पिछले दिनों पत्थर गड़ी के इर्द गिर्द जो राजनीतिक माहौल गरमाया, उसने उत्सुकता जगाई कि हम जाने, पत्थर गड़ी है क्या? आदिवासी समाज के बाहर की दुनिया के लिए तो यह और भी अबूझ है. कुछ के लिए जुजुप्सा से भरी आदिवासियों की कोई परंपरा. लेकिन इस क्रम में जो जाना और जितना समझ पाया वह उदात्त और महान है. इस विराट, नश्वर जगत में अपनी पहचान का ऐलान.

मूलतः यह मुंडा समाज की सामाजिक व्यवस्था का एक हिस्सा है. परस्पर सौहार्द और विश्वास पर टिका. सारी पोथी, पतरा, नक्शा, खतिहान एक तरफ, पत्थर गड़ी एक तरफ. विस्तृत भूखंड, खुले आसमान के नीचे उनकी एक अदद पहचान. जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता. और देगा तो आदिवासी समाज से उसे टकराना पड़ेगा.

मुंडा समाज या वृहद आदिवासी समाज में यह धारणा है कि मृत्यु के बाद भी परिजन जीवित रहते हैं, सूक्ष्म और अगोचर रूप में. और अपने बच्चों के सुख-दुख के साक्षी बनते हैं. मृतक के नाम से सासंदिरि - कब्रिस्तान जैसी जगह- में पत्थर गाड़ा जाता है. पत्थर के आसपास बुहार कर पत्थर पर हल्दी लगाई जाती है. उस पर उस आदमी के नाम से लाया गया कपड़ा बिछाया जाता है. अस्थि फूल रख चुक्का पत्थर के नीचे तीर मार कर सरकाया जाता है. पूजा सामग्री- पानी, आग, धुवन, सिंदूर, इलि का रस. और उसके बाद मंत्र पढ़ा जाता है-

आज………..दिन

आज……….महीना

………………… गांव में

……………….मौजा की सीमा में.

पांच भाई गांव के

कुटुंब-बंधु देश के

हम आये हुए हैं…

हम एकत्र हुए है…

हमारे बीच से जो देव बन गया

हमारे बीच से जो छिन गया

……………. के नाम से

उसकी स्मृति में

तुम्हारे बताये रास्ते से

तुम्हारे इंगित मार्ग से

………… गांव में

………..मौजा सीमा में.

…………..के घर के आंगन में

………….. की संतान

…………… की संतति

उसे पुर्खे-पूर्वजों के साथ मिलाने के साथ

हम पत्थर खड़ा कर रहे हैं

हम एक चिन्ह स्थापित कर रहे हैं.

हमारे द्वारा खड़ा किया गया यह पत्थर

हमारे द्वारा स्थापित यह चिन्ह

युग-युग तक बना रहे

हमेशा के लिए स्थिर रहे.

जो कोई इसे देखे

जो कोई इसे पहचाने

हां, यह आदमी यही था

यह प्रजा यहीं की थी.

इस आदमी के माध्यम से

इस प्रजा के द्वारा

सारा गांव प्रकाशित हो

सारा देश जाना जाये.

गांव के निर्माण में सहयोगी

देश के गठन में सहयोगी

खुटकटी बचाने वाला आदमी

भुईहरी का रखवाला आदमी…

इस उदात्त जीवन दर्शन को हो सके तो समझने की कोशिश कीजिए, टुच्ची राजनीति से बाज आईये.