झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कोडरमा से इस बार महागठबंधन के प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी ने एक सनसनीखेज बयान दिया है, जो सभी प्रमुख अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित भी हुआ है. उस बयान में कहा गया है कि माओवादियों ने उन्हें धमकी दी है कि वे चुनाव मैदान से हट जायें, क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और झारखंड के मुख्यमंत्री ‘रघुवर भैया’ से उनका एक समझौता हुआ है जिसके तहत उन्हें झारखंड के तमाम सीटों से भाजपा की जीत सुनिश्चित करनी है. इसलिए बाबूलाल अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान से हटा लें और खुद 19 मई तक क्षेत्र क्षेत्र से बाहर रहें.
इत्तफाक यह कि यह बयान उस दिन अखबारों में जारी किया गया, जिस दिन झारखंड की राजधानी रांची में पीएम मोदी का रोड शो और पलामू, हजारीबाग और चतरा में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कई चुनावी सभाओं को संबोधित किया और उनकी एक प्रमुख चुनावी घोषणा थी कि उनकी पार्टी और सरकार देश से 2023 तक नक्सलवाद का खात्मा कर देंगे.
बाबूलाल मरांडी को माओवादियों की धमकी स्पीड पोस्ट से भेजी गई थी. उसको गंभीरता से इसलिए लिया जा रहा है, क्योंकि बाबूलाल मरांडी शुरु से माओवादियों के निशाने पर रहे हैं. कुछ वर्ष पूर्व उनके एक पुत्र की माओवादियों ने हत्या कर दी थी और उनके भाई नूनूलाल मरांडी पर कई बार जानलेवा हमला हो चुका है. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन्हें जेड प्लस सुरक्षा भी सरकार ने मुहैया कराई थी जिसे वापस ले लिया गया है. ये सारी बातें बाबूलाल मरांडी ने एक प्रेस कंफ्रेंस कर कही है.
सवाल यह उठाया जा रहा है कि यदि माओवादियों के साथ भाजपा का इस तरह का कोई समझौता हुआ भी हो, तो क्या माओवादी सार्वजनिक रूप से इस बात की घोषणा करते या उन्होंने यह उम्मीद कर रखी थी कि बाबूलाल उनकी धमकी से डर जायेंगे और धमकी के पत्र को सार्वजनिक नहीं करेंगे? बाबूलाल के विरोधियों का कहना है कि बाबूलाल ने सिर्फ सहानुभूति वोट हासिल करने के लिए यह सब किया है. लेकिन पत्र तो लिखा गया और सामने है. उसकी जांच पड़ताल जरूरी है.
माओवादियों की यह रणनीति रही है कि हर चुनाव में वे सत्ता के किसी एक खेमे से सांठगाठ करते हैं और उसके बदले उनसे संरक्षण प्राप्त करते हैं. 80 के दशक में जब झामुमो विभाजित हुई तो उन्होंने स्व.विनोद बिहारी महतो गुट का समर्थन किया और उनसे संरक्षण प्राप्त किया. सभी जानते हैं कि बिहार में लालू के जमाने में माओवादियों का समर्थन लालू को प्राप्त था. झारखंड के कई विधायकों से उनके तालमेल रहे हैं और चुनाव में वे उनके पक्ष में काम करते हैं. माओवादियों के एक केंद्रीय नेता विजय कुमार आर्य लालू की प्रचार गाड़ी में दिखे थे और जनसत्ता में वह खबर छपी थी जिसपर उस वक्त काफी विवाद भी हुआ था.
वैसे, यह बात काबिलेगौर है कि माओवादियों की इस्टर्न ब्यूरों ने हाल में एक चार पेज का परिपत्र जारी किया है और चुनाव वहिष्कार का आह्वान किया है. आह्वान में कहा गया है ‘… एक बार संसदीय चुनाव का तमाशा आ रहा है तो उस समय आम मजदूर, किसान, छात्र, नौजवान, महिलाएं, बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक, डाक्टर, इंजीनियर, छोटा व्यापारी सहित तमाम देशभक्त, प्रगतिशील व जनवादी व्यक्तियों, समूहों का हम आह्वान करते हैं कि वे इस नये भारत के निर्माण में अपना योगदान दें. शासक वर्ग द्वारा चलाया जा रहा अन्यायपूर्ण युद्ध के खिलाफ जारी न्यायपूर्ण युद्ध में शामिल हों व नव जनवादी राज्य बनाने के लिए वर्तमान शोषणकारी साम्राज्यवादपरस्त राजसत्ता को नकार कर इनके प्रतिनिधि सभाओं, संसद, विधानसभा, पंचायत, के लिये होने वाले चुनावों का जोरदार ढंग से बहिष्कार करें. साथ ही जनता की जनवादी व्यवस्था के निर्माण के लिए नब्बे प्रतिशत जनता एकजुट हो भरपूर प्रयास करें’
यह बात समझने की है कि शहरों में माओवादियों का प्रभाव नहीं. उनका थोड़ा बहुत असर ग्रामीण इलाकों पर है. और वहीं उनका जोर भी चलता है. अब यदि ग्रामीण इलाकों में अपने आतंक के जोर पर चुनाव वहिष्कार कराने में सफल हो भी जाते हैं तो इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा. झारखंड के संदर्भ में देखें तो शहरी इलाको में भाजपा ज्यादा प्रभावी है. ग्रामीण इलाकों में माओवादियों का थोड़ा बहुत प्रभाव है और उनके प्रभाव से चुनाव वहिष्कार होता है तो भाजपा को ही फायदा होगा.