंड है तो उसको लग रहा थी कि क्योंकि वो हमें प्यार करते हैं, या उनका तो अधिकार है कि वो सम्बन्ध बनाये, उनको शरीर से खुश करना ज़रूरी है. हालांकि चर्चा में लडकियों ने उस दौरान खुलकर खुद से सही पीड़ा भी बतायी कि किस तरह बॉयफ्रेंड बोलता है कि तू नहीं करने देगी तो बाहर सस्ते में मिलती है, कि मेरे साथ नहीं करेगी तो फिर क्या किसी और के साथ करेगी; छोड़ने-अलग होने की भी धमकी देते हैं. इससे समझ आ रहा था कि यौन प्रताड़ना ताक़त और भावनाओं के बीच की कड़ी भी है, जिसको युवाओं को इन दोनों संदर्भो में समझने की ज़रूरत है.

यौन प्रताड़ना का एक मुख्य कारण यह भी है कि महिला पार्टनर को- चाहे वह दोस्त के रूप में हो या पत्नी- प्रेमिका- पुरुष की संपत्ति और महिलाओं पर उनका अधिकार होने की भावना ठोस रूप से है, दिमाग में जिसका प्रभाव उनकी चर्चाओं में भी दिखता है..जैसे वे समूह में साझा भी करते हैं.

सामाजिक नैतिकता

यौनिकता और उससे जुड़े छोटे बड़े किन्हीं भी प्रकार के मुद्दों पर युवाओं के अपने अनुभव, अपनी इच्छाओं – जिज्ञासाओं को रखने के लिए घर-परिवार, आस-पास समाज में युवाओं के लिए जगह ना होने की वजह से युवा कई तरह के खतरे में जी रहे होते हैं. फिर वे चाहे स्वास्थ्य, हिंसा, जेंडर जिस से भी सम्बन्धी हो. इन सबसे जुड़े खतरे युवा स्वयं ही उठा रहे होते हैं. और बड़ा सवाल यह उठता है कि यह सिर्फ आज के युवाओं की मुश्किल नहीं है. पीढ़ी दर पीढ़ी माँ-बाप, उसी समाज के लोग अपनी युवावस्था में भी इन सभी दौर से गुज़रे होते हैं. मगर वही समाज आने वाली पीढ़ियों को भी वो जगह नहीं दे पता है, हालांकि इसको बनाये रखने में पेट्रियाकी का एक ख़ास रोल होता है, जो महिलाओं से ही महिलाओं में भी जा रहा होता है, जिसके पीछे के नियंत्रण को आसानी से समझना मुश्किल भी होता है. इसमें ख़ास बात यह भी समझ में आयी कि समुदाय व मान्यताओं के आधार पर भी फर्क है, चाहे वो रोक टोक का मसला हो या महिलाओं की यौनिकता पर नियंत्रण का मामला हो या उनके साथ यौनिकता जैसे विषयों पर खुल कर बात करने का मामला.

