कभी ऐसी ही जिद इंदिरा गांधी में भी दिखती थी. कमाल यह कि कांग्रेस और इंदिरा गांधी की उस जिद और निरंकुश प्रवृत्ति के आलोचना करते रहे, उसके खिलाफ संघर्ष कर चुके बहुतेरे लोगों को आज मोदी-शाह के उसी अंदाज में कुछ भी गलत नहीं दिखता!
गृह मंत्री अमित शाह बहुत जोर देकर कह रहे हैं : ‘विरोधी दल चाहे जितना विरोध कर लें, हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे, सीएए वापस नहीं लिया जायेगा.’ झारखंड चुनाव के दौरान भी उन्होंने मानो धमकी देते हुए कहा था- ‘राहुल बाबा, आप जितना भी विरोध कर लो, सीएए और एनआरसी तो लागू होकर रहेगा.’ अब राहुल गांधी तो पाकिस्तान से आये नहीं हैं और मुसलिम भी नहीं हैं. श्री शाह का निहितार्थ शायद लोगों को यह बताना था कि इन कानूनों के लागू होने से राहुल गांधी को कितना आघात लगेगा. मुसलमानों को तंग किया जायेगा और मुसलिमों के वोट से जीतने वाले राहुल गांधी को बहुत घाटा होगा. मगर अभी इस बात को रहने देते हैं कि कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल सिर्फ मुसलिम वोट से ही जीतते हैं. वैसे यह धारणा अपने आप में गलत और हास्यास्पद है.
यह सत्ता का गुरूर और अहंकार नहीं तो और क्या है? भाजपा का दावा है कि देश में सिर्फ वही एक लोकतांत्रिक पार्टी है. तो यही भाजपा का लोकतंत्र है? यही लोकतंत्र की उसकी समझ, लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठा है! विरोधी कुछ भी कर लें, हम अपनी जिद नहीं छोड़ेंगे. विपक्ष को कौन पूछता है? हमारा बहुमत है. हम किसी की परवाह क्यों करें?
कभी ऐसी ही जिद इंदिरा गांधी में भी दिखती थी. कमाल यह कि कांग्रेस और इंदिरा गांधी की उस जिद और निरंकुश प्रवृत्ति के आलोचना करते रहे, उसके खिलाफ संघर्ष कर चुके बहुतेरे लोगों को आज मोदी-शाह के उसी अंदाज में कुछ भी गलत नहीं दिखता!
अगर ऐसा ही लोकतंत्र आपको चाहिए, ऐसा ही लोकतंत्र आप स्थापित करना चाहते हैं, तो लोकसभा में प्रचंड बहुमत है ही आपके पास. अब लोकसभा की बैठकों और चर्चा बगैरह का नाटक बंद कीजिये. विपक्ष कुछ भी कहता रहे, कितने भी सवाल उठाये, आप बिल्कुल नहीं सुनिए. विपक्ष से चर्चा हो, सहमति बनाने का प्रयास हो और नहीं तो कुछ समय के लिए मामले को रोका जाये, यह सब तो ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का लोकतंत्र है. अब टुकड़े टुकड़े गैंग में कौन लोग कौन हैं? वही जो भाजपा के विरोधी हैं. वे कांग्रेसी हैं, वे कम्युनिस्ट हो सकते हैं, एनडीए को छोड़ कर बाकी विपक्षी दल हैं और अंत में वे सारे विद्यार्थी और बुद्धिजीवी हैं, जो अपने संविधान को प्यार करते हैं और धर्मनिरपेक्षता को पसंद करते हैं. ऐसा भी कह सकते हैं कि जो मुसलिम, दलितों आदिवासियों और अन्य अल्पसंख्यक और छूट गये समुदाय के हकों की बात उठाते हों, उनके साथ खड़े होते हों. इसलिए कि उन्हें लगता है, इसी से यह देश खुशहाल और बेहतर बन सकता है. वैसे अब तो अकाली दल भी इसी रास्ते पर है. यानी भाजपा के संगी साथी भी ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ बनने की राह पर हैं.
लोकतंत्र के हमारे नक्शे में, हमारे स्वरूप में कुछ बहुत छोटे दल भी हैं जो एक-दो सीटें ला पाते हैं. कभी भाजपा के भी दो ही सांसद थे. कुछ निर्दलीय भी होते हैं. मगर संसद और विधानसभा में सबों को बहस में हिस्सा लेने का समान हक है. सवाल पूछने और निजी प्रस्ताव पेश करने भी का मौका है. अब अगर सरकारी पक्ष यह रवैया बना ले कि कोई कुछ भी कहे, हम सुनने वाले नहीं हैं तो संसद की सारी कार्यवाही बेमानी होकर रह जायेगी. हमारे संविधान में तो संसद में ऐसे लोगों को भी मनोनीत करने की परिपाटी है, जो बहुत छोटे समूह, संप्रदाय से आते हों, जो विभिन्न क्षेत्र यथा कला-विज्ञान, साहित्य, खेल समेत अन्य क्षेत्रों से हों और जिनके चुन कर आने की संभावना नहीं है. यह प्रावधान इसलिए है कि अलग अलग क्षेत्र के जानकार व अनुभवी लोगों कै विचारों का हमारी नीतियों में समावेश हो सके, हम उनके अनुभव का लाभ उठा सकें..
अब हमारा गृहमंत्री दहाड़ता है कि विरोधी चाहे जो भी कर लें, सीएए वापस नहीं होगा, तो सवाल उठता है कि वे देश को कहां ले जाना चाहते हैं? कैसा बनाना चाहते हैं?
आज देश के अनेक शहरों में मुसलिम औरतें बेमियादी धरने पर बैठी हैं. वे इसी देश की औरतें हैं. ये सारे छात्र, बुद्धिजीवी, आम नागरिक और विपक्ष के लोग, जो इस कानून के खिलाफ सडक पर हैं, आंदोलन कर रहे हैं, वे पाकिस्तान से नहीं आये हैं. इसी भारत के हैं, अमित शाह जहां के गृहमंत्री हैं. पर मोदी-शाह अपने बयानों से साबित कर रहे हैं कि वे सिर्फ भाजपा के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री हैं. बाकी देश से न उनको मतलब है, न देशवासियों से. पर लोकतंत्र की शोभा यही है. सबकी बात सुनी जाए या कम से कम सुनने का दिखावा ही किया जाए. न कि जनता की असहमति को, उसके विरोध को, भले ही आपकी नजर में वह चंद लोगों का हो, छप्पन इंच का सीना दिखाया जाये.