हैरत है, कौन एक मुख्यमंत्री (रघुवरदास) को पत्थलगड़ी इलाके में जाने से रोक रहा है? इस तरह के संविधान और कानून विरोधी रोक तो सरकारें लगाती रही हैं चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की! कौन एक मुख्यमंत्री को देश विरोधी शक्तियों को कुचलने से मना कर रहा है? एक केंद्रीय एजेंसी नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) को असंवैधानिक और गैरकानूनी तौर पर इस राज्य का मुखिया तो पहले से ही इस राज्य में बिठा कर रखा है! पिछले 27 फरवरी को खूंटी के कचहरी मैदान में मुख्यमंत्री ऐसे दहाड़ गये जैसे वह किसी संवैधानिक पद पर नहीं बल्कि झारखण्ड का कोई माफिया बोल रहा है! किसी मुख्यमंत्री का इस लहजे में बोलना यह दर्शाता है कि ऐसा व्यक्ति मुख्यमंत्री बनने के लायक बिलकुल भी नहीं है. रघुवरदास को या तो देश के संविधान और कानून के बारे में कोई इल्म नहीं है या उन्हें देश के संविधान और कानून के प्रति कोई सम्मान नहीं है.
मान लिया जाये कि पत्थलगड़ी की आड़ में देश विरोधी गतिविधियां चल रही है और सरकार उन लोगों के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने में सक्रिया है? लेकिन इस इलाके में खुले आम लहलहा रहे अफीम की खेती तो जगजाहिर है! उन अफीम माफिया गिरोह व संरक्षक पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। खूंटी व अड़की क्षेत्र में हो रहे बड़े पैमाने पर अफीम की खेती और उसकी तस्करी पर खूंटी की सभा में मुख्यमंत्री की बोलती क्यों बदं रही? क्या रघुवर सरकार इस अफीम की खेती करने वालों को संरक्षण दे रही है? क्या इसीलिए रघुवरदास के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ इसाई समूह है? मुख्यमंत्री के इस भाषण को साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला कहना गलत नहीं होगा।
महत्वपूर्व मसला तो यह है कि भाजपा सांसद कड़िया मुंडा और झारखंड के मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के गांव के आस-पास के गांवों में और संघ व भाजपा के गढ़ तारुप और तिलमा के आस-पास के गांवों में अफीम की खेती लहलहा रही है। पिछले 21 फरवरी को अड़की के कुरुंगा गांव के करीब तीर-कमान से लैस ग्रामीणों ने सीआरपीएफ के जवानों को घेर कर रखा और फिर दोबारा नहीं आने की धमकी देकर छोड़ा गया! उस इलाके में वरीय अधिकारियों ने अपनी ऑखों से अफीम की फसल को देखा फिर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? यह क्यों नहीं माना जाए कि भाजपा नेताओं, कॉरपोरेट और माफिया के गठजोड़ से पत्थलगड़ी की आड़ में अफीम की खेती हो रही है, जिस में पुलिस-प्रशासन की संलिप्ता भी है?
