इस चिंतन धारा का ही विकृत रूप है यह प्रचार कि जीवन के लिए रोटी, कपड़ा, मकान से ज्यादा महत्वपूर्ण है वीमा. कम से कम शारीरिक श्रम, डब्बाबंद भोजन, बोतलबंद पानी, हर छोटे बड़े रोग के लिए रंग बिरंगी गोलियां से बीमार तन और मन के लिए वीमा-स्वास्थ वीमा— सचमुच आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गयी है. लेकिन वीमा कंपनियां इलाज के लिए पैसा दे सकती हैं, रोग से लड़ने की ताकत नहीं.

यह कहना जल्दीवाजी तो होगी और वह भी मेरे लिए जो इस समस्या का विशेषज्ञ होने का दावा नहीं करता, लेकिन अब तक के भीषणतम इस महामारी के बारे में जो तथ्य आ रहे हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि कोरोना वाईरस का जन्म और फैलाव की वजह उपभोक्तावादी आधुनिक जीवन शैली हो सकती है. सामान्यतः महामारी गरीबी, अशिक्षा, स्वच्छता के प्रति लापरवाही आदि से पैदा होती है, लेकिन इस बार जिस तरह इसकी शुरुआत हुई और जिन देशों में इनका विस्तार हुआ, वे न तो गरीब मुल्क हैं और न अशिक्षित. स्वच्छता को लेकर भी उनमें अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों ज्यादा जागरूकता दिखाई देती है. अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए आईये इस रोग से प्रभावित देशों और आंकड़ों को देखते हैं.

कोरोना वाईरस से अब तक करीबन 307625 लोग पूरी दुनियां में संक्रमित हुए हैं. इनमें से सर्वाधिक चीन, इटली, अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, इरान और फ्रांस के हैं. ये वे मुल्क जहां संक्रमित लोगों की संख्या 14 हजार के आंकड़े को पार कर चुकी है. पहले नंबर पर चीन है जहां संक्रमित लोगों की संख्या 81054 को पार कर चुकी है. दूसरे नंबर पर है इटली जो 53578 का आंकड़ा और तीसरे नंबर पर अमेरिका जो 27000 का आंकड़ा पार कर चुका है. तथाकथित पिछड़े और गरीब देशों में संक्रमित रोगियों की संख्या गिनती के हैं. उदाहरण के लिए भूख से मौतों के लिए विख्यात सोमालिया, युगांडा, आदि देशों में दो चार लोग अब तक संक्रमित हुए हैं. आबादी के लिहाज से चीन के बाद सबसे बड़ी आबादी वाले भारत में अब तक 315 संक्रमित मामले दर्ज किये गये हैं. पूरी लिस्ट आप गूगल पर जा कर देख सकते हैं.

कहना यह है कि इस कोरोना वायरस से प्रभावित मुल्क विशेष रूप से वे हुए हैं जो साधन संपन्न और दुनियां के शक्तिशाली मुल्क हैं. तकनीकि दुष्टि से भी और पर कैपिटा खर्च करने की कुव्वत की भी दृष्टि से. ये वे मुल्क हैं जो दुनिया में दादागिरि करते हैं, हथियारों का व्यापार और पर्यावरण से सबसे अधिक खिलवाड़ करते हैं. खान पान की दृष्टि से देखें तो ये वे मुल्क हैं जो सबसे अधिक डब्बाबंद भोजन, बोतलबंद पानी का इस्तेमाल और व्यापार करते हैं. जिनका काम सेनिटरी नेपकिन, टिसू पेपर और सेनिटलाईजर के बगैर नहीं चल सकता. चीन राजनीतिक रूप से कम्युनिस्ट देश है, लेकिन आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनने के लिए उसने निर्मम पूंजीवाद के तमाम टोटके अपनाये हैं. वनों के विनाश, जैव विविधता को नष्ट करने में वह अमेरिका से जरा भी पीछे नहीं.