स्वास्थ्य सम्बन्धी धारणाएं व खतरे

  • ज्यादा गुड़ की चाय पी कर सोई थी, इसलिए सुबह पेशाब में खून आ गया.
  • एमसी नहीं जानती थी, तो खून देख कर सोची साईकिल चला के आयी हूँ, इसलिए खून आ रहा तो दवा लगा ली.
  • एमसी आने के कुछ दिन बाद तक किसी को बताई नहीं थी तो जब भी खून आता था, बाथरूम में बैठी रहती थी, खून बंद करने की कोशिश करती थी. कभी योनि में बेसन डालती थी, तो कभी आटा.
  • युवा लडकियों ने कई बार इस तरह के मसले भी साझा किये कि शरीर के गुप्तांगों से जुडी कोई मुश्किल हुई है तो माँ को ही बताए हैं और ज़्यादातर लडकियों का कहना था कि माँ ने डाट दिया कि तू अभी से ही ‘फूट’ गयी; कपडे में दाग कैसे लगे, तू कहीं कर के आयी है.
  • झिल्ली फूट गई क्या, और ये कह कर माँ ने मारा भी.
  • सच बता क्या कर के आयी है, तेरे पापा को क्या जवाब देंगे?
  • कुछ लडकियों के इससे जुड़े द्वन्द भी थे. कुछ लडकियों का कहना था कि हमने सुना है, माहवारी के दिनों में सम्बन्ध बनाने से बच्चा नहीं रुकता.
  • कि माहवारी आने से लडकियां कमज़ोर होती जाती हैं, कि माहवारी के दिनों में ज्यादा दौड़ना, चलना कूदना नहीं चाहिए.
  • ज्यादा मीठा, गरम, तेज़ मसालों का खाना नहीं खाना चाहिए.
  • माहवारी के दिनों में सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए.
  • शादी में पहली बार पता नहीं था सेक्स केसे करते हैं, तो पति गुस्सा हो गया था.
  • शादी की रात खून नहीं निकला तो पहली बार मायके आयी तो वापस नहीं ले गये ससुराल वाले, दो साल से घर पर ही बैठी हूं.
  • सीने में गांठ हुई, पहले तो बता नहीं पाते थे. जब बढने लगी तो घरवालों को बताया, डाक्टर को दिखाया तो बताया कि ऑपरेशन होगा तो एक तरफ का स्तन हट जायेगा, तो घरवालों ने मना कर दिया कि शादी नहीं हो पायेगी.

हमने देखा कि जहां मुस्लिम परिवारों में एमसी व गुप्तांगों से जुड़े विषयों पर बात करना मुश्किल था, वहीं दूसरी और गौंड व पारधी समुदाय में लडकियों को इस पर बात करने की आसानी दिखी जैसे, माँ ने बोला- जा जल्दी से खम्बे छूकर आ, तू जितने खम्बे छुएगी, फिर बस उतने ही दिन खून आयेगा.

  • जब माँ को बताया- देखो क्या हो गया, तो मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखी और बोली- आ तुझे कपडा दूं.
  • इस पर बात होती रहती थी. बड़ी बहन ने बताया था- तू बड़ी हो गयी है. अब तुझको भी आयेगा. जब आया तो मैं पहले से तैयार थी.
  • जब पहली बार आया था तो माँ ने गुड़ से बना हरीरा (काड़ा) बना कर दिया था. हालांकि देवी-देवताओं के दर्शन के लिए ऐसे दिनों में हमें भी रोकते हैं, पर परिवार के लिए खाना देना हो, बनाना हो तब कोई रोक टोक नहीं चलती.
  • इस समुदाय में युवाओं का यह भी कहना था कि लड़की पहले संबंध बनायी या नहीं, इसकी जांच नहीं होती. तो कोई कोई जो जन प्यार में है, वो पहले भी संबंधों में होते हैं. एक से ज्यादा लोगों के साथ भी रिश्ते में रह लेते हैं. परन्तु शादी के बाद, खास तौर पर लडकियों के लिए, अपनी मर्ज़ी से संबंध बनाने की आजादी नहीं रह जाती. जैसे लड़के लोग तब भी प्रेमिका रख सकते हैं, कहीं भी सम्बन्ध बना सकते हैं. पत्नी के साथ भी जब चाहे तब बना सकते, लेकिन लड़की फिर कोई और के साथ नहीं बना सकती.
  • वही हिन्दू समुदायों में लडकियों के अनुभव थे कि पहली बार तो जब एमसी आयी तो दही चावल खिलाये. उसके बाद से फिर एमसी वाली लडकियों को बच्ची नहीं मानते. बिस्तर अलग कर देते हैं. सर्दियों में भी एक ही पल्ली ओढने को मिलती है. सबके लिए बिछे बिस्तर पर नहीं बैठने देते.
  • खुद खाना नहीं निकाल के खा पाते. भाई या पापा को छूते नहीं है. खाना नहीं बनाते. ऐसा लगता है, जैसे हमको अलग कर दिया हो. जब पापा भैय्या लोग के सामने ऐसा व्यवहार होता है, तो उनको भी पता लग जाता है कि हम एमसी से हैं. फिर उनके सामने शर्म भी आती है.
  • जब ससुराल से पहली बार घर आयी तो सब मेरी चादर को लेके तारीफ कर रहे थे, तो मुझे बहुत बुरा लगा, जैसे मैं सबको बताने की चीज़ होऊं. वही मुस्लिम समुदाय में इस बात को लेकर थोड़ी राहत थी कि सिर्फ धार्मिक गतिविधियों से उनको दूर रहना होता है, बाकी वह सब वैसा ही रहता है.