खूंटी और उसके आस-पास इलाकों में पत्थलगड़ी, अफीम की खेती और तथाकथित देश विरोधी गतिविधियां इन दिनों मीडिया के सुर्खियों में है। मौजूदा पत्थलगड़ी की घटनाओं को आदिवासी परंपरा से जोड़ा जा रहा है, जो बिलकुल ही निराधार व भ्रामक है। पत्थलगड़ी की परंपरागत स्थिति और मौजूदा पत्थलगड़ी की घटना में बुनियादी फर्क साफ दिखायी देता है। जानकार बताते है कि परंपरा के मुताबिक पत्थलगड़ी पूर्वजो को पीढ़ी याद रख सके इस के लिए जमीन के नीचे दफन शव पर पत्थलगड़ी कर उनके नाम अंकित किए जाते थे। दूसरी ओर गांव के सीमांकन के लिए पत्थलगड़ी की परंपरा थी। गांव के नाम व पहचान के लिए भी पत्थर गांव के मुहाने पर भी गाड़े जाते थे। जानकार बताते है कि 1996 में पेशाकानून पास होने की खुशी में झारखंड के एक हजार गांवों में पत्थलगड़ी की गई थी। लेकिन आज जिस तरह से की जा रही है यह परंपरा का हिस्सा नहीं है बल्कि गांवों में अफीम की खेती करने और उसे छुपाने के लिए संविधान की गलत व्याख्या कर बाहरी प्रवेश वर्जित जैसे नारे लिखे जारहे हैं। सरकारी योजना का बहिष्कार, अपने बच्चों को स्कूल नहीं जाने का फरमान यह गांवों के हित में कदापि नहीं हो सकता है।
हद तो यह है कि 25 फरवरी को अड़की प्रखंड के कोचांग में पत्थलगड़ी के दौरान डाक्टर जोसेफ पूर्ति द्वारा भोले-भाले ग्रामीणों के दिमाग में देश विरोधी जहर घोला जा रहा था। डाक्टर पूर्ति का कहना है कि आदिवासियो के किसी भी कानून को बदलने के लिए राज्य व केंद्र सरकार को ब्रिटेन की संसद से इजाजत लेनी होगी जो निहायत आपत्ति जनक वक्तव्य है। एक दूसरा व्यक्ति, अपने को जमशेदपुर का निवासी बताने वाला, शंकर महाली दो सरकारी सुरक्षा गार्ड के साथ इस गांव के पत्थलगड़ी में शामिल हुआ था। पूछने पर वह बताया कि यह सरकारी सुरक्षा गार्ड उसके नेता भाई को मिला है जिसको लेकर वह यहां आया है। उसने वीडियों कैमरा के सामने अपना पक्ष भी रखा। लेकिन सरकार की तरफ से इसके खिलाफ कोई जांच एंव करवाई नहीं हुई! मुख्यमंत्री का पत्थलगड़ी करनेवालों के खिलाफ बोलना और अफीम की हो रही खेती पर चुप रहना सरकार की मंशा पर संदेह पैदा करता है और एक गहरे षडयंत्र की तरफ इशारा कर रहा है। आश्चर्यजनक पहलू यह है कि झारखंड की तमाम विपक्षी राजनीतिक पार्टियों ने इस मामले पर चुप्पी साध रखा हैं। झारखंड में वोट की राजनीति ने इस राज्य को बदहाली में पहुंचा दिया है क्योंकि जनता के सवाल पीछे छुटते जा रहे हैं और राजनीतिक दल सत्ता बचाने तथा सत्ता में जाने के लिए जनता को भ्रामक मसलों में भटका रही है!
खूंटी व आस-पास के इलाके में हो रहे पत्थलगड़ी के खिलाफ मुख्यमंत्री की तमतमाहट और अफीम की हो रही खेती पर चुप्पी संकेत दे रहे हैं कि उन इलाकों में एक बड़ी दमनात्मक कार्रवाई की तैयारी का षडयंत्र चल रहा है। परंपरा के नाम पर की जा रही पत्थलगड़ी करने वाले गिरोह जिस तरह से संविधान की व्याख्या कर ग्रामीणों को भड़का रहे हैं यह आदिवासी समूह् के हित के खिलाफ है. पत्थलगड़ी गिरोह और सरकार एक- दूसरे के खिलाफ चेतावनी दे कर माहौल को विस्पोटक बनाने में लगे हुए हैं। देश द्रोह की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार 2008 में नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) का गठन कर चुकी है। लेकिन राज्य व केंद्र की सरकार इसका राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। राज्य सरकार अगर खूंटी में हो रहे पत्थलगड़ी को देश द्रोह की गतिविधियां मान रही है और इसको लेकर संजीदा है तो उसकी जांच एनआईए को सौंप देनी चाहिये और फौरन वहां अफीम की खेती पर अंकुश लगाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। सरकार अगर कह रही है कि पत्थलगड़ी देश द्रोह कार्य है तो अफीम की खेती न केवल ग्रामीणों को नशा के गर्त में ले जा रहा है बल्कि कथित देश द्रोह में शामिल लोगों को आर्थिक रुप से मजबूत भी कर रहा है।