इस तथ्य को हम अपने देश में भी देख सकते हैं. अपने देश में भी इस रोग से संक्रमित लोगों की संख्या उन राज्यों में ज्यादा नजर आ रही है जो प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से, शिक्षा और आधुनिक जीवन शैली की दृष्टि से आगे हैं. सर्वाधिक केस महाराष्ट्र में, फिर केरल में, फिर हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में. उत्तर प्रदेश हरियाणा की तुलना में तीन गुना बड़ा है, फिर भी दोनों राज्यों में दो दिन पहले तक 16-16 संक्रमित लोग पाये गये. पश्चिम बंगाल और ओड़िसा में एक एक मरीज. तथाकथित पिछड़े बिहार 22 को दो तीन संक्रमित मरीजों की जानकारी आयी और एक मौत की भी. झारखंड में अब तक संक्रमित मरीज नहीं.

संक्षेप में कहें तो पूंजीवाद, उपभोक्तावादी जीवन शैली को जन्म देता है. प्रकृति का अंधाधुंध दोहन, जल, जंगल, जमीन का सर्वनाश, और पैदा हुई अकूत संपदा, जो समाज के कुछ लोगों के बीच ही केंद्रित होती चली जाती है, के बदौलत एक ऐसी जीवन शैली जो भीतर से आपको कमजोर कर रही है. आपके अंदर की प्रतिरोधक क्षमता को खत्म करती है. जो बोतलबंद पानी पर इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि कभी बाहर का पानी पीते ही बीमार हो जाते हैं. थोड़े से बुखार में पैरासिटामोल, सरदर्द में गोली, किसी तरह के इनफेंक्शन में एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन, आदि. विडंबना यह कि इस बार कोरोना वाईरस के ऐसे ही लोग वाहक बने हैं.

इस चिंतन धारा का ही विकृत रूप है यह प्रचार कि जीवन के लिए रोटी, कपड़ा, मकान से ज्यादा महत्वपूर्ण है वीमा. कम से कम शारीरिक श्रम, डब्बाबंद भोजन, बोतलबंद पानी, हर छोटे बड़े रोग के लिए रंग बिरंगी गोलियां से बीमार तन और मन के लिए वीमा-स्वास्थ वीमा— सचमुच आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गयी है. लेकिन वीमा कंपनियां इलाज के लिए पैसा दे सकती हैं, रोग से लड़ने की ताकत नहीं. कोरोना ऐसे वाइरस से बचाना तो उनके वश में जरा भी नहीं.

आप पूछेंगे, तो कैसी जीवन शैली चाहिए?

तो पहले हम आपको बतायेंगे ऐसी बात जिससे आप झल्लाहट से भर जायें. आदिवासी गांवों इलाकों में आप जायेंगे तो आपको खोजे से भी थर्मामीटर नहीं मिलेगा. लोगों को थर्मामीटर देखने आता ही नहीं. बुखार आया तो दो चार दिन सहा, आराम कर लिया. ठीक हो गये. या फिर किसी डाक्टर के पास गये. आप कहेंगे, यह जहालत है. तो इस तथ्य को जान लीजिये की अभी तक अपने देश में पांचवीं और छठी अनुसूचि वाले इलाके में ही करोना वाईरस नहीं पहुंचा है. नहीं पहुंचेगा, यह मैं नहीं कह रहा.

तो, हमें प्रकृति से साहचर्य वाली जीवन शैली चाहिए, सीधा-सरल जीवन चाहिए. सफाई चाहिए, लेकिन सफाई की सनक नहीं. जरूरत पड़ने पर बिना बोतलबंद पानी पीने की भी आदत होनी चाहिए. थोड़ा शारीरिक श्रम भी जरूरी है. दवाओं पर निर्भरता कम हो,ताकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. और आस पास के हर जीव-जंतु या वस्तु को उपभोक्ता माल नहीं समझना चाहिए. कोरोना से ग्रसित होने या आतंकित हो कर अपने बालकोनी में खड़े हो कर गाना नहीं, सामान्य दिनों में भी थोड़ा नाचना, गाना चाहिए.

और मौत आये तो सहज भाव से स्वीकार करना चाहिए, उससे डरना और आतंकित होना तो बेवकूफी ही है.