यौनिक इक्छाओ के लिए/की पूर्ति के लिए किस किस तरह के खतरे उठाते है युवा?

  • खुले खुले कपड़ो की तसवीरें देख कर तकिये के साथ सेक्स करते हैं.
  • जब इंसान के साथ ही मन होता है, तो बच्चों या बुड्ढों के साथ भी.
  • जिनलोग को पता रहता है कि बच्चा रुक सकता है, मगर जब मौका है तो कोंडोम नहीं है तो भी कर लेते हैं.
  • सामान वाली पन्नी लगा कर भी करते हैं.
  • ये सब तो खतरनाक है ही, इन गतिविधियों को पूरा करने के लिए युवा और भी जोखिम उठा रहे होते हैं, जैसे लड़के लोग अँधेरे में, एकांत जगह ढूंढते हैं, किसी दूर मैदान, बसों के पीछे, रेल पटरी के किनारे, खंडहर आदि. घर में भी अकेलापन तलाशते हैं, खासतौर पर बस्तियों में जब युवाओं के पास अलग से उनके अपने लिए स्पेस नहीं होने की वजह से फिर वे बाहार ही अपने लिए स्पेस तलाशने लग जाते हैं और देर रात घर से बाहर रहते व इस प्रकार के समूहों व लोगों से जुड़ते जाते हैं. युवाओं का कहना था कि हम आपस में इस पर बात नहीं करते पर, एक—दूसरे को जान लेते हैं. इन समूहों में कोई कई लोग नशा लेकर यह सब करता है. तो कोई एक दूसरे को देख देख कर नई नई चीजें नशा आदि भी करना सीख रहे होते हैं. यदि प्रेमिका या जिसके साथ इस तरह के रिश्ते जीने की गुंजाइश दिख रही होती है, उनको रात मिलने के लिए दवाब बनाते हैं.

वहीं लडकियों का कहना था कि सहेलियों के साथ जब तीज, शादी या पढ़ाई करने के लिए रुकते हैं, तब इस तरह की बातचीत, फिल्म देखना कर पाते हैं. मुस्लिम समुदाय में लडकियों का कहना था कि एमसी (ईएसआई) बात करना गुनाह बताते हैं तो हम आपस में भी बात नहीं करते. यदि इस समुदाय से कोई लड़की आधी रात में चोरी छुपे मिलने गयी है और पकड़ी गयी तो लडकियों का कहना था कि परिवार वाले ये मान ही लेते हैं कि कुछ की है, सम्बन्ध बनायी है. फिर वे जल्दी जल्दी कैसा भी उल्टा सीधा लड़का देखना शुरू कर देते हैं, क्योंकि वे मानते है कि कुछ कर ली, अब अच्छे घर में शादी नहीं होगी , कैसे भी कर के लड़की से पीछा छुडाया जाये. इसलिए परिवार का यह भी दवाब रहता है कि तुम्हारे चाल चलन अच्छे रहेंगे, तो शादी जल्दी नहीं करेंगे, ऐसा कुछ किया, तो पढाई बंद और शादी भी करवा देंगे.

अगले अंक में जारी